Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर का 'धांधली' वाला चुनाव, जिसके बाद कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ!

Jammu Kashmir Election: जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का ऐलान होने वाला है. इसी बीच साल 1987 में हुए विधानसभा चुनाव की कहानी जानना जरूरी है, जिसके बाद यहां से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया. 

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Aug 16, 2024, 02:25 PM IST
  • चुनाव में धांधली के आरोप लगे
  • फारूक अब्दुल्ला बने थे CM
Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर का 'धांधली' वाला चुनाव, जिसके बाद कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ!

नई दिल्ली: Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. चुनाव आयोग इसको लेकर ऐलान करने वाला है. धारा-370 के हटने के बाद पहली बार यहां पर विधानसभा चुनाव होगा. कई बड़े नेता जैसे पूर्व CM महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला ने चुनाव न लड़ने की बात पहले ही कह दी है. इन्होंने दलील दी है कि ये चुनाव महज खानापूर्ति है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब ऐसे आरोप लगे हैं. कश्मीर का चुनावी इतिहास बेहद स्याह रहा है. खासकर 1987 का विधानसभा चुनाव तो भुलाए नहीं भूलता. 

कांग्रेस चाहती थी- सरकार बर्खास्त हो जाए
साल 1986, केंद्र में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी. राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. जम्मू-कश्मीर की बागडोर गुलाम मुहम्मद शाह के हाथ में थी, वे शेख अब्दुल्ला के दामाद थे. गुलाम मुहम्मद नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी से 12 विधायकों के साथ अलग हो गए थे, जिस कारण फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिर गई थी. कांग्रेस के सपोर्ट से गुलाम मुहम्मद सत्ता में आए थे, लेकिन इस बेमेल गठबंधन का टिक पाना मुश्किल होता जा रहा था. कांग्रेस किसी ऐसे मौके की तलाश में थी, जिसके जरिये सरकार बर्खास्त कर दी जाए. 

राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया
तभी राजीव गांधी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने का फैसला किया. भारत के कई हिस्सों में दंगे शुरू हो गए. लेकिन कश्मीर शांत था, बस अनंतनाग में छोटी-मोटी घटनाएं हुईं. लेकिन सरकार को बर्खास्त करने के लिए ये नाकाफी थी. फिर कांग्रेस ने कश्मीर के अपने एक बड़े नेता का बखूबी इस्तेमाल किया, जिनका नाम मुफ्ती मुहम्मद सईद (महबूबा मुफ्ती के पिता) था. अनंतनाग मुफ्ती का ही इलाका हुआ करता था. अचानक से यहां पर हिंसा बढ़ गई, हिंदू मंदिरों पर हमले होने लगे, कश्मीरी पंडितों के साथ मारपीट होने लगी. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर गुलाम मुहम्मद की सरकार से समर्थन खींच लिया. राज्यपाल ने सरकार बर्खास्त कर दी. स्टेट में गवर्नर रूल लागू हो गया. विरोधियों ने आरोप लगाया- मुफ्ती मुहम्मद सईद के इशारों पर यहां हिंसा भड़की.

फिर साथ आए राजीव और अब्दुल्ला
गांधी और अब्दुल्ला परिवार के बीच पुराने रिश्ते थे. राजीव गांधी और फारूक अब्दुल्ला फिर साथ आए. नवंबर 1986 में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाई. घाटी के कई लोग इस गठबंधन से खुश नहीं थे. तभी विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ. कांग्रेस और NC के खिलाफ मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) बना. इसमें कश्मीर की इस्लामिक पार्टियां थीं, सबसे चर्चित नाम जमात-ए-इस्लामी का था. ये पार्टी अलगाववादी विचार रखती थी, जो पाकिस्तान का समर्थन करती थी. MUF तेजी से युवाओं के बीच लोकप्रिय होता जा रहा था, इसके नेताओं ने अपनी पैठ जमा ली थी. MUF का चुनाव चिन्ह कलम और दवात था.

कांग्रेसी नेता ने किसके लिए वोट मांगे?
कारवां में छपी एक रिपोर्ट के मुतबिक, उस दौरान मुफ्ती सईद भी NC और कांग्रेस के गठबंधन से नाराज थे. वे चुनाव प्रचार में रैली के दौरान अपने हाथ में कलम थामे रखते थे, ये लोगों को नजर आता था. वे कलम दिखाते और दाढ़ी पर हाथ फेरते. तब ये माना गया कि मुफ्ती MUF को वोट देने की अपील कर रहे हैं. 

MUF के कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए
ऐसा लग रहा था मानो MUF बंपर सीटों के साथ सत्ता में आएगी. 23 मार्च, 1987 को वोटिंग होनी थी. लेकिन इससे पहले ही MUF के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी होने लगी. जहां MUF मजबूत थी, वहां पर कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया गया. प्रदेश में 80 फीसद वोटर्स ने वोट किया. फिर आया काउंटिंग का दिन, जिसमें जमकर धांधली हुई. नेशनल और इंटरनेशनल अखबार चुनाव में हुई गड़बड़ियों की रिपोर्ट्स से पटे पड़े थे. चुनाव के एक हफ्ते बाद तक रिजल्ट का ब्यौरा जारी नहीं हुआ. 

ये रहे चुनावी नतीजे
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि चुनाव से पहले 600 MUF कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए. NC से जुड़े लोगों की जमीनों पर पोलिंग स्टेशन बने. पोलिंग अधिकारियों के पास पहले से मुहर लगे हुए बैलेट बॉक्स पहुंच गए थे. नतीजो से सब चौंक गए. नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी 45 में से 40 सीटों पर जीती. कांग्रेस ने 31 में से 26 सीटें जीतीं. नतीजों से जनता में रोष पैदा हुआ. पब्लिक में मैसेज गया कि भारत की सरकार ने चुनाव में धांधली की है. MUF की तरफ लोगों की सहानुभूति बढ़ गई. MUF से जुड़े कई कार्यकर्ताओं ने हथियार उठा लिए. घाटी में उपद्रव शुरू हो गए. जनवरी, 1990 में फारूक अब्दुल्ला ने CM पद से इस्तीफा दे दिया. 

कश्मीरी पंडितों का पलायन
19 जनवरी, 1990 को जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल बने. तब कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया. जगमोहन ने अपनी आत्मकथा 'माई फ्रोजेन टर्बुलेंस इन कश्मीर' में लिखाप- मैं राजभवन में बिताई पहली रात कभी नहीं भूल सकता. मैं लेटा हुआ था, तभी फोन बजने लगे. स्स्मने से आवाज आई आज हमारी आखिरी रात होगी. एक और फोन आया, उन्होंने कहा- सुबह होने तक हमको (कश्मीरी पंडितों) मौत के घाट उतार दिया जाएगा. यहीं से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया. कश्मीर का ये चुनाव इतिहास में दर्ज हो गया.

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