नई दिल्लीः हर तारीख अपने भीतर एक किस्सा समेटे हुए है. इतिहास के पन्ने पलटने पर वो कहानी फिर नई सी लगने लगती है. कुछ कहानियां आंखों में ताजगी लाती हैं तो कुछ आंखों को भिगो जाती हैं. लेकिन कहानियां तो कहानियां होती हैं, अतीत में गुजरी बातों का जिक्र होती हैं.
लेकिन कुछ कहानियां इतनी खास होती हैं कि वो सिर्फ इतिहास ही नहीं होती बल्कि भविष्य की कई कड़ियां उससे जुड़ती जाती हैं. ऐसी ही एक कहानी है आज की यानी 27 मई की. बीते कई सालों में इस तारीख को कई घटनाएं घटी होंगी. लेकिन साल 1964 में 27 मई का दिन भारत ही नहीं दुनिया के लिए भी एक बड़ा झटका था.
दरअसल, इस दिन भारत ने खोया था अपना पहला प्रधानमंत्री और दुनिया ने खोई थी भारत की प्रखर आवाज और एक जिंदादिल, बेहतरीन और शानदार शख्सियत.
नेहरू की जिंदगी के कई रंग हैं. नेहरू के कई अंदाज हैं और नेहरू के बारे में कई किस्से भी. नेहरू कभी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले नायक के रूप में दिखते हैं तो कभी बच्चों पर प्यार लुटाते. कभी अपनी समझ,ज्ञान और शानदार किताबों के लिए जाने जाते हैं तो कभी अपने फैशन, शौक और त्याग के लिए.
लेकिन नेहरू में खास यही था कि वो जिस भी किरदार में दिखे वो हर किरदार में जमे भी और रमे भी.
नेहरू की उपलब्धियों, कीर्तिमानों और कारनामों के कई किस्से हैं. उनकी खुशमिजाजी के चर्चे भी खूब हैं. लेकिन नेहरू के गुस्से की भी कई कहानियां हैं...आज उनकी पुण्यतिथि पर आपको सुनाते हैं ऐसे ही कुछ किस्से...
जब फोटोग्राफर को मारने के लिए दौड़ाया
नेहरू के गुस्से की कई कहानियां उन्हें बारीकी से जानने और उनके साथ काम कर चुके लोगों ने साझा की हैं. लेकिन एक किस्सा जो बहुत मशहूर है वो ये कि एक बार नेहरू ने कुछ पत्रकारों को मारने के लिए दौड़ा लिया था.
इसका जिक्र मिलता है नेहरू के सुरक्षा अधिकारी रह चुके के एफ़ रुस्तम की किताब 'आई वाज़ नेहरूज़ शैडो' में. जिसमें वो बताते हैं कि 1953 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली अपनी पत्नी के साथ भारत आए थे. लेकिन जब दिल्ली हवाई अड्डे पर वह उतरे तो उन्हें नेहरू के मशहूर गुस्से का नज़ारा अपनी आंखों से देखने का मौका मिला.
हुआ ये कि जैसे ही जहाज की सीढ़ियां लगाई गईं, वहां मौजूद करीब पचास कैमरामैन जहाज के चारों तरफ खड़े हो गए. जैसे ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री उतरे, पीछे खड़ी भीड़ भी आगे आ गई और धक्का मुक्की होने लगी. यह नजारा देखकर प्रधानमंत्री नेहरू का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.
उन्होंने गुस्से में चिल्लाते हुए कैमरामैन के पीछे दौड़ना शुरू कर दिया. किसी एक शख़्स ने नेहरू के लिए कार का दरवाजा खोला. नेहरू ने गुस्से में वो दरवाज़ा बंद कर दिया और फूल के एक बड़े बुके से लोगों की पिटाई करने दौड़े. उन्हें बड़ी मुश्किल से वहां से वापस ले जाया गया.
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चीजों की बर्बादी से थी नफरत
नेहरू के शौकीन मिजाज के कई किस्से हैं लेकिन उनकी सादगी भी चर्चा का विषय थी. कहा जाता है कि उन्हें चीजों की बर्बादी बिल्कुल पसंद नहीं थी. कई बार वह कार रुकवाकर अपने ड्राइवर को भेजते थे कि वह बगीचे में चल रहा पानी का पाइप बंद करके आए.
बताते हैं कि एक बार सऊदी अरब की यात्रा के दौरान उन्होंने रियाद के जगमगाते राजमहल के एक-एक कमरे में जाकर उसकी बत्ती बंद की थी. इस महल को उनके लिए ही सजाया गया था, लेकिन बेवजह चल रही लाइटें नेहरू को पंसद नहीं आ रही थीं.
जब 5 किस्तों में चुकाए थे महज 2500
दरअसल, ये किस्सा पंडित नेहरू और उनकी छोटी बहन विजयलक्ष्मी पंडित से जुड़ा है. एक बार विजयलक्ष्मी शिमला के सर्किट हाउस में ठहरीं थीं. वहां रहने का बिल आया 2500 रुपये. वे बिना बिल चुकाए ही चली गईं. तब हिमाचल प्रदेश नहीं बना था और शिमला पंजाब का ही हिस्सा था.
उस समय भीमसेन सच्चर पंजाब के मुख्यमंत्री थे. राज्यपाल की ओर से उनके पास एक पत्र आया कि यह राशि राज्य सरकार के विभिन्न ख़र्चों के तहत दिखला दी जाए किंतु सच्चर को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी. उन्होंने झिझकते हुए नेहरू को पत्र लिखा कि वे ही बताएं कि इस पैसे का हिसाब किस मद में डाला जाए.
नेहरू ने तुरंत जवाब लिखा कि इस बिल का भुगतान वे स्वयं करेंगे. लेकिन उन्होंने कहा कि वे एकसाथ इतने पैसे नहीं दे सकते हैं इसलिए वे पांच किस्तों में ये पैसा चुकाएंगे. उन्होंने अपने निजी बैंक खाते से लगातार पांच महीनों तक पंजाब सरकार के लिए पांच सौ रुपए के चेक काटे और इस तरह पूरी राशि का भुगतान किया.
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