नई दिल्लीः माओवादी से लेकर वकील, विधायक और अब तेलंगाना में मंत्री तक. दानसारी अनसूया ने अपनी जिंदगी में कई जंग लड़ी है. उन्हें सीताक्का भी कहा जाता है.
उन्हें गुरुवार को हजारों लोगों की मोजूदगी में एल.बी. स्टेडियम में मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. जैसे ही वह मंच पर पहुंचीं, जोरदार तालियों से उनका स्वागत हुआ. वह एक पल के लिए रुकीं, हाथ जोड़कर जवाब दिया और फिर राज्यपाल तमिलिसाई साउंडराजन ने उन्हें शपथ दिलाना शुरू किया. शपथ लेने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से हाथ मिलाया, जो उन्हें अपनी बहन मानते हैं.
सोनिया गांधी ने लगाया गले
सीताक्का इसके बाद कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी के पास गई और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया. सोनिया गांधी ने खड़े होकर उन्हें गले लगाया और बधाई दी. उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी हाथ मिलाया. विधानसभा चुनाव में 52 वर्षीय नेता को मुलुग निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुना गया है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.
जानें कौन हैं सीताक्का
कोया जनजाति से आने वाले सीताक्का कम उम्र में ही माओवादी आंदोलन में शामिल हो गई थी और उसी आदिवासी क्षेत्र में सक्रिय एक सशस्त्र दस्ते का नेतृत्व किया. उन्होंने पुलिस के साथ कई मुठभेड़ों में भाग लिया, इस दौरान अपने पति और भाई को भी खो दिया. आंदोलन से निराश होकर, उन्होंने 1994 में माफी योजना के तहत पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
इसके साथ, सीताक्का के जीवन में एक नया मोड़ आया, जिन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और कानून की डिग्री हासिल की. उन्होंने वारंगल की एक अदालत में एक वकील के रूप में भी प्रैक्टिस की. बाद में वह तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) में शामिल हो गईं और 2004 के चुनावों में मुलुग से चुनाव लड़ा. हालांकि, कांग्रेस की लहर का सामना करते हुए, वह उपविजेता रही. 2009 में वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतीं. 2014 के चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रहीं.
2017 में, उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के लिए टीडीपी छोड़ दी और 2018 में टीआरएस (अब बीआरएस) द्वारा राज्यव्यापी जीत के बावजूद सीट जीतकर मजबूत वापसी की. सीताक्का ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने निर्वाचन क्षेत्र के गांवों में अपने काम से सुर्खियां बटोरीं. अपने कंधों पर बोझ उठाए हुए लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों की मदद करने के लिए जंगलों, चट्टानी इलाकों और नालों को पार करती हुई गांव-गांव पहुंची.
हाथ में थामी बंदूक
1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में बंदूकधारी माओवादी विद्रोही के रूप में उसी जंगल में काम करने के बाद, वह इलाके से अपरिचित नहीं थीं. एकमात्र अंतर यह था कि एक माओवादी के रूप में उनके हाथ में बंदूक थी और महामारी के दौरान वह भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएं ले जाती थीं.
पिछले साल उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पीएचडी पूरी की. आदिवासी विधायक ने तत्कालीन आंध्र प्रदेश के प्रवासी आदिवासियों के सामाजिक बहिष्कार और अभाव पर पीएचडी की.
सीताक्का ने पीएचडी पूरी करने के बाद ट्वीट किया था, "बचपन में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं माओवादी बनूंगी, जब मैं माओवादी थी तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं वकील बनूंगी, जब मैं वकील बनी तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं विधायक बनूंगी, अब मैं विधायक हूं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपनी पीएचडी करूंगी. अब आप मुझे राजनीति विज्ञान में डॉ. अनुसूया सीताक्का पीएचडी कह सकते हैं.'उन्होंने कहा, "लोगों की सेवा करना और ज्ञान हासिल करना मेरी आदत है. मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करना बंद नहीं करूंगी.
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