तिरुवनंतपुरमः केरल सरकार ने भी राज्य में राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) से जुड़े सभी काम रोकने के आदेश दिए हैं. यह आदेश लोगों के बीच पैदा इस आशंका के मद्देनजर लिया गया कि विवादित संशोधित नागरिकता कानून (सीएए)के बाद एनपीआर के जरिए राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू किया जाएगा. मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सरकार ने एनपीआर को स्थगित रखने का फैसला किया है क्योंकि आशंका है कि इसके जरिए एनआरसी लागू की जाएगी.
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के कार्यालय ने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि एनपीआर संवैधानिक मूल्यों से दूर करता है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. राज्य की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेतृत्व वाली सरकार की ओर से यह फैसला राज्य के विभिन्न हिस्सों में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के बीच किया गया है. इससे पहले पश्चिम बंगाल ने भी सीएए के खिलाफ बढ़े गुस्से के बीच एनपीआर को तैयार और अद्यतन करने संबंधी सभी गतिविधियों को रोक दिया था.
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क्या है एनपीआर का उद्देश्य?
केरल के प्रधान सचिव की ओर से जारी आदेश के अनुसार, संशोधित नागरिकता कानून के बीच आम लोगों में एनपीआर संबंधित गतिविधियों के बाद एनआरसी लागू होने की आशंका थी. इसी के चलते एनपीआर का काम रोका गया है. महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय की वेबसाइट के मुताबिक, एनपीआर का उद्देश्य देश के सामान्य निवासियों का व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है. इस डेटा में जनसांख्यिंकी के साथ बायॉमीट्रिक जानकारी भी होगी.
CAA को बताया असंवैधानिक
केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सरकारों को सीएए को खारिज करने की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है क्योंकि इसे संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची के तहत लाया गया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें एनपीआर को भी लागू करने से इनकार नहीं कर सकतीं, जो अगले साल लाया जाना है. उनका बयान पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों की उस घोषणा के बाद आया, जिसमें उन्होंने सीएए को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि उनके राज्यों में इसके लिए कोई जगह नहीं है.
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