BSF की एक दहाड़ से कांप उठता है पाकिस्तान! 'जीवन पर्यन्त कर्तव्य' का सिद्धांत

हिंदुस्तान के जांबाज जवानों से लैस सीमा सुरक्षा बल का नाम सुनते ही पाकिस्तान की बोलती बंद हो जाती है. उसे साल 1971 में अपने करारी हार की याद ताजा हो जाती है. आपको BSF की एक-एक ताकत से रूबरू करवाते हैं.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Dec 1, 2019, 05:02 PM IST
    1. सीमा सुरक्षा बल की 55वीं सालगिरह
    2. पाकिस्तान की निकल जाती है हवा
    3. बीएसएफ की ताकत से दुश्मन खौफजदा
BSF की एक दहाड़ से कांप उठता है पाकिस्तान! 'जीवन पर्यन्त कर्तव्य' का सिद्धांत

नई दिल्ली: सीमा सुरक्षा बल यानि BSF दुनिया का सबसे बड़ा सीमा रक्षक बल है. ये एक अर्धसैनिक बल है, जिसका गठन 1 दिसंबर, 1965 को हुआ था. आज BSF की 55वीं स्थापना दिवस है. सीमा सुरक्षा बल की स्थापना 25 बटालियन से की गयी थी. लेकिन अब BSF में 188 बटालियन हैं. जो करीब 6,385 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाती हैं. सीमा सुरक्षा बल की कमान डायरेक्टर जनरल के हाथ में होती है. ये बल गृह मंत्रालय के नियंत्रण में आता है.

बीएसएफ का सिद्धांत है कि 'जीवन पर्यन्त कर्तव्य'

इस बल के जवान अपने कर्तव्य को निभाने के लिए समर्पित हैं. चाहे रेगिस्तान हो, या नदी-घाटियां और बर्फ से ढ़के ऊंचे-ऊंचे पहाड़, मुश्किल से मुश्किल हालातों में दुश्मन के सामने डटे रहना इन जवानों को बखूबी आता है. ये जवान बॉर्डर के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के साथ सीमा पर होने वाली तस्करी, घुसपैठ और दूसरी अवैध गतिविधियों पर भी पैनी नजर रखते हैं. बीएसएफ के अलावा सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी भी देश की आंतरिक सुरक्षा और सीमा सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रहे हैं. बीएसएफ पीस-टाइम के दौरान सीमा पर तैनात की जाती है, जबकि सेना युद्ध के दौरान मोर्चा संभालती है. बीएसएफ के जवानों को हमेशा सीमा की सुरक्षा के लिए तैयार रहना पड़ता है. जरुरत पड़ने पर बीएसएफ सीमा पर होने वाली दुश्मन की गतिविधियों और गोलीबारी का मुहंतोड़ जवाब भी देती है.

बीएसएफ की तैनाती

बीएसएफ में पोस्ट कांस्टेबल, हैड कांस्टेबल, एएसआई, डीएआई, आईजी जैसों रैंको पर तैनाती होती है. बीएसएफ में एसआई तक के उम्मीदवार एसएससी की ओर से चुने जाते हैं. वहीं बीएसएफ के डीजी, आईपीएस बनते हैं. बीएसएफ के मजबूत इरादे, कड़ी ट्रेनिग, देश सेवा की भावना और जज्बा ही दुश्मन पर भारी पड़ता है. 24 घंटे, दिन-रात, तपती धूप, मूसलाधार बारिश और लहू जमा देने वाली बर्फबारी के बीच नई ऊर्जा, हिम्मत और लगन से सीमा के जाबांज देश की रक्षा में तैनात हैं.

आंतरिक समस्याओं से भी लेते हैं लोहा

सीमाओं की सुरक्षा के अलावा देश की आंतरिक समस्याओं से निबटने में भी बीएसएफ बल का इस्तेमाल होता है. नक्सल विरोधी अभियानों में बीएसएफ के जवान घने जंगलों में बहादुरी से नक्सलियों का मुकाबला कर रहे हैं. BSF की दो बटालियन ने मिलकर गाजी बाबा को ढेर किया था गाजी बाबा उर्फ राणा ताहिर जैश-ए-मोहम्मद का ऑपरेशनल हेड और 2001 के संसद हमले का मास्टरमाइंड था.

हुनर के लिए मशहूर हैं बीएसएफ के जवान

बीएसएफ के जवान अपने कर्तव्य समर्पण के अलावा हुनर के लिए भी जाने जाते हैं. सीमा सुरक्षा के साथ ही वाघा बॉर्डर होने वाली पर बीएसएफ के जवानों का कला कौशल गर्व का अनुभव कराता है. वाघा बॉर्डर समारोह की शुरुआत 1959 में हुई थी. यह बीटिंग रिट्रीट समारोह के नाम से मशहूर है, इस समारोह के दौरान औपचारिक रूप से सीमा को बंद किया जाता है और दोनों देश के झंडे को सम्मानपूर्वक उतारा जाता है. यह समारोह हर रोज शाम में सूर्यास्त से पहले आयोजित होता है. इसके अलावा 26 जनवरी को राजपथ पर परेड में भी बीएसएफ के जवान अपने हुनर और जज्बे का प्रदर्शन कर चुके हैं.

बीएसएफ के जवानों ने युद्ध के हालातों में भी मोर्चा संभाला है. 1965 में जब पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमला बोला था उस समय सीमा की सुरक्षा की जिम्मेवारी संबंधित राज्य पुलिस की थी. 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद केंद्र सरकार ने सीमा सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय एजेंसी के गठन का फैसला किया. इस फैसले के बाद ही 1 दिसंबर 1965 को बीएसएफ अस्तित्व में आया. केएफ रूस्तमजी बीएसएफ के पहले महानिदेशक बने. इसके गठन के करीब 6 वर्ष बाद 1971 में पाकिस्तान ने फिर से भारत के साथ जंग करने की हिमाकत की. भारत-पाकिस्तान के इस तीसरे युद्ध में बीएसएफ के वीरों ने पाकिस्तानी सेना को कई मोर्चों पर घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.

पाकिस्तान के लिए काल है BSF

भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान ही एक ऐसा देश है जो अक्सर सीमा पर घुसपैठ और गोलीबारी करता रहता है. लेकिन सीमा पर पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों के लिए बीएसएफ के जवान काल बनकर खड़े हैं. कश्मीर के हालातों और सीमा सुरक्षा के लिए BSF के जवानों को खास ट्रेनिगं दी जाती है. बीएसएफ के पास ऐसे कमांडोज भी हैं जो, आतंकियो के छक्के छुड़ा देने के लिए माहिर हैं. बीएसएफ, इजराइल की तर्ज पर बॉर्डर की सुरक्षा के लिए आधुनिक हथियार तो खरीद रही है साथ ही अपने जवानों को स्पेशल ट्रेनिंग देकर उनको आतंक से निपटने के गुर भी सीखा रही है. ट्रेनिंग के बाद बीएसएफ के जवानों को आतंकवाद से प्रभावित क्षेत्रों और सीमा पर तैनात किया जाता है.

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देश की खास कमांडो फैक्ट्री टेकनपुर में सात सौ एकड़ इलाके में फैली है. बीएसएफ ने राजस्थान और गुजरात की सीमा पर क्रीक क्रोक्रोडाइल कमांडो और डेजर्ट स्कॉरर्पियन कमांडो की टीमें तैयार कर रखी हैं. ग्वालियर के नजदीक टेकनपुर की बीएसएफ अकादमी में बीएसएफ के कमांडो को मार्शल आर्ट के साथ बाधाएं पार करने की ट्रेनिंग दी जाती है. कश्मीर के घने जंगलों, किसी बिल्डिंग या पानी में छिपे आतंकियों को, ये जवान हर परिस्थिति में ढेर करने में माहिर हैं. इन कमांडो को जमीन में खिसते हुए क्रॉलिंग करने से लेकर गहरे पानी में तैरने की निपुणता हासिल है.

बीएसएफ के कमांडो जंगल के सबसे खतरनाक शिकारी मगरमच्छ से प्रेरणा लेते हैं. कैसे एक मगरमच्छ अपने शिकार के करीब आने का इंतजार करता है, मगरमच्छ का धैर्य ही बीएसएफ कमांड़ो की ताकत हैं.

किसी से कम नहीं हैं BSF की महिला कमांडोज

बीएसएफ में महिला सैनिकों की भूमिका भी किसी से कम नहीं है. पूरे जोश और जज्बे के साथ सीमा पर बीएसएफ की महिलाएं भी देश की सुरक्षा में तैनात हैं. एक दिसंबर, 1965 को स्थापित BSF यानी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में महिलाओं की बहाली 1972 में शुरू हुई थी. 2008 में इन्हें फाइटिंग भूमिका के लिए भी तैयार किया गया और तब से ये जांबाज महिला बटालियन देश की सुरक्षा में लगी हैं.

एक अनुमान के अनुसार बीएसएफ में हर साल करीब 1,000 महिलाओं की अलग-अलग पदों पर भर्ती की जा रही है. बीएसएफ में कुल 1,49,346 पद हैं, 22,509 पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. 2008 के बाद से बीएसएफ में महिलाओं की बहाली निरंतर की जा रही है.

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