Parakram Diwas: नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पीएम मोदी में क्या समानता है

नेताजी सुभाष चंद्र बोसे के चरित्र, उनके करिश्माई व्यक्तित्व को जितना जाना जाए कम है. उसका कोई सानी नहीं है. फिर भी राजनीति का लब्बोलुआब कुछ ऐसा है कि वह हमेशा अपने खाली स्थानों को भरने की कोशिश करती है. इसलिए वर्तमान में उसकी निगाहें पीएम मोदी पर टिकी हुई है. घटनाओं के क्रम उनको इस नजरिए से परखा जाना जारी है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 23, 2021, 09:28 AM IST
  • सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को बापू कहा तो पूरा देश उनके पीछे खड़ा हो गया
  • पीएम मोदी ने गांधी जी के स्वच्छता के विचारों को अपनाया तो सारा देश सफाई अभियान के लिए उठ गया
Parakram Diwas: नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पीएम मोदी में क्या समानता है

नई दिल्लीः  आजादी की लंबी चली लड़ाई के बाद भारत का लोकतंत्र स्थापित हुआ. सन 47 से पहले जो हमारे लिए क्रांति के अगुआ थे, देश के आजाद होते ही वही हमारे राजनेताओं में तब्दील हो गए. जो नहीं हुए उनमें से कुछ को हमने महान कहा और कुछ समय के साथ भुला भी दिए गए. लेकिन राजनीति और इतिहास व्यक्तिगत तौर पर कभी कुछ भी नहीं भूलते.

राजनीति हमेशा अपनी विरासत में इतिहास बन चुके चरित्रों को चित्र बना कर संजोए रखी हुई.  यह जानते हुए भी कि सियासत में रिक्त स्थानों की पूर्ति नहीं हो सकती राजनीति हमेशा अपनी विरासत के लिए योग्य पात्र खोजती नजर आती है. 

वह आज में कभी गांधी को खोजती है, कभी पटेल को देखना चाहती है और कभी सुभाष चंद्र बोस का अक्स भी निहारना चाहती है. अगर ये बात पचा पाने में नाकाबिल हो तो ऐसे समझिए कि कांग्रेस के लिए इंदिरा वाकई इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि बीते हर चुनावी समर में प्रियंका वाड्रा इंदिरा जैसी बताई जाती रही हैं. वह भी सिर्फ नैन-नक्श के बूते पर... 

वर्तमान राजनीति खोज रही है नेताजी का व्यक्तित्व
कांग्रेस की बात हो ही रही है तो कैनवस को और बड़ा कर लेते हैं फिर इतिहास की ओर चलते हैं. यहां खड़ा है कांग्रेस का वह चेहरा जो क्रांतिकारी है. इसमें कई नाम दिखाई देते हैं और सुभाष चंद्र बोस इनमें सबसे अलग ही नजर आ रहे हैं. वह व्यक्तित्व जिसके अंदर खूब प्रशासनिक खूबियां थीं, लेकिन देश ने उन्हें नेताजी कहा- नेताजी यानी अगुआ और इतिहास इस पर अपनी मुहर लगाता है कि नेताजी अगुआई करने से कभी पीछे नहीं रहे. फिर चाहे वह भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों के समर्थन की बात हो या फिर देश आजाद कराने के लिए फौज बना लेने की बात.

यही वजह है कि राजनीति इतने सालों में ठहर कर हर नेता में नेताजी की छवि खोजने की कोशिश करती रही है. वर्तमान में राजनीति की यह खोज फिलहाल पीएम मोदी पर ठहरी हुई है. 

कुछ बातें पीएम मोदी को नेताजी के करीब खड़ा करती हैं
अगर इस बात में कोई दम न होता तो राजनीति पीएम मोदी को खारिज कर फिर अगले व्यक्ति के इंतजार में जुट गई होती, लेकिन अगर राजनीति रुकी हुई है तो इसका मतलब है कि पीएम मोदी में कुछ ऐसी बातें तो हैं जो उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीब ले जाती हैं. 

इस बात को समझने के लिए सुभाष चंद्र बोस के परिवार में ही चलते हैं. उनके पड़पोते चंद्र कुमार बोस ने 2016 में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व में ऐसी बातें हैं जो उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीब ले जाती हैं. चंद्र कुमार बोस इसके तस्दीक में कई बातें बताईं. उनके अलावा भी यह बातें कई बार सामने आती रही हैं कि पीएम मोदी के व्यक्तित्व की दृढ़ता, कूटनीति और कई त्वरित राजनीतिक निर्णय बिल्कुल ऐसे हैं, जैसे सुभाष चंद्र बोस लिया करते थे या अनुमान के मुताबिक आज की परिस्थितियों मे वह लेते. 

नेताजी सुभाष और पीएम मोदीः एक आवाज पर देश साथ
दृढ़ता की ही बात करें तो जब BJP केंद्र में सत्ता में आई तो वह 2014 में पहला साल था. प्रधानमंत्री बनते ही पीएम मोदी ने सबसे पहले महात्मा गांधी के विचारों को अपनाया और राष्ट्र में उनके विचारों की जरूरत बताई. स्वच्छता का मिशन इतना बड़ा अभियान बना कि इस तरह का श्रम सेवा आंदोलन आजादी के बाद नहीं ही देखा गया था. मित्रो... संबोधन के साथ उन्होंने एक बार में सारे राष्ट्र को इस अभियान से जोड़ लिया. 

ठीक उसी तरह जैसे सुभाष चंद्र बोस ने कहा था तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.  पीएम मोदी ने जब इसी तर्ज पर अपनी चुनावी रैली में कहना शुरू किया कि आप मुझे 60 महीने दीजिए, मैं आपके जीवन में शांति लाऊंगा. यह एक तरीके से लोगों में वही विश्वास जगाने जैसा था, जैसे लोग सुभाष चंद्र बोस के आह्वान में विश्वास जताते थे. एक उदाहरण उज्जवला योजना का भी है. मन की बात में पीएम मोदी ने सब्सिडी छोड़ने की बात की थी. लोगों ने सब्सिडी छोड़ी भी और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कई मंचों से ऐसा दावा करते हुए कह चुके हैं उज्जवला योजना ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित ईंधन की ओर बढ़ते कदम की योजना है, जिसका लाभ करोड़ों महिलाओं को मिल रहा है. 

एक रेडियो संदेश पर मिला जनसमर्थन
मन की बात के रेडियो संबोधन से मन एक बार फिर इतिहास में घूम जाता है. यह 1944 का दौर है. भारत में महात्मा गांधी आजादी की लड़ाई के अगुआ हैं. इसी दौरान एक दिन रंगून से एक रेडियो संबोधन प्रसारित होता है. यह संबोधन सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी के नाम किया था. इसी संदेश में उन्होंने गांधीजी को बापू कहकर पुकारा और राष्ट्रपिता बना दिया.

गौर से देखें तो यह संबोधन सिर्फ बापू के लिए नहीं था, यह हर उस आम भारतीय के नाम था जो अभी भी आजादी का लड़ाई से पूरी तरह नहीं जुड़ पाया था. यह सुभाष चंद्र बोस के करिश्माई व्यक्तित्व का ही असर था कि उन्होंने सिर्फ एक आवाज के सहारे करोड़ों की जनता को महात्मा गांधी के पीछे खड़ा कर दिया. एक प्रशासनिक अधिकारी में जन नेता के गुणों के होने की यह पराकाष्ठा थी. सुभाष चंद्र बोस की यही विरासत वर्तमान में पीएम मोदी के इर्द-गिर्द भी एक औरा बनाती है. 

अच्छाई किसी की भी हो, उसे अपना लेने की आदत
एक बात और... सुभाष चंद्र बोस में किसी की भी अच्छी बातों को अपना लेने की एक सहज ही आदत थी. इसके साथ ही वह हर किसी के क्रिया-कलापों पर बारीक नजर रखते थे. जब जर्मन तानाशाह हिटलर ने पहली मुलाकात में अपने हमशक्ल को नेताजी से मिलने भेजा तो सिर्फ उसके हाथ मिलाने और परिचय देने के तरीके से नेताजी ने पहचान लिया कि वह हिटलर नहीं है. 

अब दूसरी ओर नजर डालें तो पहले पीएम रहे नेहरू से आने वाले हर पीएम की कुछ न कुछ तुलना हुई ही है. बीते सालों में जब पीएम मोदी ने बच्चों और छात्रों से विशेष बातचीत की, शिक्षक दिवस पर उनसे मिले और परीक्षाओं से पहले उनका हौसला बढ़ाया तो इसे नेहरू के बच्चों के प्रेम वाले व्यक्तित्व को अपनाने वाला कहा गया.

गौर से देखें तो यह पहले पीएम नेहरू के व्यक्तित्व का एक अंश था, वास्तव में यह सुभाष की वही आदत थी जो उन्हें अलग बनाती है. किसी भी अच्छी बात को साफगोई से अपनाने की आदत.. फिर आप चाहे सैनिकों के साथ होली-दिवाली मनाने की बात देखिए, गलवान घाटी मामले के बाद उनका उत्साह बढ़ाने की बात देखिए. कोरोना के दौर में देश संभालने का नजरिया देखिए. थोड़े-थोड़े सुभाष भी नजर आते हैं.  

केंद्र सरकार 23 जनवरी 2021 को नेताजी की जयंती पराक्रम दिवस पर मना रही है. पीएम मोदी इस मौके पर पं. बंगाल पहुंचेंगे. इसके साथ इतिहास और राजनीति अपने नेताजी को खोजते हुए उनका पीछा कर रहे हैं.  देखते हैं कि उनकी यह खोज कहां तक पहुंचती है.

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