नई दिल्लीः केंद्र सरकार इस वर्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मना रही है. सुभाष चंद्र बोस ऐसी शख्सियत हैं जिनके बारे में आप जितना जानते जानते-पढ़ते और समझते हैं उतना ही कम पड़ता जाता है.
कुछ परिस्थिति वश और बहुत से राजनीतिक षड्यंत्रों का भी असर ऐसा हुआ कि इस महान क्रांतिवीर के जीवन के अंतिम पल आज तक रहस्य बने हए हैं. इस पर कई बार बातें हुईं, आयोग बने, जांच हुईं, बहसों और तर्कों के लंबे दौर चले, लेकिन यह सवाल जस का तस है.
नेताजी और निधन का सच?
बल्कि समय बीतते-बीतते इतना बड़ा बन चुका है कि सिर्फ इसी एक सवालिया निशान को केंद्र में रखते-रखते किताबों की खेप बाजारों में मौजूदगी दर्ज करा चुकी हैं. पन्नों और शब्दों की इसी भीड़ से अलग एक किताब और है 'सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा', इसे लेखक संजय श्रीवास्तव ने न सिर्फ शब्द दिए हैं, बल्कि बारीकी से इस बात की चर्चा भी की है कि आखिर नेताजी के निधन का सच क्या है?
क्या कहती है किताब?
किताब कहती है कि वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने हवाई हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन पर बरकरार संदेह को शांत करने के लिए तीसरे जांच आयोग का गठन किया. सुप्रीम कोर्ट के जज मनोज कुमार मुखर्जी को इस मामले में जांच करने का दायित्व सौंपा. इस जांच आयोग ने सुभाष से जुड़ी सैकड़ों फाइलें खंगाली. उन्होंने पूरे मामले की गंभीरता से लंबी पड़ताल की. इसके बाद मुखर्जी आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि नेताजी का निधन हवाई हादसे में नहीं हुआ था.
मुखर्जी आयोग ने जापान समेत कई देशों का दौरा किया, जिसमें रूस, ताइवान शामिल थे. आयोग के सामने कई लोगों ने मौखिक तौर पर यही बताया कि ताइवान में सुभाष चंद्र बोस का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, लेकिन आयोग को भरपूर कोशिश के बाद इससे संबंधित कोई दस्तावेज नहीं मिले. यहां तक की सुभाष के निधन से संबंधित अस्पताल या दाह संस्कार के दस्तावेज भी नहीं मिल पाए.
दाह संस्कार सुभाष का नहीं जापानी सैन्य अफसर का हुआ
स्थितियां इस कदर उलझी हुई थीं कि मुखर्जी आयोग को लगा कि सुभाष का निधन बेशक हुआ लेकिन हवाई हादसे में तो कतई नहीं. इस आयोग को ये भी लगा कि सुभाष बोस को जापान से सुरक्षित निकालने का कोई प्लान जरूर था, जिसे चुपचाप अंजाम दिया गया.
लेखक संजय श्रीवास्तव की किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा के अनुसार मुखर्जी आयोग का मानना था कि जिस शख्स को सुभाष चंद्र बोस मानकर दाह संस्कार किया गया, वो सुभाष थे ही नहीं बल्कि एक जापानी सैन्य अफसर ओचिरा था. उसी की अस्थियां जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी हैं. मुखर्जी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट भारतीय संसद को 17 मई 2006 को सौंपी. तब सत्ता में बैठी मनमोहन सिंह सरकार ने इसके निष्कर्षों का खारिज कर दिया.
किन पहलुओं पर जांच आयोग ने काम किया
इस जांच आयोग को जिन बिंदुओं पर काम करना था, वह ये थे
- क्या नेताजी जिंदा हैं या फिर मृत
- अगर उनकी मृत्यु हो चुकी है तो क्या ये प्लेन क्रैश में हुई, जैसा कि कहा जाता है.
- क्या जापानी मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की हैं या नहीं
- क्या उनकी मृत्यु अलग तरीके से और अलग जगह पर हुई. अगर ऐसा हुआ तो कब और कहां
- अगर वो जिंदा हैं तो कहां हैं
- आयोग ने इस बात पर भी जांच की कि सुभाष चंद्र बोस ने उस दिन कोई उड़ान भरी भी थी या नहीं.
कोई साक्ष्य मृत्यु का नहीं मिलता
जब मुखर्जी आयोग ने जांच करनी शुरू की तो उसे न तो नेताजी के निधन का प्रमाणपत्र मिला और न ही उनके अंतिम संस्कार का सर्टिफिकेट.
आय़ोग ने सवाल उठाया कि अगर नेताजी का निधन हुआ तो उनकी कोई परिस्थितिजन्य फोटो क्यों नहीं खींची गई, जिससे पार्थिव शरीर की पहचान हो पाती और ये एक साक्ष्य होता कि ये नेताजी की ही मृत देह थी.
हवाई हादसे का कोई दस्तावेज नहीं मिला
अगली बात जो इस पूरे मामले को संदिग्ध बनाती है, वह है प्लेन क्रैश का भी कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं होना. ताइपेई 25 अक्टूबर 1945 तक जापानियों के नियंत्रण में था. मुखर्जी आयोग ने विमान हादसे पर ये निष्कर्ष निकाले
- विमान हादसे को साबित करने वाले कोई प्रमाण नहीं है
- नेताजी का निधन विमान हादसे में साबित नहीं होता.
तीनों बाबाओं के बारे में जाना
इसके बाद मुखर्जी आयोग ने तमाम अन्य गवाहों से मुलाकात की. हालांकि तब तक काफी गवाहों की मृत्यु हो चुकी थी. आयोग ने देश में उन तीन बाबाओं के बारे में भी विस्तृत जांच की. ये जानने की कोशिश की कि क्या वो वाकई सुभाष चंद्र बोस थे. इसमें गुमनामी बाबा भी शामिल थे.
आखिरकार आयोग साफतौर पर माना कि गुमनामी बाबा समेत तीनों ही बाबा सुभाष नहीं थे. अन्य दो बाबाओं में शॉलीमारी आश्रम के साधू शारदानंद और ग्वालियर के करीब नागदा गांव के बाबा ज्योर्तिमय शामिल थे.
क्या था मुखर्जी आयोग का निष्कर्ष
इस किताब में पहली बार मुखर्जी आयोग समेत तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट विस्तार से दी गई है. मुखर्जी आयोग ने तमाम साक्ष्यों और जांच के आधार पर साफ कहा, बेशक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन हो चुका है लेकिन वो विमान दुर्घटना में नहीं मरे, जैसा कहा जाता है.
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