दिल्ली: 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर को तबीयत से उछालो यारों' दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां आज कलावती देवी पर सार्थक साबित हो रही हैं. सीतापुर में जन्मीं कलावती देवी ने महिला दिवस के अवसर पर उन सभी कम पढ़ी लिखी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिये अनूठा उदाहरण पेश किया है जो सामाजिक ताने बाने में उलझकर अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाती हैं. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया है. ये पुरस्कार उन्हें 4000 शौचालय बनाने के लिये दिया गया है.
जानिये कलावती की पूरी कहानी
सीतापुर जिले जन्मीं कलावती देवी की शादी महज 13 साल की उम्र में उनसे पांच से बड़े युवक से हुई थी. शादी के बाद वह पति के साथ कानपुर में राजा का पुरवा में आकर रहने लगीं. कलावती कभी स्कूल भी नहीं गई लेकिन उनके भीतर समाज के लिए कुछ करने की ललक बचपन से थी. राजा का पुरवा गंदगी के ढेर पर बसा था. करीब 700 आबादी वाले इस पूरे मोहल्ले में एक भी शौचालय नहीं था. सभी लोग खुले में शौच के लिए जाते थे. मिस्त्री का काम करते हुए ने शौचालय निर्माण का काम पूरी निष्ठा से किया.
आपको बता दें कि कलावती के पति की मौत हो चुकी है. बेटी और उसके दो बच्चे भी साथ रहते हैं. उनके दामाद की मौत भी हो चुकी है. तमाम तरह की कठिनाइयों का सामना करने के बाद भी कलावती ने समाज की बेहतरी के लिए शौचालय निर्माण कार्य जारी रखा. आज 58 साल की उम्र में कलावती 4000 से अधिक शौचालय बना चुकी हैं.
ईमानदारी से किया गया प्रयास कभी बेकार नहीं होता- कलावती
कलावती देवी का कहना हैं कि मैं जिस जगह पर रहती थी, वहां हर तरफ गंदगी ही गंदगी थी. लेकिन मुझे पक्का यकीन था कि स्वच्छता के जरिए हम इस स्थिति को बदल सकते हैं. मैंने शौचालय बनाने के लिए घूम-घूमकर एक-एक पैसा जुटाया. कलावती ने देश की बहन, बेटी और बहुओं को संदेश दिया कि समाज को आगे ले जाने के लिए ईमानदारी से किया गया प्रयास कभी बेकार नहीं होता है.
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