नई दिल्लीः हाल ही में बीती फरवरी में जब UP के अमरोहा की शबनम चर्चा में थी तब हरियाणा की एसटीएफ मेरठ की सड़कों पर भागदौड़ कर रही थी. उसके आगे-आगे दौड़ रहा था संजीव कुमार. संजीव कुमार के सिर था 8 लोगों की हत्या का दोष, दो लाख का इनाम, जेल से फरारी की गलती, IPC की किताब खोल ली जाए तो आधा दर्जन गुनाह और बढ़ जाएं. खैर, इस चोर पुलिस के खेल में पुलिस जीत गई, और यूवी क्लब (मेरठ) के सामने से संजीव पकड़ा गया.
हरियाणा का है मामला
संजीव की चर्चा से पहले शबनम (अमरोहा, यूपी) के नाम का जिक्र इसलिए किया क्योंकि जिन 8 लोगों की हत्या हुई थीं, संजीव ने वह अकेले नहीं की थी.
इसमें शामिल थी उसकी पत्नी सोनिया. हत्या हुई थी पूर्व विधायक रेलूराम और उनके परिवार की. सबसे बड़ी बात सोनिया विधायक रहे रेलूराम की बेटी है.
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इन लोगों की हुई थी हत्या
यानी अमरोहा कांड से बहुत पहले हरियाणा में एक बेटी ने अपने पति के साथ मिलकर पूरे परिवार को मौत दे दी थी. ये मामला हुआ था 24 अगस्त 2001 को, जब प्रॉपर्टी के लालच में सोनिया और संजीव ने मिलकर रेलूराम पुनिया, उनकी पत्नी कृष्णा, बेटे सुनील, बहु शकुंतला, बेटी प्रियंका को तो मौत के घाट उतार ही दिया था. चार साल के पोते लोकेश, ढाई साल की पोती शिवानी और डेढ़ माह की प्रीती की हत्या करने में भी दोनों के हाथ नहीं कांपे थे.
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क्यों हुआ हत्याकांड
हालांकि रेलूराम सोनिया के सगे पिता नहीं थे. रेलूराम ने कृष्णा से दूसरी शादी की थी. सोनिया कृष्णा के पहले पति की संतान थी. पुलिस ने सोनिया, संजीव, उसके माता पिता, भाई, मामा के लड़के और चाचा को गिरफ्तार किया था. लगातार तीन साल तक चली सुनवाई के बाद 2004 में हरियाणा में सत्र अदालत ने संजीव और सोनिया को दोषी माना था.
उनके बाकी रिश्तेदार बरी हो गए. सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई.
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इतना पुराना है मामला
इसके बाद मामला 2005 में हाईकोर्ट में गया वहां इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. हालांकि हाई कोर्ट के फैसले को जब 2007 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फिर मौत की सजा सुनाई. इसके बाद अभियुक्तों ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई थी. तब राष्ट्रपति थीं प्रतिभा पाटिल, हालांकि उन्होंने इस पर कोई फैसला नहीं किया. इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने कई दया याचिकाएं खारिज कीं थीं, उनके पास भी यह याचिका बिना फैसले के पड़ी रही. इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2019 में इस याचिका को खारिज कर दिया था.
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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खारिज की याचिका
राष्ट्रपति की दया याचिका खारिज करने के बाद तो यह मामला और भी सुर्खियों में आ गया. दरअसल फरीदाबाद जेल में सोनिया तो थी, लेकिन संजीव फरार था. वह पैरोल के बहाने बाहर आया था और फरार हो गया था. सोनिया भी फरारी के फिराक में थी, लेकिन दोनों की यह योजना सफल नहीं हो पाई.
संजीव और सोनिया दोनों ही बेहद शातिर थे. फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद अंबाला जेल में रहते हुए दोनों आतंकवादियों के संपर्क में आए थे. यहां दोनों ने जेल ब्रेक की कोशिश की थी और सुरंग बना डाली थी. उसके बाद इन दोनों को यमुनानगर जेल में शिफ्ट कर दिया गया था.
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एक तरफ जहां शबनम की फांसी की तारीख अपने ऐलान का इंतजार कर रही है, वहीं हाल ही में संजीव के पकड़े जाने के बाद एक और फांसी का तख्ता तैयार होने की कवायद हो रही है. अगर ये फांसियां होती हैं तो शबनम और सोनिया आजादी के बाद फांसी पाने वाली पहली और दूसरी महिलाएं बन जाएंगीं.
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