मौत की तरफ धकेल रहा है ये ऑनलाइन नशा, PUBG तो महज एक उदाहरण

एक दिन पहले खबर आई कि पबजी खेलते हुए एक किशोर ने जहर पी लिया. लेकिन ऑनलाइन नशे की ये दीवानगी कोई नई नहीं है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब ऑनलाइन गेमिंग या एक्टिविटी का नशा जिंदगी पर भारी पड़ जाता है.  

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Dec 12, 2019, 07:56 PM IST
    • पबजी खेलते हुए केमिकल पी गया था युवक, हुई मौत
    • एक समस्या यह भी है कि ऑनलाइन गेम्स के कारण हो रही मौतों का कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है
मौत की तरफ धकेल रहा है ये ऑनलाइन नशा, PUBG तो महज एक उदाहरण

नई दिल्लीः नशा... यह शब्द पढ़ते ही आपका ध्यान हो सकता है कि केवल अल्कोहल की तरफ जाए. थोड़ा शायराना होंगे तो आप इश्क की गलियों को भी याद कर सकते हैं. लेकिन इन दोनों में ही जो एक बात कॉमन है वह है सुध-बुध खो बैठना. अल्कोहल पीने और प्यार में पड़ने के बाद यह सिचुएशन होना आम बात है. लेकिन हम लौटते हैं सुध-बुध खो देने पर. बात ये है कि यह खास क्रिया आजकल ऑनलाइन हो रही है. ऑनलाइन ऐसे कि लड़के-लड़कियां पबजी खेल रहे हैं, खूब खेल रहे हैं, इतना खेल रहे हैं कि क्या बताएं कितना खेल रहे हैं. ऐस खेल रहे हैं कि फिर मोहे सुध-बुध नाय रही तन-मन की, ये तो जाने दुनिया सारी वाला सीन बन रहा है. मतलब नशा खतरनाक लेवल वाला है.

पबजीः मर गई मैं, मिट गई मैं, हो गई मैं तेरी दीवानी वाला सीन है
नशा ऐसा है कि वन क्लिक, वन टच वाली इस पीढ़ी को कुछ समझ नहीं आ रहा है. बस कान में घुसाए ईयरफोन और दोनों करकमलों में धारण किया फोन, और पिले पड़े हैं धक....धक...धकक धधधधक.... 

ऐसे ही एक 20 साल का लड़का ट्रेन से कहीं जा रहा था. दोस्त के साथ पबजी खेल रहा था. खेलने में ऐसा मशगूल हुआ कि इस बीच गलती से केमिकल पी गया. पीते ही अहसास हो गया उसने पानी की जगह जहर पी लिया है. बचाओ-बचाओ कि गुहार लगाई, लेकिन ट्रेन उस समय बीहड़ में थी. जबतक आगरा पहुंचे तब तक उसकी मौत हो गई. 

ऐसी कई जगहों से शिकायत आ चुकी हैं कि पबजी खेलने वाले लड़के किसी बात का ध्यान नहीं रख रहे हैं. इतना मशगूल रहते हैं इस खेल की दुनिया में आस-पास का सब भूल जाते हैं. हकीकत से कट जाते हैं. 

PUBG नया नहीं है, पोकेमॉन गो याद है 
पागलपन की हद तक अपना दीवाना बनाने में पबजी नया नहीं है. इसके पहले जनता पोकेमॉन गो के पीछे भाग रही थी. 2016 में इस ऑनलाइन गेम को डाउनलोड करने वाले लोगों की संख्या डेटिंग एप टिंडर डाउनलोड करने वाले लोगों से अधिक था. सीधी सी बात है कि प्यार वाला जुनून ऑनलाइन गेम वाले जुनून से पिछड़ गया था. 5 जुलाई 2016 को लॉन्च हुआ यह गेम 10 दिन में एक करोड़ से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका था.

दुनियावाले इसके इतने दीवाने थे कि पोकेमॉन पकड़ने की कोशिश में ऐसी-ऐसी हरकतें कर रहे थे कि कहना ही क्या. कोई किसी और के घर में दाखिल हो जाता था, कई व्यस्त ट्रैफिक की परवाह किए बगैर सड़कों पर घूमने लगे थे, कोई गड्ढे में गिर गया. किसी से टकरा गया. मतलब, लोग खेल में इतने मशगूल हो जाते थे कि उन्हें ख्याल ही नहीं रहता कि वे कहां जा रहे हैं.

टिकटॉक वाले तो गजब धुम्मा ठाए हैं...
इंडिया में किसी चायनीज चीज को भयंकर प्यार मिला है तो वह है टिकटॉक. इसकी दीवानगी इतनी है कि जब अप्रैल 2019 में जब इस पर बैन लगा था तो दुनिया थम सी गई थी. फिर हफ्ते भर बाद जब बैन हटा तो इसके चाहने वालों के सांस वापस आई. इस चीनी एप को लेकर लड़के-लड़कियां दोनों पागल हैं. उल-जुलूल हरकतें करते हैं, विडियो डालते हैं. लड़का से लड़की बन जाते हैं. बिस्किट में छेद करके गहने पहन लेते हैं. टिकटॉक स्टार बन जाते हैं.

नेता लोग इनको पार्टी का टिकट दे देते हैं तो चुनाव भी लड़ लेते है. और टिक टॉक बनाते-बनाते मर भी जाते हैं. कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है इससे होने वाली मृत्युदर के नापने का, लेकिन रोमांचक विडियो की चाहत ने कई जानें ली हैं. 

 

गेम्स के लिए इतनी दीवानगी, क्यों, मिलता क्या है?
दरअसल, हर आदमी अपनी जिंदगी में रोमांच चाहता है. किसी न किसी तरीके से इसे पाने की कोशिश करता है. आर्थिक रूप से बढ़ते हुए अब जबकि हर आदमी खुद में एक बाजार हो चुका है तो वह मार्केटिंग के लिए सिर्फ एक प्रोडक्ट है. बीते कुछ सालों में यह चर्चा तेजी से बढ़ी है कि एक आदमी जीवन में औसतन कितना खुलकर जीता है. कुछ अलग करने का यही जुनून गेमिंग की ओर ले जा रहा है. क्योंकि लाख चाहने के बाद भी आप वर्कप्लेस से समझौता नहीं कर सकते.

तो इस फ्रस्टेशन को इस तरह के गेम बखूबी दूर करते हैं, लेकिन यह सिर्फ भ्रम का जाल है. ठीक वैसा ही जैसा कि अल्कोहल में होता है. आप उसे थोड़ी मात्रा से शुरू करते हैं और फिर उसके आदी बन जाते हैं. 

विशेषज्ञ भी मानते हैं इसे
मनोविज्ञान पर कई तरह की शोध करने वाले वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग खेलते वक्त वही डोपामाइन रसायन निकलता है जो कि अल्कोहल की स्थिति में निकलता है. इससे दिमाग की सोचने और प्रतिक्रिया देने की व्यवस्था धीमी पड़ जाती है. यही वजह है कि बच्चे ही नहीं बड़े भी ऑनलाइन गेम पबजी, पोकमॉन गो के शिकस्त में हैं.

यह उनके लिए स्ट्रेस बस्टर की तरह है, लेकिन असल में यह उनके लिए स्ट्रेस की एक और वजह है. क्योंकि इससे लंबे समय तक के लिए मन अशांत रहता है. धीरे-धीरे यही स्थिति स्वाभाविक चिड़चिड़ेपन की ओर ले जाती है. 

दिल्ली सरकार ने जारी किया था नोटिस
दिल्ली सरकार ने फरवरी 2019 में दिल्ली के स्कूलों को नोटिस भेजा था. लिखा था कि इस तरह के ऑनलाइन गेम्स बच्चों को मानसिक रोगी बना रहे हैं. इस लिस्ट में PUBG अकेले नहीं था, इसके साथ फोर्टनाइट. ग्रैंड थेफ्ट ऑटो, गॉड ऑफ वॉर, हिटमैन है और पोकेमॉन गो जैसे गेम थे. यह सभी गेम्स ऑनलाइन खेले जाते हैं, दिल्ली सरकार की DCPCR यानी दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने यह नोटिस जारी किया था.

नोटिस में कहा गया था कि यह गेम बच्चों के लिए बहुत खतरनाक हैं. ऐसे गेम्स महिला विरोधी हैं, इनमें नफरत, छल, कपट और बदला लेने की भावना कूट-कूट कर भरी होती है. बच्चे जिस उम्र में नई चीजें सीखते हैं, उस उम्र में इस तरह की गेम्स उनके जीवन और दिमाग पर निगेटिव प्रभाव डाल रहे हैं. 

थरूर की बात सुनने लायक थी, वह एक बिल का प्रस्ताव लाए थे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने ऑनलाइन गेम्स को नियंत्रित करने की मांग संसद में उठाई थी. उन्होंने 17 जनवरी 2019 को लोकसभा में स्पोर्ट्स (ऑनलाइन गेमिंग एंड प्रिवेंशन ऑफ फ्रॉड) बिल पेश किया था. तर्क था कि सरकार ऑनलाइन गेमिंग को रेगुलरेट करे और इसे ऐसे विकसित किया जाए कि यह बच्चों के लिए उपयोगी साबित हो सके. 

आम धारणा है कि ऑनलाइन गेम से बच्चे बिगड़ते हैं जो कि सही भी है, लेकिन इसके साथ एक जरूरी तर्क है कि वह तकनीक के साथ दोस्ताना और सहयोगी हो रहे हैं. शशि थरूर का कहना था कि खेलने से मना किए जाने के बजाय बच्चों के खेल के जरिये सही दिशा में मोड़ा जा सकता है. बिल में प्रावधान था कि इसके तहत ऑनलाइन गेम खिलाने वाली कंपनियों को पहले लाइसेंस लेना होगा. इस बिल का फायदा ये होता कि इससे किसी संदिग्ध गेम और किसी ऑनलाइन गेम में होने वाली संदिग्ध गतिविधि को आसानी से ट्रैक किया जा सकता.

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