नई दिल्लीः साल 2005 में फिल्म आई थी 'द ब्लू अम्ब्रेला' पर्दे पर दिखाने के लिए इस फिल्मी कहानी में निर्देशक विशाल भारद्वाज ने रचनात्मक छूट ली थी, लेकिन असल कहानी लिखी थी रस्किन बॉन्ड ने. कहानी में एक नीली छतरी का किरदार मुख्य है और जिस प्यारी सी पहाड़ी लड़की के हाथ में वह छतरी है, वह बहुत ही सरल और सहज है.
खुशदिल मिजाज हैं रस्किन
बस इतने ही सरल हैं रस्किन बॉन्ड. 86 साल की उम्र, चेहरे पर आ गई झुर्रियों के बीच छिपे होठों से खुलते ठहाके और बीमारी के बावजूद हमेशा खुशदिली को ही ओढ़ने-बिछाने वाले बॉन्ड, जितने वह बच्चों को प्यारे के हैं और उतना ही वह खुद बच्चों को प्यार करते हैं.
दो-ढाई साल पहले वह नोएडा के एक स्कूल फंक्शन में आए थे. लोगों ने उनकी बीमारी का हाल पूछा तो बोले हां-ठीक हूं, दवा चल रही है. दवा क्या- बोले- दवा...अरे वही जलेबियां, इमरतियां, रसगुल्ले और क्या- मैं ये न खाऊं तो बीमार पड़ जाऊं. और उस हॉल में एक बार फिर ठहाके गूंज उठे.
बॉन्ड की खास पसंद
बॉन्ड को दो चीजें बेहद पसंद हैं. एक तो हल्की-हल्की पहाड़ी बारिश और इन बारिशों में गर्मा-गर्म जलेबियां मिल जाएं तो कहना ही क्या, दो दिन पहले ही उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर साझा कि जिसमें वह जलेबी खा रहे हैं और मसूरी में हो रही है वही हल्की बारिश. उन्होंने लिखा -
“With my loved one, on a rainy day in Mussoorie and fresh jalebi from Beena's kitchen,”
एकाकी रहा है बचपन
बच्चों के मनोभावों को पन्ने पर उतारने वाले रस्किन का बचपन खुद एकाकी और उदासी से भरपूर रहा था. फिर भी उनकी कलम की स्याही हमेशा खुशदिली ही बिखेरती रही. एंग्लों इंडियन परिवार में जन्में रस्किन को बचपन से ही भारत बहुत रास आता था. खासकर यहां की पहाड़ी वादियां और उनमें भी मसूरी.
ब्रिटिश आर्मी में थे दादा
ब्रिटिश आर्मी में भर्ती रस्किन के दादा 1880 में भारत आए थे. उन्होंने एक भारतीय महिला से शादी की, जिससे बॉन्ड के पिता जन्में और उन्होंने एक एंग्लो-इंडियन से शादी की, जहां 19 मई 1934 को बॉन्ड का जन्म हुआ. हालांकि यह परिवार बहुत हंसी-खुशी वाला नहीं रहा. बॉन्ड के माता-पिता का तलाक हो गया और काफी बचपन में ही पिता की मृत्यु हो गई. 17 साल की उम्न में रस्किन बॉन्ड इंग्लैंड भी गए, लेकिन जल्द ही भारत लौट आए.
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रस्किन कोमल भावनाओं को समझने वाले
इसके बाद तो वह भारतीयता के रंग-ढंग में ऐसे रंगे कि यहां का मौसम-वादियां, घटाएं, धूप, नदी पर्वत और छोटे कीड़े भी उनकी कहानियों का हिस्सा बनते चले गए. उनकी कहानियों में नैतिकता का कोई लोड न होते हुए भी अनैतिक कभी कुछ नहीं रहा.
वह रस्किन ही हैं जो 17 साल के एक किशोर के मन को पढ़ सकते हैं. वह जो कि किशोरपन की दहलीज लांघ कर 18वीं की गिरफ्त में जाने ही वाला है. जो प्रेम को जानता नहीं है, लेकिन इस जटिल विषय की किताब खोलना ही चाहता है. नाइट ट्रेन एट देओली बड़ी ही खूबसूरती और कोमलता से इस अहसास को जगाती है.
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