यूपी: सभी राजनीतिक दलों को घोषणा पत्र से गायब ये दो मुद्दे, पर जनता बेहद चिंतित

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 2019 में स्वीकार किया था कि जलवायु परिवर्तन से राज्य के गेहूं, मक्का, आलू और दूध के उत्पादन में कमी आने की उम्मीद है. लेकिन यूपी में इस पर कोई बात नहीं हो रही है. इस साल के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एक एनजीओ द्वारा मतदाताओं की धारणा पर एक सर्वेक्षण में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे थे.   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 12, 2022, 01:02 PM IST
  • उत्तर प्रदेश में कुदरत के कहर के बीच भी नेता चिंतित नहीं
  • राज्य में बढ़ते तापमान के बावजूद यह मुद्दा पूरी तरह से ठंडा है
यूपी: सभी राजनीतिक दलों को घोषणा पत्र से गायब ये दो मुद्दे, पर जनता बेहद चिंतित

लखनऊ: कहते हैं कि यूपी की हवा में राजनीति है. लेकिन यहां की हवा पर कोई राजनीति नहीं कर रहा है. राज्य में बढ़ते तापमान के बावजूद यह मुद्दा पूरी तरह से ठंडा है. हम बात कर रहे हैं जलवायु परिवर्तन की. भले ही दुनिया जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभाव से संबंधित मुद्दों से जूझ रही है, लेकिन यूपी में इस पर कोई बात नहीं हो रही है. पड़ोसी उत्तराखंड में ग्लेशियरों का पिघलना जो उत्तर प्रदेश में अनियमित और बेमौसम अत्यधिक बारिश का कारण बनेगा. लेकिन यहां की राजनीति पर इसका कोई असर नहीं है.

एक सर्वेक्षण में महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलासा
इस साल के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एक एनजीओ द्वारा मतदाताओं की धारणा पर एक सर्वेक्षण में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे थे. 

घोषणा पत्र में इसकी कोई घोषणा नहीं
सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्र में इन मुद्दों के बारे में एक शब्द भी नहीं बताया गया. जलवायु परिवर्तन का किसानों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, लेकिन जब राजनीतिक नेताओं ने किसानों की आय बढ़ाने के बारे में विस्तार से बात की, तो उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया. जलवायु परिवर्तन पार्टियों के लिए एक राज्य-स्तरीय प्राथमिकता प्रतीत नहीं होता है.

क्या कहते हैं भाजपा प्रवक्ता
भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, "यह राज्य विधानसभा चुनाव का मुद्दा नहीं है, इसलिए लोक कल्याण संकल्प पत्र 2022 में इसका जिक्र नहीं है. पर इसका मतलब यह नहीं है कि एक पार्टी के तौर पर हमें कोई सरोकार नहीं है. समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं."

आप के मेनिफेस्टो से जलवायु परिवर्तन गायब
आम आदमी पार्टी के लिए, जो दिल्ली में अपनी प्रदूषण नियंत्रण रणनीति के लिए चर्चा में रही है, उसके घोषणापत्र के अंतिम पृष्ठ में पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित सामान्य मुद्दों का उल्लेख है, लेकिन जलवायु परिवर्तन का उल्लेख नहीं है. आप प्रवक्ता वैभव माहेश्वरी ने माना कि यह विषय आम आदमी पार्टी के समग्र पब्लिक-फेसिंग वाले चुनाव अभियान से गायब है क्योंकि 'हम उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो लोगों के लिए तत्काल चिंता का विषय हैं. मैं स्वीकार करता हूं कि जलवायु और प्रदूषण का मुद्दा गायब है. लेकिन एक बार सत्ता में आने के बाद, हम विषय विशेषज्ञों के इनपुट के साथ प्रासंगिक नीतियों को तैयार, संशोधित और लागू करके बेहतर वातावरण सुनिश्चित करेंगे."

सपा, कांग्रेस और बसपा का क्या है कहना
समाजवादी पार्टी का चुनाव घोषणापत्र 22 प्रस्तावों के साथ आया और उनमें से कोई भी विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है. पार्टी शहरी विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण को अधिक व्यापक रूप से जोड़ती है. सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा था, "सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पर्यावरण इंजीनियर के तौर पर पढ़ाई की थी और 'पर्यावरण और बेहतर वायु गुणवत्ता हमारे लिए हमेशा एक मुद्दा रहा है.' राष्ट्रीय लोकदल के सचिव अनिल दुबे ने कहा, "हमारा ध्यान औद्योगिक प्रदूषण की जांच, वनीकरण को बढ़ावा देने और एक आकर्षक इलेक्ट्रिक-वाहन नीति पेश करने पर है."

कांग्रेस के घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन को प्राथमिकता के मुद्दे के रूप में सूचीबद्ध किया गया था लेकिन यह विषय पार्टी के समग्र अभियान से गायब था. प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा, "हम जनता की चिंता के इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर कैसे आंखें मूंद सकते हैं? छतों पर चिल्लाने की जरूरत नहीं है, लेकिन हमारे नेतृत्व को इस मुद्दे की चिंता है." बहुजन समाज पार्टी इस विषय पर टिप्पणी करने से भी इनकार करती है.

क्या कहते हैं पर्यावरणविद्
पर्यावरणविद् सीमा जावेद ने कहा, "जलवायु परिवर्तन शमन एक वैश्विक समस्या हो सकती है लेकिन इसे स्थानीय स्तर पर हल करना होगा. भारत अपने जलवायु लक्ष्यों को राज्यों के योगदान के बिना प्राप्त नहीं कर सकता है. इसके लिए राज्य स्तर पर भी प्राथमिकता होना महत्वपूर्ण है."

यूपी पर जलवायु परिवर्तन का असर
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि प्रधान है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 2019 में स्वीकार किया था कि जलवायु परिवर्तन से राज्य के गेहूं, मक्का, आलू और दूध के उत्पादन में कमी आने की उम्मीद है.

रिपोर्ट डराने वाली
अगस्त 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि "बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से (सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र) नदियाँ उफान पर आ जाएंगी और बदली हुई मौसमी खेती, अन्य आजीविका और जलविद्युत क्षेत्र को प्रभावित करेगी, जबकि नीचे की ओर बाढ़ का कारण बनेगी." 2021 की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है, "गंगा बेसिन में, इसके फिर से भरने योग्य भूजल का 70 प्रतिशत से अधिक अब तक निकाला जा चुका है, क्योंकि राज्य घनी आबादी वाला और सघन खेती वाला है."

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