नई दिल्ली: Waqf Board Rights: केंद्र सरकार आज संसद में वक्फ बोर्ड संशोधित बिल ला सकती है. इसमें वक्फ बोर्ड के अधिकारों को सीमित करने और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड अधिनियम में 40 से ज्यादा संशोधन कर सकती है. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वक्फ बोर्ड के कई फैसलों में कोर्ट का हस्तक्षेप भी नहीं होता. इसके पीछे कांग्रेस की नरसिम्हा राव का एक फैसला माना जाता है. आइए, जानते हैं कि कांग्रेस के किस फैसले से वक्फ बोर्ड इतना पावरफुल हुआ?
अदालत का हस्तक्षेप भी नहीं
सबसे पहले तो ये समझ लें कि वक्फ बोर्ड भारत की ताकतवर संस्थाओं में से एक है. यह इतना पावरफुल है कि इसकी संपत्ति की जांच न तो राज्य सरकार कर सकती है, न केंद्र कर सकती है और न ही सुप्रीम कोर्ट. वक्फ एक्ट के सेक्शन 85 कहता है कि बोर्ड के फैसलों को अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती है.
1954 में बना था वक्फ बोर्ड
वक्फ बोर्ड एक्ट साल 1954 में बना था. तब जवाहर लाल नेहरू की सरकार वक्फ एक्ट लेकर आई थी. हालांकि, फिर इसे निरस्त कर दिया गया था. साल 1955 में नया वक्फ एक्ट लाया गया. इसी अधिनियम में वक्फ बोर्ड को कुछ अधिकार दिए गए. फिर साल 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद बना. ये सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन था. यह वक्फ बोर्ड से जुड़े कार्यों के लिए केंद्र सरकार को सलाह देता था.
कब मिले असीमित अधिकार?
वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार 30 साल बाद यानी 1995 में कांग्रेस की ही सरकार में मिले. तब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उन्होंने वक्फ एक्ट में बदलाव करते हुए बोर्ड को जमीन अधिग्रहण के अधिकार दिए. हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की इजाजत दी. यदि वक्फ की किसी संपत्ति को लेकर विवाद है तो ट्रिब्यूनल कोर्ट का दरवाजा भी नहीं खटखटाया जा सकता. वक्फ अधिनियम 1995 (2013 में संशोधित) की धारा 40 कहती है कि कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं, इसका फैसला करने का अधिकार राज्य वक्फ बोर्ड के पास होगा.
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