नई दिल्ली: Charan Singh Jayanti: 'चौधरी साहब गांव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूंद का असर जानने वाले नेता थे', यह बात लेखक जाबिर हुसैन ने लिखी थी. चौधरी चरण सिंह को परिभाषित करने के लिए इससे बेहतर पंक्ति नहीं हो सकती. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को लोग राजनेता न कहकर किसान नेता कहते हैं, यह उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धी रही है. दिल्ली के प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकर भी चरण सिंह यूपी के बागपत में रहने वाले किसानों की दिक्कतों से वाकिफ थे. आज चौधरी चरण सिंह की 121वीं जयंती है.
जब रो पड़े थे चौधरी चरण सिंह
लेखक जाबिर हुसैन कहते हैं कि जब प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक डॉ सालिम अली पक्षियों को बचाने के लिए चरण सिंह से मिले तो उनकी आंखों में आंसू आ गए. दरअसल, केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क में रेगिस्तानी हवा के झोंको से पक्षियों की मौतें हो रही थीं. पक्षी वैज्ञानिक डॉ सालिम अली का इस ओर ध्यान गया और वे इसके निवारण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पास गए. जब उन्होंने चरण सिंह को इस स्थिति के बारे में अवगत कराया तो चौधरी की आंखों में आंसू आ गए.
'अब न सालिम अली रहे, न चौधरी साहब'
जाबिर हुसैन लिखते हैं कि आज सालिम अली नहीं हैं. चौधरी साहब भी नहीं हैं. कौन बचा है, जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव का संकल्प लेगा? कौन बचा है, जो अब हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा.
नोट- यह किस्सा लेखक जुबैर खान की रचना 'सांवले सपनों की याद' से लिया गया है.
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