आखिर क्यों चुनाव आयोग ने छीना TMC, NCP और CPI से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा, जानें क्या कहता है नियम

Election Commission snatch status of national party: भारत में राजनीतिक पार्टियां दो स्तर पर काम करती हैं, एक क्षेत्रीय दल और दूसरा राष्ट्रीय दल. चुनाव आयोग के नियम के अनुसार एक क्षेत्रीय दल प्रमोट होकर राष्ट्रीय दल बन सकता है तो वहीं पर राष्ट्रीय दल भी डिमोट होकर क्षेत्रीय दल बन सकता है

Written by - Vineet Kumar | Last Updated : Apr 11, 2023, 10:09 AM IST
  • इन राजनीतिक पार्टियों के दर्जे में हुआ बदलाव
  • आखिर क्यों इन दलों से छिना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?
आखिर क्यों चुनाव आयोग ने छीना TMC, NCP और CPI से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा, जानें क्या कहता है नियम

Election Commission snatch status of national party: भारत में राजनीतिक पार्टियां दो स्तर पर काम करती हैं, एक क्षेत्रीय दल और दूसरा राष्ट्रीय दल. चुनाव आयोग के नियम के अनुसार एक क्षेत्रीय दल प्रमोट होकर राष्ट्रीय दल बन सकता है तो वहीं पर राष्ट्रीय दल भी डिमोट होकर क्षेत्रीय दल बन सकता है. सोमवार की शाम को चुनाव आयोग ने इसी का बड़ा उदाहरण देते हुए देश के तीन राष्ट्रीय दलों को डिमोट कर उनसे नेशनल पार्टी का दर्जा वापस ले लिया है और अब वो सिर्फ क्षेत्रीय दल रह गये हैं.

इसके अलावा चुनाव आयोग ने दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी को प्रमोट कर क्षेत्रीय से राष्ट्रीय दल का दर्जा दे दिया है तो वहीं पर दो क्षेत्रीय दलों से उनके क्षेत्रीय पार्टी होने का दर्जा भी छीन लिया है. इसके बाद ये दोनों पार्टियां एक रजिस्टर्ड गैर मान्यता प्राप्त पार्टी बन कर रह गई है. ऐसे में यह सवाल आता है कि आखिर राजनीतिक दलों को ये दर्जा कैसे मिलता है और किस वजह से प्रमोशन या डिमोशन होता है. इसके नियम क्या हैं और इससे क्या फायदा या नुकसान होता है.

इन राजनीतिक पार्टियों के दर्जे में हुआ बदलाव

उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने बंगाल की त्रिणमूल कांग्रेस (TMC), सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) और महाराष्ट्र की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) से राष्ट्रीय दल का दर्जा छीन लिया है तो वहीं पर आंध्र प्रदेश में भारत राष्ट्र समिति (BRS) और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल (RLD) से क्षेत्रीय दल का दर्जा वापस ले लिया है.

बता दें कि चुनाव आयोग सिंबल ऑर्डर 1968 के तहत देश की राष्ट्रीय और राज्य की राजनीतिक पार्टियों के स्टेटस की समीक्षा करता आ रहा है. 2019 के बाद से चुनाव आयोग ने अब तक 16 राजनीतिक दलों के स्टेटस में बदलाव करते हुए प्रमोशन दिया है तो वहीं पर 9 राष्ट्रीय/राज्य राजनीतिक दलों से उनके मौजूदा स्टेटस को छीना है.

जानें क्या कहता है नियम

चुनाव आयोग के नियम के अनुसार किसी भी राजनीतिक पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा इस बात से नहीं दिया जाता है कि वो कितनी बड़ी है बल्कि चुनावों के दौरान उसके प्रदर्शन के आधार पर तय किया जाता है. नियमानुसार अगर किसी भी राजनीतिक दल को देश के 4 या उससे ज्यादा राज्यों में 6 फीसदी से ज्यादा वोट मिलता है या फिर 3 राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 3 फीसदी सीट मिलती है या फिर उसे 4 राज्यों में क्षेत्रीय दल का दर्जा प्राप्त हो तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है.

आखिर क्यों इन दलों से छिना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?

TMC, NCP और CPI राजनीतिक दलों से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने पर चुनाव आयोग ने साफ किया कि इन दलों को पर्याप्त मौके दिये गये लेकिन इसके बाद भी उनका वोट शेयर प्रतिशत 6 प्रतिशत से नीचे रहा है.

पिछले 2 संसदीय चुनाव और 21 राज्य विधानसभा चुनावों में इन राजनीतिक दलों को पर्याप्त मौके दिये गये लेकिन रिव्यू करने के बाद इनके प्रदर्शन में जो गिरावट दिखी वो नियमानुसार राष्ट्रीय दल की परिभाषा पर खरा नहीं उतर रहा था. इसके चलते उनका स्टेटस छीन लिया गया है, हालांकि ये दल अगले चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस हासिल कर सकते हैं.

इन राजनीतिक दलों का बढ़ा कद

चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से सिर्फ उनका स्टेटस छीना नहीं बल्कि कुछ दलों को क्षेत्रीय पार्टी का भी दर्जा दिया गया है जिसमें नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को नगालैंड में तो तृणमूल कांग्रेस और वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी को मेघालय में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा मिला है.

इनके अलावा टिपरा मोथा को त्रिपुरा में मान्यता प्राप्त राज्य राजनीतिक दल का दर्जा दिया गया है. हाल ही में समाप्त हुए नॉर्थईस्ट विधानसभा चुनाव के दौरान टिपरा मोथा पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) और वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी ने त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में अच्छा प्रदर्शन किया है जिसके चलते उनके स्टेटस में बदलाव किया गया है.

आखिर क्या होते हैं इन स्टेटस के फायदे

राष्ट्रीय पार्टी का अपना एक खास चुनाव चिन्ह होता है जिसे देश भर में कोई दूसरी पार्टी इस्तेमाल नहीं कर सकती है. अगर पार्टी मान्यता प्राप्त, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्टेटस रखती है तो इन दलों को नामांकन दाखिल करने के लिए केवल एक प्रस्तावक (proposer) की आवश्यकता होती है. स्टेटस प्राप्त इन दलों को चुनाव आयोग की तरफ से (मतदाता सूची के संशोधन की दशा में) मतदाता सूची के दो सेट मुफ्त में दिए जाते हैं तो वहीं पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को आम चुनावों के दौरान मतदाता सूची की एक लिस्ट मुफ्त मिलती है.

पार्टी कार्यालय बनाने के लिये स्टेटस प्राप्त दलों को सरकार की ओर से जगह दी जाती है. चुनाव के दौरान प्रचार के लिये राज्य और राष्ट्रीय दल 40 स्टार प्रचारक रख सकते हैं जबकि बाकी दलों के लिये ये संख्या 20 है. इतना ही नहीं स्टार प्रचारकों का ट्रैवल एक्सपेंस पार्टी के उम्मीदवारों के चुनाव खर्च के हिसाब में भी नहीं जोड़ा जाता है. चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिये राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर टीवी, रेडियो और मीडिया के अन्य माध्यम के इस्तेमाल की इजाजत दी जाती है.

देश में अभी कितनी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टी?

मौजूदा समय में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टी है जिसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), बहुजन समाज पार्टी (BSP), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPM), नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और आम आदमी पार्टी (AAP) शामिल है. गौरतलब है कि भारत में चुनाव आयोग सभी राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन कराती है और प्रदर्शन के हिसाब से फिलहाल इन्हें 3 कैटेगरी में बांटा गया है.

जिन दलों को चुनाव आयोग की ओर से नेशनल का दर्जा दिया गया है उन्हें राष्ट्रीय पार्टी कहते हैं तो वहीं पर जिन्हें राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा मिला हो उन्हें क्षेत्रीय पार्टी कहा जाता है. फिलहाल भारत में अभी 50 से ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियां हैं.

क्या होते हैं गैर मान्यता प्राप्त दल

भारत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के अलावा गैर मान्यता प्राप्त दल भी होते हैं जो कि ऐसी पार्टियां होती हैं जो रजिस्टर्ड तो होती हैं, लेकिन इन्हें मान्यता नहीं मिली होती. इसके पीछे इन दलों का नयापन होता है या फिर वोट प्रतिशत इतना कम होता है कि उन्हें क्षेत्रीय पार्टी में शामिल नहीं किया जा सकता है. यूपी में राष्ट्रीय लोक दल इसी कैटेगरी में शामिल हुआ है.

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