Gujrat: आखिर पटेल को ही सीएम बनाना क्यों है बीजेपी की मजबूरी? मोदी कैसे थे इससे अलग

हार्दिक पटेल और कांग्रेस ने बीजेपी को काफी टक्कर दी थी. हालांकि बीजेपी पिछले चुनाव में अपना किला बचाने में सफल रही थी लेकिन इस बार वो पहले से ही ये समीकरण साध लेना चाहती है.   

Written by - Akash Singh | Last Updated : Sep 12, 2021, 06:47 PM IST
  • जानिए क्या है इसका बड़ा कारण
  • मोदी ने कैसे इसपर पाई थी विजय
Gujrat: आखिर पटेल को ही सीएम बनाना क्यों है बीजेपी की मजबूरी? मोदी कैसे थे इससे अलग

नई दिल्लीः गुजरात में शनिवार को हुए बड़े राजनीतिक उलटफेर के बीच रविवार को भूपेंद्र पटेल राज्य के नए मुखिया चुन लिए गए. विधायक दल की हुई बैठक में भूपेंद्र के नाम पर मुहर लग गई और मीडिया रपटों के अनुसार कल यानी कि सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. हालांकि, भूपेंद्र के नाम के ऐलान के साथ ही बीजेपी ने एक बार फिर सभी को चौंका दिया है. क्योंकि विजय रुपाणी के इस्तीफे के बाद जिन नामों के मुख्यमंत्री बनने की अटकलें थी उनमें भूपेंद्र का नाम चर्चा में नहीं था. हालांकि, ये तय था कि बीजेपी किसी पाटीदार को ही कमान सौंपेगी. अब आइए जानते हैं कि आखिर पटेल को कमान देने के पीछे क्या वजहें थीं.

पटेल को ही सीएम पद क्यों
गुजरात की राजनीति पर अगर नजर डालें तो लंबे समय से ही पटेल समुदाय राज्य की सियासत में बड़ी अहमियत रखता है, एक समय कांग्रेस के प्रति इस समुदाय का समर्थन था. जिसकी बदौलत कांग्रेस ने राज किया. लेकिन फिर पटेल समुदाय का रुझान बीजेपी की ओर बढ़ा. लेकिन मोदी के सत्ता छोड़ते ही पाटीदार आंदोलन ने फिर आवाज तेज कर दी थी. जिसका असर ये हुआ था कि बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

आंकड़ों पर एक नजर
हार्दिक पटेल और कांग्रेस ने बीजेपी को काफी टक्कर दी थी. हालांकि बीजेपी पिछले चुनाव में अपना किला बचाने में सफल रही थी लेकिन इस बार वो पहले से ही ये समीकरण साध लेना चाहती है. आंकड़ो के हिसाब से देखें तो रिपोर्ट के अनुसार गुजरात की 6 करोड़ 30 लाख की कुल आबादी में पाटीदारों का हिस्सा 14 प्रतिशत है और कुल वोटरों की बात करें तो उसमें पाटीदार 21 प्रतिशत हैं. राज्य सरकार में भी इस समुदाय के लोगों की अच्छी हिस्सेदारी होती है.

भूपेंद्र पर ही दांव क्यों
अब सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी ने भूपेंद्र के नाम पर ही दांव क्यों खेला. दरअसल, इसकी एक बड़ी वजह तो ये है कि भूपेंद्र पाटीदार समुदाय से आते हैं. दूसरा कि वो आरएसएस से जुड़े रहे हैं. कहा जाता है कि वे पटेल पाटीदार संगठनों सरदार धाम और विश्व उमिया फाउंडेशन में ट्रस्टी भी हैं. ऐसे में पाटीदार समाज को रिझाने में वे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. साथ ही बड़े नामों को तरजीह देने में पार्टी को असंतोष भी झेलना पड़ सकता था लेकिन भूपेंद्र के नाम पर दांव खेलने से इसकी संभावना कम ही मानी जा रही है.

मोदी ने कैसे इन मुद्दों पर हासिल की थी जीत
2014 में मोदी के गुजरात छोड़कर दिल्ली आने के बाद मानों राज्य की सत्ता अस्थिर सी हो गई है. कोई मुख्यमंत्री स्थायी नहीं रहा है. पहले आनंदीबेन पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था उसके बाद अब विजय रुपाणी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे. दरअसल, मोदी ने बतौर सीएम अपनी छवि विकास पुरुष और गुजरात मॉडल के रूप में स्थापित कर ली थी. जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी. यही कारण था कि उन्होंने कांग्रेस का एक समय गढ़ माने जाने वाले राज्य से सत्ता छीन ली थी और राज्य को भगवा मय बना दिया था.

लेकिन आनंदीबेन पटेल जो खुद भी पाटीदार समुदाय से आती थी. उनको कमान मिलने के बाद भी वो पाटीदारों का असंतोष दूर नहीं कर सकी थीं. नतीजा उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और साथ ही पाटीदार आंदोलन ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए थे. इसलिए बीजेपी नहीं चाहती की वो इस आगामी चुनाव में कोई भी गलती करे. 

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