नई दिल्ली: भारत ने शनिवार को इस दावे को खारिज कर दिया कि इस द्वीपीय देश श्रीलंका में लगाए गए आपातकाल के बीच नई दिल्ली श्रीलंका में अपने सैनिक भेज रही है और कहा कि यह फर्जी सूचना है. श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने मीडिया के एक वर्ग के समक्ष इन निराधार रिपोर्टो का खंडन किया कि भारत अपने सैनिकों को श्रीलंका भेज रहा है.
उच्चायोग ने की निंदा
उच्चायोग ने भी इस तरह की गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिग की निंदा की और संबंधितों से अफवाह फैलाने से बचने की उम्मीद की. देश में अशांति को रोकने के लिए श्रीलंका सरकार ने शनिवार शाम छह बजे से सोमवार सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया है. सबसे खराब आर्थिक स्थिति जो द्वीप राष्ट्र देख रहा है, वह कोविड-19 महामारी से जटिल हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप पर्यटन और प्रेषण से राजस्व में गिरावट आई है.
श्रीलंका में लग गया है आपातकाल
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है, जिससे सुरक्षा बलों को तत्काल प्रभाव से संदिग्धों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने का व्यापक अधिकार मिल गया है. राजपक्षे ने राजधानी में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के इकट्ठा होने के बाद सार्वजनिक आपातकाल की घोषणा करते हुए 'असाधारण राजपत्र' जारी किया है और उनमें से कई ने आर्थिक नीतियों के खराब प्रबंधन के लिए सरकार के विरोध में राष्ट्रपति के आवास पर धावा बोलने की कोशिश की, जिसने देश में गड़बड़ी पैदा की है. राष्ट्रपति ने कहा कि उनका मानना है कि श्रीलंका में सार्वजनिक आपातकाल के जरिए सख्त कानूनों को लागू करना जरूरी था.
राजीव गांधी की वह गलती
29 जुलाई 1987 को भारत और श्रीलंका के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते का मकसद लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम) और उनके प्रमुख प्रभाकरण को रोकना था. जुलाई 1987 में भारतीय शांति सेना की जाफना में तैनाती शुरू हुई. भारतीय सेना की तैनाती के साथ ही शांति समझौते पर हस्ताक्षर के लिए दिवंगत पूर्व पीएम राजीव गांधी भी कोलंबो पहुंचे थे. पर भारतीय सेना के लिए ये मिशन असफल साबित हुआ. करीब 1200 भारतीय सैनिक मारे गए. बाद में यही समझौता 1991 में राजीव गांधी की हत्या का कारण बना.
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