नई दिल्लीः साल 2006 में यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डवलपमेंट ऑथोरिटी (YEIDA) के लिए हुए भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने यमुना अथॉरिटी और भारतीय किसान यूनियन की याचिका पर सुनवाई की.
यमुना अथॉरिटी ने कोर्ट में दी ये दलील
सुनवाई के दौरान यमुना अथॉरिटी के वकील डॉ. सुरत सिंह ने अपनी दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जब बिल्डर ने खुद ही किसानों को मुआवजा देने के लिए अंडरटेकिंग दी थी तो इससे पीछे बिल्डर कैसे हट सकते हैं? और इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बिल्डर की ओर से छिपाई गई अंडरटेकिंग की जानकारी पर आधारित है.
बिल्डरों ने की थी इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील
दरअसल, 2006 में किसानों की 11 हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण 9 हजार करोड़ रुपये में हुआ था. किसान अतिरिक्त मुआवजा की मांग कर रहे थे, जिस पर सरकार ने बिल्डरों से किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने को कहा था और बाद में बिल्डरों ने किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए सरकार के पास अंडरटेकिंग भी दी थी, लेकिन कुछ समय बाद बिल्डरों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया.
हाई कोर्ट ने बिल्डरों के पक्ष में दिया था फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला बिल्डरों के हक में दिया और कहा कि बिल्डरों को अतिरिक्त मुआवजा देने की जरूरत नहीं है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यमुना अथॉरिटी और भारतीय किसान यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
अप्रैल में होगी अगली सुनवाई
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है और इसी क्रम में सोमवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, कोर्ट अब अगली सुनवाई अप्रैल माह में करेगा.
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