Important Fact: अगर आप भी किसी बेटे के मां-बाप हैं तो यह खबर आपके लिए है

जब से हम परिवार या समाज को बूझ-समझ रहे हैं तब से शायद किसी न किसी रूप में इस सोच के प्रत्क्षदर्शी हैं और इस बात को आत्मसात भी कर चुके हैं कि संस्कार, दायरे और पारिवारिक गरिमा का ख़्याल रखना बेटियों, बहनों, मां और पत्नी के ही ज़िम्मे है. और बेटों को छोड़ देते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 3, 2020, 09:32 PM IST
    • आज भी परिवारों में सिर्फ बेटियां ही सवालों के दायरे में हैं
    • बेटों से नहीं किए जाते हैं सवाल, अभिभावक बेटा है कहकर छोड़ देते हैं
Important Fact: अगर आप भी किसी बेटे के मां-बाप हैं तो यह खबर आपके लिए है

नई दिल्लीः  गांधीजी ने कहा था... 'अगर हम अपने अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करें तो दूसरों के अधिकारों की रक्षा स्वत: हो जाएगी'

इस संदर्भ में शुरुआत व्यक्ति और परिवार से हो तभी बेहतर और वांछित परिणाम की उम्मीद की जा सकती है. व्यक्तिगत सोच ही सामाजिक अच्छाइयों और बुराइयों को जन्म देती है.. यहां ज़िक़्र बेटियों पर हो रहे ज़ुल्म के बारे में करना ज़रूरी है..

जब से हम परिवार या समाज को बूझ-समझ रहे हैं तब से शायद किसी न किसी रूप में इस सोच के प्रत्क्षदर्शी हैं और इस बात को आत्मसात भी कर चुके हैं कि संस्कार, दायरे और पारिवारिक गरिमा का ख़्याल रखना बेटियों, बहनों, मां और पत्नी के ही ज़िम्मे है. 

बेटियों से सवाल, बेटों से क्यों नहीं
शुरुआत से ही हमें बेटों की समझदारी पर पूरा भरोसा है. बेटों से 'कहां गए थे, किसके साथ थे, कहां जा रहे हो, क्यों जा रहे हो' जैसे सवाल आमतौर पर या तो करते ही नहीं, और अगर करते भी हैं तो महज़ खानापूर्ति के लिए. 

बेटियों से सवाल करना ग़लत नहीं है...  करना चाहिए ताकि उनके भले-बुरे का ख़्याल रखा भी जा सके और उनमें अच्छे-बुरे की समझ विकसित भी की जा सके... लेकिन क्या बेटों की हरक़तों पर शुरू से नज़र नहीं रखनी चाहिए?

बेटों को ,समझाना भी है जरूरी
फ़र्ज़ कीजिए कि आप सारे नियम-क़ायदों के तहत वाहन चला रहे हैं... लेकिन अगर सामने से एक शराबी अपनी गाड़ी आपकी गाड़ी में ठोक दे तब क्या? ज़ाहिर है आपके नियम-क़ायदे धरे के धरे रह जाएंगे... हादसा होगा और नुकसान दोनों का... और क्या पता कुछ बेगुनाह भी इसकी चपेट में आ जाएं.. कुछ ऐसी ही ग़लती हम बेटों को ना समझाकर और बेटियों को ज़्यादा समझाकर करते आए हैं.

अपनी ग़लतियों से सीखना हमेशा अच्छा माना जाता है... हमें अगर बेटियों को महफ़ूज़ देखना है तो ना सिर्फ़ बेटों को संस्कार सिखाना होगा बल्कि उन्हें ये भी बताना होगा कि उसकी बहन की ख़ुशी परिवार के लिए कितनी अहम है.. तो अगली बार जब बेटा बाहर जाए तो पता करें कि क्या करने जा रहा है... और जब घर लौटे तो पता करें कि क्या करके लौटा है... 

हाथरस, बलरामपुर, बारां या अजमेर... योगी, गहलोत, ममता या नीतीश.. ये मायने नहीं रखते... व्यक्तिगत सोच, समान पारिवारिक संस्कार और बेटों पर पैनी नज़र हमें इस सामाजिक समस्या से निजात दिला सकता है... रही बात पुलिस और उसके बर्ताव की... तो कुछ चीज़ें राम भरोसे छोड़ दें तो बेहतर है.

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