दुनिया की इकलौती घुड़सवार सेना कहने वाली है भारत को अलविदा

एक राजसी स्मृति है यह भारतवर्ष के अनंत इतिहास की. भारतवर्ष के आदिकाल से यह घुड़सवार सेना चलती चली आई है समय की सीढ़ियां चढ़ती हुई. किन्तु अब दुनिया जमीन से उठ कर बहुत ऊपर आसमान तक पहुंच गई है और इस जेट युग में अब दुनिया की यह घुड़सवार सेना आने वाले दिनों में यादों की एक किताब बन कर पुस्तकालयों की धरोहर हो जाएगी..  

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : May 17, 2020, 03:07 AM IST
    • भारतीय सेना की 61 कैवलरी अब समाप्त होने वाली है
    • इस घोड़ों की सेना में घोड़ों की जगह लेंगे टैंक
    • सेना के पुराने अधिकारी खुश नहीं
    • पूरी तरह युद्ध के उपयोग में ली जायेगी कैवलरी
दुनिया की इकलौती घुड़सवार सेना कहने वाली है भारत को अलविदा

नई दिल्ली.  हवाई जहाज़ों के जेट युग में अब न सेना को घोड़ों की जरूरत है न घुड़सवार सेना की. यह एक शाही पहचान थी शहन्शाही हिन्दुस्तान की, जो अब यादों के जखीरों में दफन होने वाली है क्योंकि खबर आई है कि भारतीय सेना में घुड़सवार सेना को बदल कर टैंकों को बड़ी जिम्मेदारी दी जाने वाली है. 

 

घोड़ों की जगह लेंगे टैंक 

दुनिया में अब घुड़सवारों की सेना कहीं मौजूद नहीं है और यदि कहीं है तो सिर्फ भारत में है दुनिया की इकलौती घुड़सवार सेना के रूप में. बीते दिनों के राजा-रजवाड़ों के हजारों युद्धों और लड़ाइयों की स्मृतियां अपने आप में समेटे ये घुड़सवार सेना अब खुद भी एक याद में बदलने जा रही है. इसका परिचय देना मात्र औपचारिकता से अधिक नहीं किन्तु नई पीढ़ी के लिये आवश्यक भी है - ये है भारत की 61वीं कैवलरी सेना जो कि अब समयानुकूल परिवर्तन का भाग बनने जा रही है. अब इसमें घोड़ों की जगह टैंक लेगें और घोड़े किसी और काम के उत्तरदायी बन कर दिल्ली भेज दिए जायेंगे. 

सेना के पुराने अधिकारी खुश नहीं 

इस नए फैसले से सेना के पुराने अधिकारियों में प्रसन्नता नहीं देखी जा रही है. जब से पता चला है कि सेना का ऐतिहासिक अंग ये घुड़सवार सेना अब समाप्त की जाने वाली है और इसमें उपस्थित  घोड़ों को हटाकर टैंक लगाए जाएंगे जबकि घोड़ों को कुछ और काम दिया जायेगा.सेना के इन पुराने अधिकारियों का मानना है कि भारत की इस ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा की जानी चाहिये और इस तरह भारत के अतीत को सम्मान भी दिया जाना चाहिये. 

 

पूरी तरह युद्ध के उपयोग में ली जायेगी कैवलरी 

नयी योजना के अंतर्गत दुनिया की इस इकलौती घुड़सवार सेना याने भारतीय सेना की 61वीं कैवलरी को समाप्त नहीं किया जा रहा बल्कि इसका रूपान्तरण हो रहा है. इस अश्वारोही रेजीमेन्ट में घोड़ों को जगह टैंक लगाकर इसे नियमित बख्तरबंद रेजिमेंट बनाने की तैयारी चल रही है. दरअसल भारतीय सेना इसे युद्ध की उपयोगिता के लिये लिये पूर्णतया तैयार करना चाहती है. आज की स्थिति में इसका इस्तेमाल सिर्फ विभिन्न राष्ट्री कार्यक्रमों में होता है और इसके जवान पोलो जैसे खेलों में भाग लेते ही नजर आते हैं.

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