पटना : लालू यादव (Lalu Yadav) को बीजेपी (BJP) का सबसे बड़ा विरोधी माना जाता है. लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि लालू की राजनीति में एंट्री ही भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी (ABVP) के समर्थन से हुई थी.
ABVP ने जिताया पहला चुनाव
बात साल 1971 की है जब लालू यादव पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) के छात्रसंघ का चुनाव हार चुके थे. इस हार से लालू प्रसाद इस कदर निराश हो चुके थे कि उन्होंने छात्र राजनीति छोड़कर एक क्लर्क की नौकरी करने का मन बना लिया. कुछ महीने बाद ही पटना के एक कॉलेज में क्लर्क की नौकरी शुरू भी कर दी. जिसके बाद लालू प्रसाद यादव शादी करके एक आम गृहस्थ की जिंदगी बसर करना चाहते थे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
लालू प्रसाद यादव संघ परिवार के जिस छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् को पानी पी पीकर कोसते थे, साल 1973 में उसी एबीवीपी ने उनकी किस्मत पलट दी. दरअसल 1973 के छात्रसंघ चुनाव में समाजवादी युवजन सभा के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे. उस वक्त तेजी से उभर रहे भाजपा के छात्र संगठन विद्यार्थी परिषद् से लाल प्रसाद यादव का गठबंधन हो गया. 1973 में एबीवीपी ने समर्थन से लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष बन गए. इसी साल छात्रसंघ चुनाव में सुशील कुमार मोदी महासचिव और रवि शंकर प्रसाद संयुक्त सचिव के रूप में चुने गए जो इस समय देश की सियासत के बड़े चेहरे हैं. सुशील कुमार मोदी नीतीश सरकार में उप मुख्यमंत्री जबकि रविशंकर प्रसाद केंद्रीय मंत्री हैं.
भाजपा के समर्थन से बने मुख्यमंत्री
लालू प्रसाद यादव पहली बार 10 मार्च 1990 को बिहार के मुख्यमंत्री बने. मजेदार बात ये है कि लालू को मुख्यमंत्री बनाने में बीजेपी की अहम भूमिका रही लेकिन लालू प्रसाद यादव बीजेपी का एहसान कुछ ही दिनों में भूल गए. करीब 6 महीने 13 दिन बाद लालू प्रसाद यादव ने वो कर दिया, जिसके बारे में भाजपा ने सोचा भी नहीं था. उन्होंने 23 सितंबर 1990 को समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करा दिया. आडवाणी रामरथ में सवार होकर पूरे देश से घूमते हुए बिहार के रास्ते अयोध्या कूच करने वाले थे. लेकिन आडवाणी को गिरफ्तार कराकर लालू ने बड़ा सियासी दांव खेला और बड़े धर्मनिरपेक्ष नेता की छवि गढ़ने में कामयाब हो गए.
लालू के इस कदम से भाजपा इस कदर नाराज हो गई कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया और केंद्र की सरकार गिर गई. लेकिन लालू ने भाजपा विधायक दल के एक धड़े को तोड़ लिया और अपनी सरकार बचा ली. जिसके बाद लालू प्रसाद यादव 1995 में बंपर जीत के साथ दोबारा मुख्यमंत्री बने. लेकिन चारा घोटाले का आरोप लगने और सीबीआई से वारंट जारी होने के बाद 1997 में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. लेकिन सत्ता पर उनका दबदबा बना रहा. उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया.
चारा घोटाले में फंसे लालू
लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में तीन अलग अलग केस हैं जिनमें उन्हें सजा मिली है. पहला देवघर ट्रेजरी केस है. जिसमें उन्हें 23 दिसंबर 2017 को दोषी करार दिया गया था. इस केस में उन्हें 2019 में जमानत मिल चुकी है. लालू पर दूसरा मामला चाईबासा ट्रेजरी घोटाला केस है. जिसमें उन्हें 9 अक्टूबर यानी शुक्रवार को जमानत मिली. जबकि तीसरा केस दुमका ट्रेजरी घोटाला केस है. जिसमें उन्हें जमानत नहीं मिली है.
लालू को जेल से बाहर आने के लिए अब दुमका केस में जमानत जरूरी है.
लालू का अंदाज जुदा
लालू अपने अलग अंदाज के लिए जाने जाते हैं. वो विरोधियों पर कटाक्ष कर उन्हें चारों खाने चित्त करने में माहिर हैं. उसी तरह से उनके फैसले भी चर्चा का विषय रहे हैं.
राज्य में चरवाहा विद्यालय खोला
लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने गरीब मजदूरों के बच्चों के लिए चरवाहा विद्यालय की शुरूआत की. जहां देश में तमाम लोग उनके इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर की बर्बादी बताते हैं वहीं विदेशों में उनके चरवाहा विद्यालय को काफी लोकप्रियता मिली.
गरीबों के लिए 'गरीब रथ एसी ट्रेन' की शुरूआत
बिहार से हर साल लाखों मजदूर काम की तलाश में पलायन करते हैं. लालू यादव जब साल 2004 में रेल मंत्री बने तो गरीब रथ ट्रेन की शुरूआत की ताकि कम पैसों में आम लोग एसी ट्रेन में सफर कर सकें.
इसके अलावा लालू प्रसाद यादव गंदी बस्तियों में जाकर लोगों को स्नान कराते थे. लालू ने एक बार तो बिहार की खराब सड़कों पर बोर्ड लगा दिया था कि ये केंद्र की सड़क है.
लालू की आधी जीत से RJD का जोश हाई!
लालू को दूसरे मामले में जमानत मिलने के बाद आरजेडी कार्यकर्ताओं का जोश आसमान पर है. उनका ये जोश पार्टी के प्रचार को और धार दे सकता है. इससे महागठबंधन को नई ताकत मिलेगी और कार्यकर्ताओं में जोश के सथ ऊर्जा का संचार होगा. चुनावों में जोश भले जीत ना दिलाए लेकिन आरजेडी को NDA के खिलाफ सियासी लड़ाई में खड़ा करने में काफी मददगार हो सकता है. लालू का करिश्मा अक्सर विरोधियों को चारों खाने चित्त कर देता था.
अब देखना है कि लालू के लाल तेजस्वी यादव कार्यकर्ताओं के जोश को किस कदर सियासी लड़ाई में इस्तेमाल कर पाते हैं.
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