नई दिल्ली: ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सचमुच दुखी लग रहे थे. उनकी पूरी बॉडी लैंग्वेज में निराशा झलक रही थी.
उन्होंने अपनी दोस्ती और विचारधारा की दुहाई देते हुए सिंधिया के लिए कहा कि उन्हें भाजपा में सम्मान नहीं मिलेगा.
#WATCH Rahul Gandhi, Congress: This is a fight of ideology, on one side is Congress & BJP-RSS on the other. I know Jyotiraditya Scindia's ideology, he was with me in college, I know him well. He got worried about his political future, abandoned his ideology and went with RSS. pic.twitter.com/YhtNEam29f
— ANI (@ANI) March 12, 2020
राहुल गांधी के बाद उनके नजदीकियों की शामत
राहुल गांधी ने 2019 में हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्हें उम्मीद थी कि उनकी ही तरह राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस्तीफा दे देंगे. लेकिन गहलोत, कमलनाथ पर इसका कोई असर नहीं पड़ा.
राहुल के अध्यक्ष पद छोड़ते ही पार्टी में उनके करीबी और पसंदीदा लोगों की शामत आने लगी. इसकी लंबी लिस्ट है-
हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर
महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरुपम
प्रतापगढ़ की राजकुमारी रत्ना सिंह
रायबरेली के संजय सिंह
और आखिर में ज्योतिरादित्य सिंधिया. कांग्रेस की राजनीति के सबसे युवा और अहम चेहरे के पार्टी छोड़ने का दुख बेहद बड़ा है. लेकिन ये एक दिन में नहीं हुआ.
कांग्रेस पर हावी हो रहे हैं ओल्ड गार्ड्स
राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम संभाल रखा है. लेकिन इस एक साल के दौरान बहुत बदलाव आया है.
अशोक गहलोत, कमलनाथ जैसे मुख्यमंत्रियों की पूछ बढ़ी. दिग्विजय जैसे पुराने वफादारों ने गांधी खानदान का दरबार संभाल रखा है. ऐसे में दूसरी पंक्ति के नेताओं में शुमार सिंधिया जैसे लोगों का दम घुटना लाजिमी था.
लेकिन सवाल ये है कि इसका फायदा किसे हो सकता है? सोनिया गांधी की उम्र और सेहत दोनों उन्हें ज्यादा तनाव लेने की इजाजत नहीं देता. ऐसे में कौन है जो फैसले कर रहा है?
गांधी परिवार में राहुल, सोनिया के बाद तीसरा कौन?
स्वाभाविक रूप से सत्ता का हस्तांतरण प्रियंका गांधी वाड्रा के ही हाथों में होना है. इसकी पटकथा लिखी जा रही है.
सिंधिया जैसे बड़े नेता का पार्टी छोड़ देना कांग्रेस जैसी पार्टी के लिए छोटी घटना नहीं है. ऐसा हो ही नहीं सकता कि गांधी परिवार के किसी सदस्य की इसमें सहमति शामिल नहीं हो.
क्या वो प्रियंका गांधी वाड्रा नहीं हैं?
यहां पर कांपिटेटिव एक्सक्लूजन(competitive exclusion) यानी प्रतिस्पर्धी बहिष्करण का सिद्धांत पूरी तरह लागू होता है. ऐसे में कांग्रेस की सत्ता का हस्तांतरण प्रियंका गांधी वाड्रा को ही होना है.
क्योंकि राहुल गांधी अपनी मर्जी से नेपथ्य में गए हैं. जिसके बाद पार्टी में उनके साथी और मित्र रहे लोगों की विदाई हो रही है. राजस्थान में भी सचिन पायलट के बारे में कयास लगाए जा रहे हैं. उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के फैसले की निजी या तीखी आलोचना नहीं की है.
Unfortunate to see @JM_Scindia parting ways with @INCIndia. I wish things could have been resolved collaboratively within the party.
— Sachin Pilot (@SachinPilot) March 11, 2020
इसके उलट राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निजी आक्षेप लगाए हैं.
सिंधिया और प्रियंका बीच यूपी से शुरू हुई थी तकरार
कांग्रेस पार्टी की युवा तिकड़ी में राहुल गांधी के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट थे. साल 2019 के चुनाव से पहले इसमें प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री हुई. इसके बाद परिस्थितियां नाटकीय रुप से बदलने लगीं.
2019 में लोकसभा चुनाव के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश की 42 सीटों और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 38 सीटों की जिम्मेदारी दी गई थी. ज्योतिरादित्य पर उनके अपने लोकसभा क्षेत्र गुना से चुनाव लड़ने की भी जिम्मेदारी थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास कोई संगठन ही नहीं था. जिससे सिंधिया परेशान थे.
उधर प्रियंका ने जो पूरे प्रदेश में आक्रामक प्रचार शुरू किया. इस दौरान उन्होंने चार दिन और पांच रातों के दौरान पार्टी के 4 हजार से अधिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी. लेकिन इसमें ज्योतिरादित्य कहीं शामिल नहीं थे.
ज्योतिरादित्य पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान गुना और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बंजर मैदान में सिर मारते रह गए. नतीजा ये यहा कि सिंधिया अपनी गुना की सीट भी हार बैठे और अब तो कांग्रेस से भी उनकी विदाई हो चुकी है.
गांधी परिवार से परे कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं
कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार के अलावा कोई और कर सकता है. ये सोचा भी नहीं जा सकता. ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा ही स्वाभाविक दावेदार हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव कैंपेन के दौरान उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से साथ अधिक सहजता से जुड़ाव दिखाया. उनकी मुखाकृति अपनी दादी इंदिरा गांधी से बहुत हद तक मिलती भी है. इसके बारे में पहले भी कई बार चर्चा हो चुकी है.
राजीव गांधी के हत्यारे नलिनी श्रीहरन के साथ प्रियंका गांधी की 2008 में हुई मुलाकात ने उनकी राजनीतिक जोखिम उठाने की क्षमता और साहस को दिखाया. उनके करीबी बताते हैं कि उन्होंने अपनी दादी से जोड़-तोड़ की राजनीति के विशेष गुण को हासिल किया है, जो कि राजनीतिक क्षेत्र के लिए बेहद अहम गुण माना जाता है.
राहुल गांधी के विपरीत वह अपनी मां सोनिया गांधी और नजदीकी सलाहकारों पर कम निर्भर रहती हैं और स्वतंत्रतापूर्वक अपने फैसले लेती हैं.
ऐसे में प्रियंका गांधी के आने के पहले कांग्रेस पार्टी में सफाई अभियान तो जरूरी ही है. भले ही वह ज्योतिरादित्य सिंधिया ही क्यों न हों.
कांग्रेस में प्रियंका का अलग है गुट
कांग्रेस पार्टी में राजीव शुक्ला, पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त चरणदास, कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे कई कद्दावर कांग्रेसी प्रियंका गांधी को अध्यक्ष पद सौंपने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं.
लोकसभा चुनाव प्रचार कार्यक्रम के दौरान राजस्थान में 12 जगहों पर प्रियंका गांधी के रोड शो का प्रस्ताव आया था जबकि 13 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने उनकी रैली की मांग की थी. जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण जैसी कई लोकसभा सीटों के उम्मीदवारों ने प्रियंका गांधी के रोड शो की मांग की.
ऐसे में कांग्रेस की कैंपेनिंग टीम को बहुत परेशानी हुई थी, क्योंकि ऐसा करने से यह साफ संकेत जा रहा था प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल गांधी से ज्यादा लोकप्रिय हैं.
ऐसे में परोक्ष से कांग्रेस अध्यक्ष की सत्ता संभालने से पहले सिंधिया की विदाई कोई असामान्य बात तो नहीं. क्योंकि सिंधिया पॉलिटिक्स में प्रियंका से वरिष्ठ थे.
ऐसे में सवाल उठता है कि सिंधिया के पहले महाराष्ट्र के संजय निरुपम, हरियाणा के अशोक तंवर, रत्ना सिंह, संजय सिंह जैसे नेताओं के बाद अब कांग्रेस में राहुल गुट के किस शख्स का नंबर है...