Ayodhya Verdict: 'सियासी राम' की लड़ाई अभी बाकी है

अयोध्या (Ayodhya) में विवादित ढांचा विध्वंस केस में 28 साल बाद आखिरकार सीबीआई की विशेष अदालत (CBI Court) ने फैसला सुना ही दिया. लेकिन 1992 के बाद राम मंदिर (Ram mandir) से जुड़ी हर खबर पर सियासी शोर लाज़मी है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 30, 2020, 10:03 PM IST
    • राम मंदिर पर सियासी जंग लगातार जारी है
    • भाजपा विरोधियों ने अदालत के फैसले पर की टिप्पणियां
Ayodhya Verdict: 'सियासी राम' की लड़ाई अभी बाकी है

नई दिल्ली: राम मंदिर जन्मभूमि स्थल (Ram janmbhoomi) पर विवादित ढांचा गिराने के आरोप से 32 लोगों को बरी करने के फैसले पर सियासी शोर मचना शुरू हुआ. कांग्रेस (Congress) बोली ये बीजेपी (BJP), आरएसएस (RSS) की साजिश है और सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के फैसले की रूलिंग के खिलाफ है.

कांग्रेस प्रवक्ता ने पार की हदें
अधीर रंजन तो इसे न्यायपालिका का मोदीकरण यानि ज्यूडीशियरी को मोदीशियरी तक बोल गए. अब मामला हिंदू-मुस्लिम (Hindu muslim) और खासकर राम का हो तो असदुद्दीन ओवैसी ना बोले ऐसा नहीं हो सकता. वो भी बोले फैसला भारतीय न्यायपालिका का काला दिन. अब लड़ाई अमावस्या और चांदनी की तो हो नहीं रही थी. जज साहब ने तो सबूत देखकर फैसला सुनाया था. उनका कहना था कि सीबीआई सबूत पेश नहीं  कर पाई. लेकिन बाइज्जत बरी करने के पीछे फैसले में जो तर्क दिए गए वो भी जानना आपके लिए जरूरी है.

'बाइज्जत बरी' किए जाने के पीछे की 10 बड़ी वजहें
1-मामले में किसी भी तरह की साजिश के सबूत नहीं मिले.
2-जो कुछ हुआ, वो अचानक था और किसी भी तरह से ये घटना साजिश नहीं थी.
3-आरोपी बनाए गए लोगों का विवादित ढांचा गिराने के मामले से कोई लेना-देना नहीं था.
4-विवादित ढांचा अज्ञात लोगों ने गिराया। कार सेवा के नाम पर लाखों लोग अयोध्या में जुटे थे और उन्होंने आक्रोश में आकर विवादित ढांचा गिरा दिया.
5-सीबीआई 32 आरोपियों का गुनाह साबित करते सबूत पेश करने में नाकाम रही.
6-अशोक सिंघल ढांचा सुरक्षित रखना चाहते थे क्योंकि वहां मूर्तियां थीं.
7-विवादित जगह पर रामलला की मूर्ति मौजूद थी, इसलिए कारसेवक उस ढांचे को गिराते तो मूर्ति को भी नुकसान पहुंचता. कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लाने को कहा गया था.
8- अदालत ने कहा कि अखबारों में लिखी बातों को सबूत नहीं मान सकते. सबूत के तौर पर कोर्ट को सिर्फ फोटो और वीडियो पेश किए गए.
9-ऑडियो टेप के साथ छेड़छाड़ की गई थी। वीडियो टेम्पर्ड थे, उनके बीच-बीच में खबरें थीं, इसलिए इन्हें भरोसा करने लायक सबूत नहीं मान सकते.
10-चार्टशीट में तस्वीरें पेश की गईं, लेकिन इनमें से ज्यादातर के निगेटिव कोर्ट को मुहैया नहीं कराए गए. इसलिए फोटो भी प्रमाणिक सबूत नहीं हैं.

अदालत के फैसले पर सियासी चूल्हा गर्म
 लेकिन राजनीतिक पार्टियों के लिए मामला सबूत का नहीं सियासत का था तो जंग लाज़मी थी अगर चुप्पी साध लेते तो सियासी तौर पर कमज़ोर नज़र आते. लेकिन इस जुबानी जंग को धार दी मजहबी नेताओं ने. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान कर दिया कि वो फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे. अब मामला हाईकोर्ट जाए या सुप्रीम कोर्ट .

अदालत के ताजा फैसले में बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों ने बढ़त तो बना ही ली है और उसका फायदा उनको 1992 के बाद से लगातार मिलता भी जा रहा है. 

वोट बैंक की है जंग
सबक सीधा है कि जंग हिंदू और मुस्लिम वोट की है और हिंदुस्तान में वोट भले जाति और धर्म के बंधनों में बंधा हो. लेकिन जब बात धर्म की आती है तो सारे बंधन टूट जाते हैं. जिसको जानते सभी विपक्षी दल हैं लेकिन अमलीजामा पहनाया बीजेपी ने. 
इसीलिए उसका फायदा भी बीजेपी को ही मिल रहा है और मिलेगा. फैसले और जीत की इस अहमियत को बीजेपी समझती भी है इसीलिए तो बीजेपी खेमे में पटाखे फोड़े जा रहे हैं. लड्डू बांटे जा रहे है और विपक्षी खेमा केवल जुबान चलाकर ही काम चला रहा है. मामला खत्म होगा तो राम पर सियासत खत्म हो जाएगी. इसलिए 'सियासी राम' पर लड़ाई अभी बाकी है और जारी रहेगी.

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