नई दिल्लीः स्त्री शक्ति अबला नहीं सबला होती है और जब बात अपनी संतान की सुरक्षा के लिए हो तो मातृ शक्ति किसी भी दुष्कर कार्य को पूरा कर डालने में सक्षम होती है. संतान के आरोग्य और उसे दीर्घायु का आशीष देने के लिए माताएं आज रविवार 8 नवंबर को अहोई अष्टमी का व्रत रख रही हैं.
यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. करवाचौथ के ही विधान के समान यह व्रत लंबी साधना का होता है. माताएं अहोई माता की पूजा करके फिर तारों का दर्शन कर व्रत का उद्यापन करती हैं.
इस बार खास है यह व्रत
किसी भी पर्व व तिथि को नक्षत्र और राशियां बेहद खास बनाते हैं. इस बार रविवार तक पुष्य नक्षत्र है. इससे रविपुष्य योग बनता है जो संतान को लंबी आयु और खूब तरक्की देगा. कहा जाता है कि अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसका कल्याण होता है.
इस दिन विधि-विधान के साथ अहोई माता की पूजा-अर्चना की जाती है. अहोई माता देवी आदि शक्ति का ही लोक रूप हैं. माता का पंचम स्वरूप स्कंदमाता का है जो कि कार्तिकेय की मां हैं. इस तरह इस रूप में माता जगत जननी हैं. इसीलिए मां को अंबा कहा जाता है.
शिव व पार्वती की पूजा का विधान
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा का भी विधान है. इस दिन चांदी की अहोई बनाकर उसकी पूजा करने का विधान है. अहोई में चांदी के मनके भी डाले जाते हैं और हर व्रत में इनकी एक संख्या बढ़ाते जाते हैं.
रविवार शाम 5 बजकर 26 मिनट से शाम 6 बजकर 46 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है. यानी पूजा की अवधि 1 घंटा 19 मिनट की है. अष्टमी तिथि रात 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगी. तारा देखने का समय शाम 6 बजे से है.
यह है व्रत की पूजा विधि
इस दिन दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है. फिर रोली, चावल और दूध से पूजन किया जाता है. इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करती हैं. अहोई माता को पूरी औऱ किसी मिठाई का भी भोग लगाया जाता है. कुछ स्थानों पर दूध भात की भी परंपरा है.
इसके बाद रात में तारे को अघ्र्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं. इस व्रत में सास या घर की बुजुर्ग महिला को भी उपहार के तौर पर कपड़े आदि दिए जाते हैं.
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