नई दिल्लीः भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा कदम-कदम पर इस तथ्य को स्थापित करते हैं कि जो है वह प्रकृति का है और प्रकृति से ही है. इसलिए यहां नदी-पहाड़, मैदान, भूमि, वनस्पति और अन्य जीव-जंतुओं की पूजा करने की भी प्रधानता रही है. पूजा करने का तात्पर्य है आभार प्रकट करना, सम्मान प्रदर्शन करना.
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है. आंवले को धातृ वृक्ष भी कहते हैं. यानी यह वृक्ष धर्म का आधार और धैर्य धारण करने का कारक. धर्म चिह्न होने के कारण यह भगवान विष्णु का स्वरूप है.
ऐसे हुई आंवले की उत्पत्ति
एक मान्यता है कि समुद्र मंथन में विष की हल्की बूंदों से जहां भांग-धतूरा जैसी बूटियां जन्मीं तो वहीं अम़ृत छलकने से आंवला और अन्य गुणकारी पेड़ों का जन्म हुआ. एक मान्यता यह भी है कि जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे.
वह अपनी कठिन तपस्या में लीन थे. तपस्या के करते-करते ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे. ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई. इस तरह आंवला वृक्ष सृष्टि में आया.
गुणकारी है आंवला
हमारे धर्म में हर उस वृक्ष को जिसमें बहुत अधिक औषधीय गुण हों, उनकी किसी विशेष तिथि पर पूजे जाने की परंपरा बनाई गई है.
आंवला नवमी की परंपरा भी इसी का हिस्सा है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंवला प्रकृति का दिया हुआ ऐसा तोहफा है, जिससे कई सारी बीमारियों का नाश हो सकता है. आंवला में आयरन और विटामिन सी भरपूर होता है. आंवले का जूस रोजाना पीने से पाचन शक्ति दुरुस्त रहती है.
त्वचा में चमक आती है, त्वचा के रोगों में लाभ मिलता है. आंवला खाने से बालों की चमक बढ़ती है. हम आंवले के महत्व को समझें व उसका संरक्षण करें, इसीलिए प्राचीन मनीषियों ने आंवले की पूजा की और इसे उत्सव व त्योहार के रूप में स्थापित किया. सर्दियों में तो आंवला अमृत है और गुणकारी प्रतिरोधी क्षमता का विशेष स्त्रोत है.
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