भीष्म अष्टमी: पितामह से जानिए जिंदगी में क्या नहीं करना है

महाभारत के युद्ध में पितामह भीष्म ने 10 दिन तक युद्ध किया. उन्हें भूमि पर गिराने के लिए अर्जुन को शिखंडी का सहारा लेना पड़ा और उसकी ओट से बरसाए गए बाण पितामह की शैय्या बन गए. इच्छामृत्यु का वरदान पाए पितामह ने तुरंत मृत्यु नहीं स्वीकार की.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Feb 20, 2021, 01:16 PM IST
  • मृत्यु से पहले पितामह भीष्म ने बताए थे अपने जीवन के रहस्य
  • पांडवों को दिया था आखिरी उपदेश, द्रौपदी को भी समझाया
भीष्म अष्टमी: पितामह से जानिए जिंदगी में क्या नहीं करना है

नई दिल्लीः माघ मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी यानी कि आज भीष्म अष्टमी मनाई जा रही है. महाभारत में भीष्म पितामह का किरदार सबसे शक्तिशाली और सामर्थ्यवान व्यक्ति के रूप में है. फिर भी घटनाओं का प्रवाह ऐसा है कि हमेशा श्वेत वस्त्र (सफेद कपड़े) धारण करने वाले पितामह अपने वस्त्रों को साफ नहीं रख पाए.

कुरुकुल में हुए अन्याय और अनीति का कालिख ऐसी उड़ी जो उनके कपड़ों पर भी गई. भले ही भीष्म पितामह की आत्मा शुद्ध रही हो, लेकिन वह खुद यह स्वीकारते हैं कि उनके जीवन में कुछ ऐसे कर्म रहे जिसने उन्हें बाणों की शैय्या पर लिटा दिया. 

पितामह ने 10 दिन तक किया युद्ध
महाभारत के युद्ध में पितामह भीष्म ने 10 दिन तक युद्ध किया. उन्हें भूमि पर गिराने के लिए अर्जुन को शिखंडी का सहारा लेना पड़ा और उसकी ओट से बरसाए गए बाड़ पितामह की शैय्या बन गए. इच्छामृत्यु का वरदान पाए पितामह ने तुरंत मृत्यु नहीं स्वीकार की.

उन्होंने सूर्य के उत्तरायण में जाने की प्रतीक्षा की और मकर संक्रांति के बाद माघ मास की अष्टमी को अंतिम श्वांस ली. दरअसल इस प्रतीक्षा के जरिए वह अपने शरीर में रक्त के हर कतरे को निकाल देना चाहते थे जो कि पाप के अन्न से बना था. 

शांति पर्व में लिखे हैं संदेश
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव उनसे शरशैय्या पर मिलने पहुंचे तब उन्होंने पांचों को ज्ञान की कई बातें बताईं. इसी दौरान उन्होंने अपने जन्म और पूर्व जन्म की कथा भी सुनाई. पितामह ने पांडवों से कहा अब तुम विजेता हो, राज्य संभालोगे.

जीवन भर तुमने मुझसे खूब सीखा कि राजनीति में क्या और कैसे करने चाहिए, लेकिन आज मैं तुम्हें बताउंगा कि क्या नहीं करना चाहिए. पितामह के यह उपदेश महाभारत ग्रंथ के शांति पर्व में लिखे गए हैं.  

इसिलए मिली पितामह को शरशैय्या
पुराण कथाओं के अनुसार, पितामह भीष्म पूर्व जन्म में देवलोक में रहने वाली वसु जाति में से एक थे. यह आठ भाई थे जो कि अष्ट वसु कहलाते थे. जब सभी बाल रूप में थे तो एक बार ये सभी उद्यान में खेलने गए. वहां इन्होंने कई तरह के सुलभ खेल खेले. उनमें से जो सबसे छोटा वसु था वह बहुत चंचल था. उसने एक कीड़े को पकड़ लिया और बार-बार उसके शरीर में बबूल का कांटा चुभाता.

कीड़ा दर्द से तड़पता तो वसुओं को आनंद आता था. इस तरह कीड़े ने प्राण त्याग दिए. लेकिन उसकी जीवात्मा ने दुखी होकर कहा कि इस दुख का अनुभव इन वसुओं को तो होना ही चाहिए. बाद में सभी वसु एक ऋषि द्वारा श्रापित हुए. धरती पर जन्म लेना पड़ा. वही सबसे छोटा वसु धरती पर भीष्म पितामह बना.

बबूल के कांटे की पीड़ा का मोल इस जन्म में शरशैय्या पर लेटकर चुकाना पड़ा. पितामह ने सीख दी कि 'पांडवों कभी किसी प्राणी को मत सताना, भले ही वह छोटा सा कीड़ा ही क्यों न हो'. 

स्त्री के साथ अन्याय नहीं
सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया. भीष्म उनके संरक्षक बनें. काशीराज ने अपनी पुत्रियों का स्वयंवर रखा और हस्तिनापुर को नहीं बुलाया. पितामह अहंकारवश वहां पहुंचे और अम्बा-अम्बिका-अम्बालिका का हरण कर लाए. अम्बा किसी और से प्रेम करती थी.

जब उसने यह बात भीष्म को बताई तो भीष्म ने उसे जाने दिया, लेकिन उसके प्रेमी शाल्व नरेश ने उसे ठुकरा दिया. अम्बा ने भीष्म से न्याय मांगा और विवाह करने के लिए कहा. भीष्म ने मना कर दिया. तब क्रोध में अम्बा ने प्रतिज्ञा ली कि इच्छामृत्यु का बड़ा अभिमान है न तुम्हें भीष्म. मैं तुम्हारी मृत्यु का कारण बनूंगी. अर्जुन के रथ पर सवार शिखंडी ही पिछले जन्म में अंबा थी. भीष्म ने कहा कि 'पांडवों कभी किसी का अनादर मत करना, स्त्री का तो बिल्कुल नहीं'

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जैसा अन्न वैसा मन
पितामह ज्ञान के यह सभी बातें बता ही रहे थे कि द्रौपदी के होंठों पर ताना मारती सी मुस्कान तैर गई. पितामह ने देख लिया. बोले-पुत्री तुम्हारे इस तरह हंसने का कारण? द्रौपदी ने क्षमा मांगते हुए कहा, नहीं पितामह, मैं आपका अपमान नहीं कर रही, लेकिन हस्तिनापुर की वह सभा नहीं भूलती जहां मेरा अपमान हुआ था.

आपने मुझे क्यों नहीं बचाया, वह भी तब जब आप ज्ञानी थे. पितामह ने कहा- तुम्हारे दोष से मैं कभी मुक्त नहीं हो पाऊंगा पुत्री. लेकिन, अन्न का असर ही कुछ ऐसा होता है. दुर्योधन का अन्न पाप का प्रतीक था. मैं उसे खाता रहा तो मेरी बुद्धि भी वैसी हो गई. इसलिए पुत्रों हमेशा सत्कर्म से कमाए अन्न का ही भोजन करना. पाप का अन्न मन को पापी बना देता है. 

इस तरह की कई ज्ञान की बातें बताकर पितामह स्वर्ग सिधार गए, लेकिन इसके पहले वह मानव समाज को बता गए कि बेहतर जीवन जीने के लिए क्या नहीं करना है. 

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