Haridwar Mahakumbh 2021: दक्षिण भारत में भी लगता है महाकुंभ

भारत के सांस्कृतिक विरासतों के कालखंड में संगम पीरियड को देखें तो महामहम महाकुंभ का खूब सुंदर जिक्र मिलता है. इसी वर्णन का पन्ना तमिलनाडु के कुंभकोणम नामके प्राचीन शहर की ओर ले चलता है. जिसका गौरवशाली इतिहास रहा है और जो धार्मिक मान्यताओं और प्रतीकों का युगों पुरना केंद्र रहा है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 17, 2021, 09:13 AM IST
  • संगम काल के ग्रंथों में मिलता है महामहम कुंभ का वर्णन
  • दक्षिण भारत में गंगा के समान ही पवित्र है कावेरी नदी
Haridwar Mahakumbh 2021: दक्षिण भारत में भी लगता है महाकुंभ

नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 की छटा से समूचे हरिद्वार में आस्था की रंगत है. अभी हाल ही में बसंत पंचमी और मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने यहां श्रद्धा की डुबकी लगाई है. मकर संक्रांति पर्व से शुरू हुआ यह सिलसिला अगले कुछ महीनों तक जारी रहेगा. इनमें कई विशिष्ट शाही स्नान में भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत की न सिर्फ झलक दिखेगी बल्कि इसमें हमारी प्राचीनता का अलिखित दस्तावेजी प्रमाण भी मिलेगा. 

महाकुंभ पर्वों के लगातार चले आ रहे आयोजन के बीच ध्यान जाता है कि कुंभ के चार आयोजन एक-एक करते हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में होते हैं. इस तरह महाकुंभ का पर्व एक तरह से उत्तर भारतीय क्षेत्रों तक सीमित लगता है. नासिक इसे दक्षिण भारत की ओर थोड़ा ले चलता है.

लेकिन ऐसा नहीं है. महाकुंभ की मान्यता महज उत्तर भारत में नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी है. दक्षिण की गंगा मानी जाने वाली पवित्र कावेरी नदी भी सदियों से ठीक गंगा की तरह ही मानव समाज की आत्मा को शुद्ध करती आ रही है. 

भारत के सांस्कृतिक विरासतों के कालखंड में संगम पीरियड को देखें तो इसका खूब सुंदर जिक्र मिलता है. इसी वर्णन का पन्ना तमिलनाडु के कुंभकोणम नामके प्राचीन शहर की ओर ले चलता है. जिसका गौरवशाली इतिहास रहा है और जो धार्मिक मान्यताओं और प्रतीकों का युगों पुरना केंद्र रहा है. 

दक्षिणभारत का महाकुंभ
कांचीपुरम की तरह ही तंजावुर जिले के पास स्थित कुंभकोणम किसी कालखंड में एक भव्य नगर हुआ करता था. यह आज भी अपने भव्य प्राचीन मंदिरों और मठों के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिरों का शहर तंजावुर से 40 किमी दूर है. कावेरी और अरासालर नदी से घिरा कुंभकोणम खुद किसी घड़े की तरह का आकार लिया हुआ शहर है.

प्राचीन काल से इसी कुंभकोणम में आयोजित होता आया है महामहम पर्व. इसे दक्षिणभारत का Mahakumbh कहा जाता है. 

विद्वानों के जुटने का जरिया था महामहम पर्व
उत्तर भारतीय कुंभ परंपरा की ही तरह ग्रहों की स्थिति होने पर हर 12 वर्ष पर लगने वाला महामहम आस्था और श्रद्धा का सबसे प्राचीन उदाहरण है. प्रयागराज कुंभ का इतिहास जिस तरह सम्राट हर्ष से जुड़ा हुआ है, ठीक इसी तरह महामहम का इतिहास चोल राजवंश से जुड़ा है.

यहां चोल राजा न सिर्फ दान समारोह आयोजित किया करते थे, बल्कि यह मेला विद्वानों की विद्या देखने, बालकों के अक्षर आरंभ करने और उनके उपनयन संस्कार का प्रमुख केंद्र भी था. इसके अलावा यह प्राचीन काल में कवियों के सम्मेलन और उनके लिखे ग्रंथों को मान्यता देने वाला पर्व भी था. 

यह भी पढ़िएः Haridwar Mahakumbh 2021: समुद्र देव का वह श्राप जो बन गया महाकुंभ की वजह

संगम काल में है वर्णन
संगम काल के ग्रंथ बहुत से ग्रंथ आज अधूरे ही मिलते हैं. ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार पर 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक का काल संगम काल कहलाया. संगम तमिल कवियों का एक संगम या सम्मलेन था, जो संभवतः किन्हीं प्रमुखों या राजाओं के संरक्षण में ही आयोजित होता था. तोलकाप्पियम् के लेखक तोलकाप्पियर हैं.

यह द्वितीय संगम का उपलब्ध एकमात्र प्राचीनतम ग्रंथ है. इसमें लिखे मिले एक विषय में उल्लेख है कि जब सूर्य और चंद्रमा बृहस्पति में राशि गोचर करते हैं तब महामहम उत्सव होता है. महामहम पर्व को लेकर यह सबसे सटीक वर्णन मिलता है. 

आक्रमणों के कारण सिमट गया स्वरूप
इतिहास से जुड़े साक्ष्य बताते है कि कुंभकोणम का संबंध संगम काल से रहा है, जो दक्षिण महान हिन्दू राजवंशों जिनमें प्रारंभिक चोल, पल्लव, मध्ययुग के चोल, पाण्ड्य, विजयनगर, मदुरै नायक, तंजावुर नायक, आदि का शासन क्षेत्र रह चुका है.

इसी दौरान यह सभ्यता काफी फली-फूली और फिर युद्धों और व्यापारिक लालसाओं और षड्यंत्रों के बाद सिमटती चली गई. अंग्रेजों के आ जाने के बाद इनका सबसे अधिक विनाश हुआ. वहीं बीच-बीच में हुए आक्रमणों के काल के कारण उत्तर और दक्षिण के बीच एक तरह से संपर्क कट गया. 

यह भी पढ़िएः Haridwar Mahakumbh 2021: जानिए वह कथा जो कुंभ के आयोजन का आधार बनी

कावेरी ऐसे बनी पवित्र नदी
पौराणिक मान्यता है कि एक समय दक्षिण भारत में बड़ा अकाल पड़ा. ऋषि अगस्त्य को इस अकाल की जानकारी हुई तो वह ब्रह्म देव के पास पहुंचे. उन्होंने उनके कमंडल से थोड़ा जल मांगा और अपने साथ ले चले. ब्रह्म देव के कमंडल में भरा जल गंगा जल होता है. ऋषि जब दक्षिण की ओर बढ़े तो तपिश के कारण उन्हें थकान होने लगी और गला भी सूखने लगा.

ऐसे में वह भूल गए कि जिस कमंडल में वह जल लाए हैं वह सिर्फ उनका नहीं है, बल्कि मानव समुदाय के लिए है. वह कमंडल उठाकर जल पीने ही वाले थे कि श्रीगणेश ने कौवा बनकर कमंडल को चोंच मारकर गिरा दिया.

ब्रह्मगिरि पर्वत पर हुई यह घटना कावेरी के उद्गम का कारण बनीं, उस दिन संक्रांति का दिन था. इसलिए बाद में इसी दिन कावेरी के स्नान की परंपरा चल पड़ी. संभवतः महामहम पर्व आज भी इसी परंपरा को निबाहते आ रहा है. 

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.  

 

ट्रेंडिंग न्यूज़