Himachal Mystery: बड़े-बड़े फैसले लेती हैं देव प्रतिमाएं!

वर्तमान इंटरनेट क्रांति के जमाने में अगर आपसे कहा जाए कि किसी देव प्रतिमा से कोई सवाल किया जाए और वो उस सवाल का जवाब हां या ना में अपना सिर हिला कर दे? तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे. लेकिन हमारे देश के एक राज्य हिमाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ही होता है. जो आपको आश्चर्य में डाल देगा.   

Written by - Shweta Negi | Last Updated : Oct 21, 2020, 08:07 PM IST
    • लोग करें सवाल, देवता देंगे जवाब
    • हिमाचल की रहस्यमय परंपराओं की झलक
Himachal Mystery: बड़े-बड़े फैसले लेती हैं देव प्रतिमाएं!

शिमला: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) को देवभूमि का दर्जा दिया जाता है. यहां पर कई देवी देवता वास करते हैं. हर गांव या इलाके के अपने पारंपरिक इष्ट देवी देवता होते हैं. जहां स्थानीय रीति रिवाजों से उनकी पूजा अर्चना और उपासना की जाती है. किसी भी  घर में शादी विवाह, धार्मिक कार्य या कोई भी शुभ काम शुरु करने से पहले वहां के इष्ट देवता से अनुमति ली जाती है.

देवताओं के दिया जाता है निमंत्रण 
हिमाचल में सभी इष्ट देवी देवताओं को अलग-अलग नाम से भी पुकारा जाता है. जब भी पारंपरिक मेले या त्योहार मनाए जाते हैं, तो उसमें भी इन सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है. जैसे कुल्लू (Kullu) का दशहरा, मंडी (Mandi) की शिवरात्रि, रामपुर का फाग मेला आदि. मान्यता है कि यह देवी देवता कठिन परिस्थितियों में प्रदेश वासियों की रक्षा करते हैं. इनका नाम भर लेने से सारी समस्याओं का निवारण हो जाता है. 

देवता करते हैं यात्रा
जी हिंदुस्तान की डिजिटल टीम ने जब इस परंपरा और निष्ठा के बारे में हिमाचल के अनुभवी बूढ़े बुजुर्गों से बात की तो उन्होंने बताया कि आम तौर पर देवता का वजन लगभग  90 से 100 किलो तक होता है.  इनको डोली पर सवार करके आगे और पीछे से लोग कंधे पर उठाते हैं. इनका वजन इनका बहुत ज्यादा होता है. लेकिन जब इनको लोग कंधे पर उठाते हैं तो उन्हें बिल्कुल थकान महसूस नहीं होती.

इन वजनी देव प्रतिमाओं को उठाकर लोग पहाड़ी रास्तों पर 10 से 20 किलोमीटर पैदल चल लेते हैं. बिना थकान और दर्द के संपन्न होने वाली देवताओं की यात्रा अपने आप में एक बड़ा आश्चर्य है. 

सवालों का जवाब देते हैं देवता
परंपरा के मुताबिक हर देवता का अपना क्षेत्र होता है. उनके अंतर्गत एक गांव या इलाका आता है. अपने क्षेत्र के निरीक्षण के लिए साल में एक बार देवता निकलते हैं. इसी तरह से लोग बारी-बारी करके इनको कंधे पर सवार करके घर-घर लेकर जाते हैं. कई बार ऐसा भी होता है जब आधुनिक चिकित्सक फेल हो जाते हैं तो इन देवी-देवताओं के द्वारा दिए गए नुस्खे काम आते हैं. यह देवता अपने पुजारियों के जरिए भक्तों से संवाद करते हैं. हर इष्ट देवता का एक पुजारी होता है और वह पुजारी अपना सवाल इष्ट देवता के सामने रखता है. देवता प्रश्न के अनुसार अपना सर हिला कर हां या ना में जवाब देते हैं.  

देवताओं के निर्देशों को सर्वोपरि माना जाता है. गांव के लोगों का मानना है कि घर, परिवार और गांव की समस्याओं से जुड़े बड़े-बड़े फैसले उनकी अनुमति के बगैर नहीं होते.

इलाके की रक्षा भी करते हैं देवता
यह देवी देवता अपने इलाके या गांव के रक्षक भी होते हैं. जब गांव में किसी भूत-प्रेत, रोग-बीमारी या दूसरे तरह की उपरी बाधाएं होने की आशंका होती है. तो देवता उस पूरे प्रभावित क्षेत्र का चक्कर लगाते हैं और अपनी शक्ति से बुरी शक्तियों या दुष्ट आत्माओं को गांव से बाहर निकाल देते हैं. जिसके बाद लोग अपने इष्ट देवता को प्रसन्न करने के लिए भोज का भी प्रबंध करते हैं. रक्षक होने की वजह से ही हिमाचल के बड़े बुजुर्ग देवताओं का सम्मान करते हैं और इनकी पूजा-अर्चना करते हैं.

आधुनिक तकनीक के जमाने में इन बातों पर आसानी से विश्वास नहीं किया जाता. परंतु यही पारंपरिक मान्यताएं और उनका प्रत्यक्ष दर्शन हिमाचल प्रदेश को सभी से अलग, अनूठा और खास भी बनाती है. इन परंपराओं का बरसों से बड़े-बुजुर्ग पालन कर रहे हैं. पीढ़ियां दर पीढ़ियां बीत चुकी हैं. लेकिन परंपराएं जस की तस हैं. आधुनिक और पढ़े लिखे लोग भी इन परंपराओं का अनुसरण करते हैं. 

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