नई दिल्लीः भारतीय सनातन परंपरा में जितने भी लोकव्रत व त्योहार आदि हैं, सभी की अपनी विशेषता और महत्व है. शारीरित दृष्टिकोण से हर व्रत आरोग्य के अनुसार महत्व देता ही है, इसके साथ ही लोकापचार में भी इनके पीछे कोई कथा जरूर जुड़ी होती है. कथा भी कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि पूर्वजों के जीवन से जुड़े हुए अनुभव होते है, जिनसे हम आज तक लाखों-करोड़ों पीढ़ियों के बाद भी सीख रहे हैं.
देवी करवा की कथा
करवाचौथ को लेकर भी समय-समय पर की कहानियां घटित हुई हैं. इनमें से एक कथा है देवी करवा की. जो कि अति प्राचीन और विशेष है. एक बार देवी करवा अपने पति के साथ नदी तट पर कार्तिक महात्म्य के लिए स्नान ध्यान करने गईं थीं. देवी करवा ने स्नान कर लिया और एक बरगद वृक्ष की पूजा करने लगीं,
इसी दौरान एक मगर मच्छ उनके पति का पांव पकड़कर मझधार में खींचने लगा. करवा ने पति की गुहार सुनी तो जिस धागे से वह वट वृक्ष को बांधने वाली थीं, उसी से अपने पति को बांध कर बरगद से बांध दिया. सतीत्व का ऐसा प्रभाव कि मगरमच्छ लाख कोशिशों के बाद भी करवा के पति को हिला न सका.
यमराज ने दिया जीवनदान
इसके बाद यमराज आए तो देवी करवा ने कहा कि मेरे पति को जीवित कीजिए और इस ग्राह को दंड दीजिए, यमराज ने कहा कि मगरमच्छ का जीवन शेष है, लेकिन आपके पति का नहीं. इसलिए मैं इन्हें लेने आया हूं.
देवी ने इस बात से क्रोध में भरकर कहा कि आप मेरे पति को सचेत कीजिए, नहीं तो आपको श्राप देकर यहीं जड़वत कर दूंगी. सती के श्राप से घबराए यमराज को करवा के पति को सचेत करना पड़ा और कहा आज की संध्या जैसे ही चंद्रदेव आकाश में आएंगे वही क्षण तुम्हारे पति के लिए जीवनदायी बनेगा.
पति का सिर गोद में लिए करवा बिना खाए-पिए चंद्रदेव की राह देखती रही. उनके उदित होती ही, अमृत वर्षा से सती करवा के पति जी उठे. उस दिन कार्तिक चतुर्थी थी, तभी से करवाचौथ की परंपरा भारतीय सनातन परंपरा में शामिल हो गई.
द्रौपदी ने अर्जुन के लिए किया व्रत
महाभारत काल में जब पांडव वनवास भोग रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्यास्त्रों की खोज के लिए भेजा था. इसके लिए अर्जुन नीलगिरी के पर्वतों की ओर गए थे. उधर दुर्योधन आदि अर्जुन के लिए षड्यंत्र रचने लगे. इसकी भनक पांडवों को लग गई.
व्याकुल द्रौपदी ने अर्जुन की सुरक्षा के लिए व्रत रखा और सकुशल लौट आने की प्रार्थना की. अर्जुन महादेव की कृपा से सकुशल लौट आए. इसके बाद से सुहागन स्त्रियां करवा चौथ का व्रत करने लगीं.
ब्राह्मण कन्या वीरावती की कथा
एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी. बहन को व्याकुल देख उसके भाइयों ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया और देखने से ऐसा लगा जैसे की चांद निकल आया है.
फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई. उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई. दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया. इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिला.
तबसे हो रही है करवाचौथ की पूजा
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की. देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा.
इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा. उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया. इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा.
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