मुर्दा को जिंदा करने वाला मंदिर !

सैकड़ों साल पुराना ये मंदिर अपने अंदर सैकड़ों रहस्य समाए हुए है. यहां ज़मीन में हर तरफ शिवलिंग नजर आते हैं. 

Written by - Kulbhaskar Ojha | Last Updated : Oct 30, 2020, 10:13 AM IST
    • मंदिर का पांडवों से रिश्ता
    • मौत-जिंदगी-मौत का अलौकिक रहस्य
    • शिव मंदिर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 125 किमी की दूरी पर
मुर्दा को जिंदा करने वाला मंदिर !

देहरादून: अलौकिक रहस्यों से भरा एक शिव मंदिर जो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 125 किमी की दूरी पर है. ऊंचे-ऊंचे पहाड़ी रास्तों से होकर मंदिर तक पहुंचना पड़ता है. सैकड़ों साल पुराना ये मंदिर अपने अंदर सैकड़ों रहस्य समाए हुए है. यहां ज़मीन में हर तरफ शिवलिंग नजर आते हैं. 

दिखने में सामान्य लगने वाले यहां मौजूद शिवलिंग से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं. पुरातत्व विभाग की माने तो ये शिवलिंग छठी शताब्दी के आस-पास के हैं यानि करीब 1400 साल पुराने. लेकिन धर्म और आस्था का तर्क है कि इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग करीब 5 हजार साल से भी ज्यादा पुराने हैं. मतलब महाभारत कालीन. 

पुरातात्विक विभाग ने खुदाई कर इन शिवलिंगों को ज़मीन से बाहर निकाला. मान्यता है कि ये शिवलिंग और ये मंदिर जिंदगी और मौत के बीच एक ऐसा दरवाजा है जो सदियों से भक्तों के लिए खुला हुआ है. यहां किसी के आने-जाने की कोई मनाही नहीं है. लेकिन यहां शव को लाने पर अलौकिक चमत्कार होता है. कहते हैं यहां अतृप्त आत्माओं को शरीर में वापस लाकर उनकी अतृप्त इच्छा को खत्म कर उन्हे वापस शरीर से वापस भेज दिया जाता है.

मंदिर का पांडवों से रिश्ता

उत्तराखंड में ऊंचे पहाड़ो के बीच बने  इस मंदिर का नाम लाखामंडल है. लाखामंडल यानि लाख से बना महल या किला. हालांकि इस पहाड़ी इलाके में ना ऐसा कोई महल है और ना ही किला लेकिन पौराणिक मान्यताएं कहती हैं कि इस जगह पर कौरवों ने लाख से एक किला बनवाया था और उसमें पांडवों को अज्ञातवास रके दौरान मारने की कोशिश की थी. लेकिन कहते हैं ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोई और वो भी जिसके रक्षक भगवान विष्णु और शिव हों तो वहां तो यमराज भी आने से कांपते हैं. 

बताते हैं कि लाखामंडल में वो एतिहासिक गुफा आज भी मौजूद है, जिससे होकर पांडव सकुशल बाहर निकल आए थे. इसके बाद पांडवों ने 'चक्रनगरी' में एक महीना बिताया, जिसे आज चकराता कहते हैं.  लाखामंडल के अलावा हनोल, थैना व मैंद्रथ में खुदाई के दौरान मिले पौराणिक शिवलिंग व मूर्तियां गवाह हैं कि इस क्षेत्र में पांडवों का वास रहा है.  

कहा जाता है कि पांडवों के अज्ञातवास काल में युधिष्ठिर ने लाखामंडल स्थित लाक्षेश्वर मंदिर के प्रांगण में जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वो आज भी विद्यमान है. पौराणिक मान्यता है कि युधिष्ठिर ने जैसे मंदिर के बाहर दो दो द्वारपालों की मूर्तियां लगवाई थीं. 

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वैसी ही इस मंदिर के बाहर भी दो द्वारपालों की मूर्तियां मौजूद हैं. जो पश्चिम की ओर मुंह करके खड़े हैं. इनमें से एक का हाथ कटा हुआ है. मंदिर में लगे शिलालेख में भी कई बातें दर्ज है .
 पुरातत्व विभाग के मुताबिक मंदिर छठी से आठवीं शताब्दी में एक  राजकुमारी ने बनवाया था.

मौत-जिंदगी-मौत का अलौकिक रहस्य

कहा जाता है कि मंदिर में जिस शव को लाया जाता है उसके अंदर आत्मा फिर से प्रवेश कराई जाती है. उसकी अतृप्त इच्छाएं पूछी जाती हैं और उसको गंगाजल पिलाकर तृप्त किया जाता है. फिर आत्मा शरीर को छोड़कर शिवलोक की ओर चली जाती है. मतलब यहां जो भी शव आया उसकी आत्मा भटकती नहीं है उसे मुक्ति मिल जाती है.

मुक्ति और मोक्ष का ये रहस्य अलौकिक है उससे भी अलौकिक है शिव की महिमा.लाक्षेश्वर मंदिर में बना शिवलिंग ग्रेफाइट का है जिसमें भक्त जलाभिषेक के दौरान अपना चेहरा भी साफ-साफ देख सकते हैं . एक मान्यता ये भी है कि कि धरती के जन्म से ही ये शिवलिंग लाखामंडल में स्थापित है. सबसे हैरान करने वाली बात ये कि यहां मौजूद हर शिवलिंग का रंग एक-दूसरे से अलग है. उससे भी रहस्यमयी बात ये कि हजारों साल ज़मीन के नीचे दबे इन शिवलिंगों पर कोई खरोच तक नहीं आई. है ना काल के भी महाकाल का अलौकिक रहस्य.

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