नई दिल्लीः भारतीय सनातन परंपरा में आने वाले व्रत और त्योहार अकारण ही नहीं हैं, बल्कि अपने साथ एक गूढ़ अर्थ भी साथ लेकर चलते हैं. व्रत और पूजा की परंपरा को लोकजीवन की शैली से इसलिए जोड़ा गया ताकि एक तो इसके जरिए मानव समुदाय प्रकृति से जुड़ेगा, दूसरा अगर वह इसके महत्व को समझ लेगा तो जीवन जीने के लिए जो जरूरी शक्ति और आत्मविश्ववास है वह उसके अंदर खुद-ब-खुद पनप सकेगी.
व्रत की परंपरा के कई चरणबद्ध लाभ हैं. इसका पहला लाभ आरोग्य है. व्रत के दौरान होने वाले उत्सव से प्रसन्नता का लाभ दूसरा है. पारिवारिक और सामूहिक जुड़ाव एकता की भावना को प्रबल करती है. यह तीसरा लाभ है और मानव समुदाय एक-दूसरे को शुभकामनाएं देकर सामाजिक जुड़ाव को मजबूत करता है, यह चौथा लाभ है.
आज है सकट चौथ (Sakat Chauth)
व्रत और त्योहारों के इस क्रम में उत्तर भारत के कई इलाकों में आज 31 जनवरी 2021 को सकट चौथ (संकष्ठी चतुर्थी) के व्रत का पालन किया जा रहा है. हिंदी मास गणना के अनुसार माघ मास की चतुर्थी तिथि (कृष्ण पक्ष) को आने वाला यह व्रत श्रीगणेश को समर्पित है. इस व्रत और पूजा को विशेष तौर पर महिलाओं या माताओं तक सीमित कर दिया गया है, जबकि असल में किसी भी ईश्वर का कोई भी व्रत किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है.
व्रत करने के पीछे का आशय और उद्देश्य है कि संतान बलशाली हो, निरोगी रहें और कुशल बुद्धिशाली के रूप में विकास करके समाज के लिए योगदान दें. माताओं का संतान के प्रति मोह और कर्तव्य अधिक समझ लिया गया है तो इसलिए व्रत भी सिर्फ उनतक सीमित होकर रह गया है.
कुपोषण की समस्या से निपटता सकट चौथ (Sakat Chauth) का व्रत
अब सकट चतुर्थी की व्रत विधि को विशेष तौर पर देखें तो समझ आएगा कि प्राचीन भारत में इस व्रत की जरूरत क्यों ही होगी? इस सवाल का जवाब व्रत करने की विधि, भगवान गणेश को चढ़ने वाले प्रसाद में छिपा है. संतान की कुशलता का यह व्रत, पूजा के बहाने सुरक्षा का एक विशेष तंत्र विकसित करता है. आज देशभर में कुपोषण की समस्या है.
यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, वर्ष 2017 में सबसे कम वजन वाले बच्चों की संख्या वाले देशों में भारत 10वें स्थान पर था. साल 2019 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व बैंक ने कहा था कि वर्ष 1990 से वर्ष 2018 के बीच भारत ने गरीबी से लड़ने के लिए भारत में काफी काम हुआ है. इस अवधि में भारत की गरीबी दर तकरीबन आधी रह गई है. देश में गरीबी दर में गिरावट आ रही है, लेकिन कुपोषण और भूख की समस्या आज भी देश में बरकरार है.
2019 में ही आई 'द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन- 2019’ रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में 5 वर्ष तक की उम्र के प्रत्येक 3 बच्चों में से एक बच्चा कुपोषण अथवा अल्पवज़न की समस्या से ग्रस्त है. पूरे विश्व में लगभग 200 मिलियन तथा भारत में प्रत्येक दूसरा बच्चा कुपोषण के किसी-न-किसी रूप से ग्रस्त है.
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जरूरी है कि बच्चों को मिले सही पोषण
कुपोषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय पोषण अभियान और स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कई योजनाएं चलाई गई हैं. उद्देश्य है कि बच्चों के क्रमिक विकास में उन्हें सही पोषण मिले. इसके लिए जरूरी है कि उन्हें उचित आहार मिले. उनका खान-पान और रहन-सहन व्यवस्थित हो. वह बालपन में होने वाले रोग मसलन रतौंधी, बेरी-बेरी, स्कर्वी और रिकेट्स जो कि अलग-अलग विटामिन व खनिज लवण की कमी से होते हैं उनसे दूर रहें.
उनका बचाव हो सके. सकट चौथ इसी समस्या का निपटारा प्राचीन काल से पूजा के तौर पर देखता आ रहा है. ऋषि-मुनि जो कि उच्च कोटि के वैद्य भी हुआ करता थे उन्होंने संपूर्ण आहार की उस श्रृंखला को समझ लिया था जिनका सेवन बच्चों के विकास के लिए जरूरी है. लिहाजा ऐसा व्रत बनाया गया जो कि इसकी भरपाई एक उत्सव के रूप में कर सके.
क्यों श्रीणेश की ही पूजा
अब सवाल उठता है कि पूजन के लिए श्रीगणेश ही क्यों अधिष्ठाता चुने गए. कोई और देव क्यों नहीं? दरअसल वह भी इसलिए क्योंकि विनायक गणपति की मान्यता शिव-पार्वती के पुत्र रूप में है. उनका स्वरूप मनमोहक बाल स्वरूप जैसा है, जिनसे हर कोई एक लाडले बच्चे के तरह प्रेम कर सकता है.
आप किसी हृष्ट-पुष्ट बच्चे का विचार करें तो मन में एक ऐसे ही बच्चे की छवि बनेगी जो थोड़ा गोल-मटोल हो, हंसमुख सा हो, बालसुलभ शरारतें करता हो, जिसकी हर बात मनमोहक और वह चतुर भी हो. सबका मन मोह ले. इस तरह की छवि में श्रीकृष्ण और श्रीगणेश ही सही साबित होते हैं. गणपति प्रथम पूज्य हैं तो इसलिए बच्चों के पोषण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए वह सबसे उचित प्रेरक हैं. इसलिए उनकी पूजा का विधान है. एक तरह से श्रीगणेश प्राचीन काल से ही पोषण के प्रति जागरूकता के लिए ब्रांड एंबेसडर हैं.
सकट चौथ (Sakat Chauth) व्रत का अर्थ समझिए
अब इस पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को समझिए. माघ का महीना सर्दी का होता है. ऐसे में वातावरण की ठंडक को देखते हुए ऐसे खाद्य पदार्थ खाए जाते हैं जिनकी तासीर गर्म हो. तिल, गुड़, घी इसके अच्छे स्त्रोत हैं. वहीं पोषण के लिए जरूरी है ऊर्जा. उत्तर भारत में कई स्थानों पर ऐसे फल और कंद सकट पूजा (Sakat Chauth) में चढ़ाए जाते हैं जो कि देखने में श्रीगणेश की प्रतिकृति जैसे लगते हैं.
इनमें है शकरकंद और सुथनी और साथ में गाजर. शकरकंद कार्बोहाइड्रेट का स्त्रोत है. सुथनी में खनिज लवण पाए जाते हैं. गाजर की लंबाई और सिरे पर पतली नोक किसी सूंड जैसी लगती है, साथ ही इसमें विटामिन A भरपूर पाया जाता है. अमरूद गोल-मटोल पेट जैसी आकृति का है, साथ ही विटामिन C और खनिज पदार्थों का अच्छा स्त्रोत है. तिल की तासीर गर्म होती है. गुड़ ऊर्जा देता है और घी एक तरह का Good Fat है, जिसके कोई साइड इफेक्ट नहीं है.
'मैं से हम की ओर' ले जाती है सनातनी परंपराएं
व्रत के पीछे की कामना है कि सारे बच्चे इसी तरह पोषित हों और भारत के बच्चे विश्व भर में शक्तिशाली बनें. उन्हें कुपोषण का आघात न लगे. वह खुद भी निरोगी रहें और संसार को भी रोगी होने से बचाएं. सर्वे संतु निरामयाः की अवधारणा इसीलिए की गई है. कुल मिलाकर हमारे व्रत और त्योहार 'मैं से हम की ओर' चलने की परंपरा का विकास बद्ध नियम है.
अरस्तु, टॉलस्टॉय जैसे महान दार्शनिकों से बहुत पहले ही ऋषियों के वेदमंत्रों ने बता दिया था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज की पहली कड़ी परिवार ही है. परिवार में सपन्नता और एकता दोनों बनी रहेगी तो एक संपन्न-शक्तिशाली समाज का विकास होगा. जहां यह मेरा है, यह तेरा है. ऐसी अलगाव की भावना नहीं होगी. वैष्णव उपनिषद् में लिखा गया है- अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्. यही हमारा ध्येय है.
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