Sakat Chauth: जानिए कैसे श्रीगणेश बने लक्ष्मी पुत्री संपूर्णानंद, क्या है व्रत विधि

संकष्ठी चतुर्थी का व्रत सौभाग्य और आरोग्य का व्रत है. यह बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना से रखा जाने वाला व्रत है. प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा के पीछे कई कथाएं हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 31, 2021, 06:58 AM IST
  • माता लक्ष्मी ने की थी श्रीगणेश की तपस्या और उन्हें पुत्र रूप में पाया
  • द्रौपदी-सुभद्रा और दमयंती ने भी सकट व्रत के जरिए सौभाग्य पाया
Sakat Chauth: जानिए कैसे श्रीगणेश बने लक्ष्मी पुत्री संपूर्णानंद, क्या है व्रत विधि

नई दिल्लीः सौभाग्य देने वाला और संतान (पुत्र हो या पुत्री) को आरोग्य देने वाला व्रत संकष्ठी चतुर्थी आज 31 जनवरी 2021 को है. भगवान श्रीगणेश को समर्पित यह व्रत उनके बाल स्वरूप को समर्पित है. चतुर्थी तिथि श्रीगणेश को अति प्रिय है, इसलिए उनके सभी व्रत और पर्व इसी तिथि को होते हैं.

मान्यता अनुसार प्रत्येक मास में पड़ने वाली चतुर्थी गणेश चतुर्थी या संकष्ठी चतुर्थी होती है. लेकिन माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्व है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस विशेष दिन कई विशिष्ट लोगों ने इस व्रत को किया था. उनकी कई कथाएं भी हैं जो इस व्रत का आधार बनीं. 

मां लक्ष्मी ने की थी गणेश जी की तपस्या
पौराणिक मान्यताओं को मानें तो सबसे पहले मां लक्ष्मी ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और विघ्नहर्ता की तपस्या की थी. दरअसल, भगवान शिव और पार्वती का भरा-पूरा परिवार था. उनके पुत्र कार्तिकेय, श्रीगणेश, दो पुत्रियां मनसा और अशोक सुंदरी से कैलाश खिलखिलाता और हंसता रहता था.

कहते हैं कि दूसरी ओर मां लक्ष्मी को अभिमान हो गया कि संसार उनकी ही कृपा से सब पा सकता है. इस पर देवर्षि नारद ने भी श्रीहरि के साथ मिलकर कुछ कुचाल चली. उन्होंने कहा कि बिना मां बने कोई स्त्री संपूर्ण नहीं होती. मां लक्ष्मी को यह बात खटकती भी थी. उन्होंने उपाय पूछा तो श्रीहरि ने बताया कि संसार में जो पुत्र श्रेष्ठ हो और जिसके जैसे पुत्र की कामना करती हों, उनका ध्यान कर लो. इस बात पर मां लक्ष्मी को सिर्फ गणपति महाराज का ही ध्यान आया. देवी लक्ष्मी ने उनका व्रत किया, विधि पूर्वक तपस्या की और कहा कि मुझे श्रीगणेश पुत्र रूप में प्राप्त हों. 

गणपति बने लक्ष्मी सुत
माता की इतनी पुकार थी कि गणपति प्रकट हो गए. उन्होंने कहा- मां... यह आप क्या कह रही हैं, आप अपने शक्ति रूप को भूल रही हैं. याद कीजिए आप, माता सरस्वती और मां पार्वती एक ही शक्तियां हैं. मैं तो पहले से ही आपका पुत्र हूं. इसलिए तो मां पार्वती ने मुझे कल्पना से उत्पन्न किया है. दरअसल, यह आप तीनों की ही कल्पना है.

विनायक गणपति के ऐसे वचन सुनकर मां लक्ष्मी को बहुत हर्षित हुईं. उन्होंने श्रीगणेश को पुत्र कहकर गले लगा लिया और कहा तुमने मुझे संपूर्ण आनंद प्रदान किया है. इसलिए आज से तुम गौरी नंदन गणेश के साथ ही लक्ष्मी सुत संपूर्णानंद भी हुए. तब से मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा साथ-साथ होने लगी. 

महारानी दमयंती ने की थी गणपति पूजा
दूसरी कथा महाभारत काल से पहले की नल-दमयंती की है. राजा नल अपना संपूर्ण राज्य जुए में हार गए थे और उनकी पत्नी दमयंती से भी उनका विरह हो गया था. इधर दमयंती भी पतिहीन और राज्यहीन होकर दुख भोग रही थीं. तब एक दिन उन्होंने कष्ट में मां गौरी का ध्यान किया तो मां ने कहा- चिंता मत करो पुत्री तुम शीघ्र ही एक पुत्र को प्राप्त करोगी और सारे कष्टों से भी दूर होगी.

इसलिए तुम विघ्नहर्ता का आह्ववान करो. दमयंती ने माता की बात मानकर और ऋषि शरभंग के सुझाई विधि के अनुसार माघ कृष्ण चतुर्थी का व्रत किया और श्रीगणेश ने उन्हें सौभाग्य का वरदान दिया. 

द्रौपदी-सुभद्रा ने भी रखा था व्रत
तीसरी कथा महाभारत की ही है. जहां नल-दमयंती की यह कथा सुनाकर खुद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी और सुभद्रा को प्रेरित किया के वे भी इस व्रत को करें, ताकि उन्हें श्रीगणेश जैसे चतुर, बुद्धिशाली और बलशाली पुत्र प्राप्त हों. द्रौपदी और सुभद्रा ने श्रीगणेश का व्रत किया. माघ चतुर्थी को विधि-विधान से पूजा की.

इसके परिणाम स्वरूप सुभद्रा को वीर अभिमन्यु और द्रौपदी को अपने पांचों पतियों से उन्हीं के समान पांच बलशाली पुत्र प्राप्त हुए. 

ऐसे कीजिए व्रत
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास की संकष्टी चतुर्थी को तिलकुटा या माही चौथ व वक्रतुंडी चतुर्थी भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि जबतक चंद्र देव को अर्घ्य नहीं दें तो व्रत पूरा नहीं होता.

व्रत तिथि: रविवार, 31 जनवरी 2021
शुभ मुहूर्त समय: 31 जनवरी, 2021 रात के 8 बजकर 24 मिनट से
अर्घ्य देने का शुभ समय: रात 8 बजकर 40 मिनट पर
शुभ मुहूर्त का अंतिम समय: 1 फरवरी, 2021 शाम 6 बजकर 24 मिनट तक

ऐसे कीजिए व्रत और पूजन

  • सकट चौथ के दिन सुबह जल्दी उठें, स्नान करके, साफ कपड़े पहनें.
  • श्रीगणेश की प्रतिमा को पवित्र गंगा जल से स्नान करावाएं.
  • फिर भगवान गणेश की पूजा करें.
  • सूर्यास्त के बाद फिर से स्नान कर लें या गंगा जल से छिड़काव करके, स्वच्छ वस्त्र पहन लें.
  • गणेश जी की मूर्ति के पास कलश में जल भर दें
  • उन्हें धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ आदि चढ़ाएं.

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