खुशबू के शौकीन थे मुगल बादशाह, महकते रहते थे हरम, सबसे बेहतरीन इत्र करते थे इस्तेमाल

ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक मध्यकालीन भारत में मुगल इत्र के बेहद शौकीन थे और इत्र बनाने की कला के संरक्षक भी रहे. हैदराबाद के निजाम जैस्मीन के इत्र का इस्तेमाल किया करते थे. अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने अपनी किताब आइने अकबरी में जिक्र किया है कि अकबर हर दिन इत्र का इस्तेमाल किया करता था. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 12, 2023, 07:55 PM IST
  • इत्र के बड़े शौकीन थे मुगल बादशाह.
  • रानी नूरजहां ने तलाशा था रूह-ए-गुलाब.
खुशबू के शौकीन थे मुगल बादशाह, महकते रहते थे हरम, सबसे बेहतरीन इत्र करते थे इस्तेमाल

नई दिल्ली. दिल्ली का निजामुद्दीन इलाका सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के नाम से जाना जाता है. इस दरगाह के पास पहुंचते हुए आप खुशबू के झोंकों को अनदेखा नहीं कर सकते. इसी दरगाह के पास एक इत्र की मार्केट भी है. यहां आपको दुकानों में शीशे की खूबसूरत बोतलों में इत्र भरे हुए दिखेंगे. ऐसी खुशबू जो हर आने-जाने वाले को अपनी तरफ खींचती है. दरअसल इत्र शब्द का मूल फारसी भाषा में बसता है. अरबी शब्द अत्तर है. इत्र को बनाने में अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यही कारण है कि इसे सीधे शरीर पर लगाने की प्रथा है जैसे कलाई पर, कान पर और गर्दन के पीछे. 

जैस्मीन के दीवाने निजाम
ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक मध्यकालीन भारत में मुगल बादशाह इत्र के बेहद शौकीन थे और इत्र बनाने की कला के संरक्षक भी रहे. हैदराबाद के निजाम जैस्मीन के इत्र का इस्तेमाल किया करते थे. अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने अपनी किताब आइने अकबरी में जिक्र किया है कि अकबर हर दिन इत्र का इस्तेमाल किया करता था. 

मुगल महारानियां-राजकुमारियां करती थीं इस्तेमाल
यह भी कहा जाता है कि मुगल महारानियों और राजकुमारियों का स्नान इत्र या सुगंधित तेल के इस्तेमाल के बिना पूरा नहीं होता था. इनमें भी विशेष रूप से ऊद का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता था. दिलचस्प रूप से इस ऊद के इत्र को असम में बनाया जाता था. एक कहानी के मुताबिक मुगल महारानी नूरजहां स्नान के दौरान सबसे महंगे और खुशबूदार इत्र रूह-ए-गुलाब का इस्तेमाल किया करती थीं. कहते हैं कि मुगल हरम  इत्र की खुशबू से महकते रहते थे. 

कन्नौज के संरक्षक
उत्तर प्रदेश का कन्नौज जिला इत्र की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. मुगलकालीन राजाओं के इत्र प्रेम को इस बात से भी आंका जा सकता है कि कन्नौज के पहले शाही संरक्षक के रूप में नूरजहां और जहांगीर का नाम लिया जाता है. स्थानीय कहानियों के मुताबिक स्नान के दौरान एक बार नूरजहां ने कन्नौज के गुलाबों का इस्तेमाल किया. इस गुलाब की खुशबू ने उन्हें ऐसा दीवाना बनाया कि वो कन्नौज में गुलाब के इत्र पर विशेष रूप से ध्यान देने लगीं. 

अकबर के दरबार में पूरा एक डिपार्टमेंट
इतिहासकारों के मुताबिक अकबर के दरबार में एक पूरा डिपार्टमेंट था जो इत्र बनाने और नई खुशबू तलाशने पर काम करता था. कुछ स्रोतों में यह भी कहा जाता है कि गुलाब के फूलों से इत्र बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत महारानी नूरजहां ने की थी. हालांकि कुछ ऐतिहासिक प्रमाण यह भी बताते हैं वास्तविकता में यह काम नूरहजां की मां अस्मत बेगम ने किया था. अस्मत बेगम फारस की रहने वाली थीं. 
अवध के शासक गाजी-उद्दीन शाह ने अपने बेडरूम के पास इत्र के फव्वारे का निर्माण कराया था. ये फव्वारे आस-पास की जगहों को भी सुंगधित कर देते थे.

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