लंदन: अमेरिकी सरकार के गुप्त यूएफओ कार्यक्रम को लेकर कई खुलासे हुए हैं. एक धमाकेदार दस्तावेज़ के अनुसार, कथित तौर पर चंद्रमा को परमाणु बम विस्फोट की आक्रामक योजना पर विचार किया जा रहा था. उन्नत एयरोस्पेस थ्रेट आइडेंटिफिकेशन प्रोग्राम (एएटीआईपी) के अधिकारियों ने कथित तौर पर परमाणु विस्फोटकों को बाहरी अंतरिक्ष में भेजने जैसे अप्रयुक्त प्रस्तावों की व्यवहार्यता की जांच की.
बेहद हल्की धातुओं की थी तलाश
द सन की रिपोर्ट के मुताबिक यह योजना कभी भी अमल में नहीं आई, लेकिन इसमें थर्मोन्यूक्लियर उपकरणों का उपयोग करके चांद की सतह के माध्यम से विस्फोट करना शामिल था. दस्तावेजों के अनुसार, यह "बेहद हल्के धातुओं" की तलाश के लिए एक प्रस्तावित मिशन का हिस्सा था. अधिकारियों ने कहा कि चट्टानों को चकनाचूर करने के लिए "विस्फोटक" की आवश्यकता थी.
इंटरस्टेलर अंतरिक्ष उड़ान बेहतर बनाना था मकसद
रिपोर्टों के अनुसार, चंद्रमा में एक सुरंग बनाने से यह जांचने में मदद मिलेगी कि क्या कोई नकारात्मक द्रव्यमान (निगेटिव मास) मौजूद है. इस निगेटिव मास से इंटरस्टेलर अंतरिक्ष उड़ान में क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है. यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान ऋणात्मक है, तो वह दूर की बजाय धकेलने पर आपकी ओर गति करेगी.
चंद्रमा के केंद्र में है "नकारात्मक पदार्थ"
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि चंद्रमा के केंद्र में पाए जाने वाले "नकारात्मक पदार्थ" (negative matter) से एक ऐसी सामग्री का निर्माण संभव है जो स्टील जितना मजबूत हो लेकिन 100,000 गुना हल्का., इसका उपयोग अंतरिक्ष यान बनाने के लिए किया जा सकता था. इससे वायुमंडल में यात्रा करने के लिए अंतरिक्ष यान को काफी कम ऊर्जा की आवश्यकता होगी.
पहले भी अमेरिका ने बनाया था ऐसा ही प्लान
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिकी अधिकारियों ने चंद्रमा पर परमाणु हमला करने पर विचार किया हो. वायु सेना के अधिकारियों ने शीत युद्ध के दौरान योजनाओं पर विचार किया . अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 50 साल का वैचारिक संघर्ष चला है. एक शीर्ष-गुप्त योजना, जिसे प्रोजेक्ट A119 के रूप में जाना जाता है, 1950 के दशक में तैयार की गई थी और इसका उद्देश्य चंद्रमा पर परमाणु बम का विस्फोट करना था. ताकि अमेरिका रूस को दिखा सके कि वह स्पेस में क्या कर सकता है.
परियोजना को एक साल बाद ही रद्द कर दिया गया क्योंकि अधिकारियों का मानना था कि चंद्रमा पर उतरना अमेरिकी लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय था. अधिकारियों को यह भी आशंका थी कि अगर यह कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ता तो इसके परिणामस्वरूप अंतरिक्ष का सैन्यीकरण हो सकता था, जिससे एक गेलेक्टिक संघर्ष की आशंका बढ़ सकती थी.
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