लंदनः जलवायु परिवर्तन को लेकर पर्यावरण वैज्ञानिकों की ओर से बड़ा खुलासा किया गया है. वैज्ञानिकों की ओर से किए गए स्टडी में सामने आया है कि मधुमक्खियों की लंबाई छोटी होती जा रही है. वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसा होने से न सिर्फ इको सिस्टम बल्कि इंसानों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिसका नतीजा हम सभी को भुगतना होगा.
इतने हजार मधुमक्खियों पर हुआ रिसर्च
द गार्जियन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक स्टडी में यह भी दावा किया गया है कि जिस हिसाब से गर्मी बढ़ रही हैं वैसी स्थिति में भंवरों की संख्या में कमी आ रही है. ऐसे में पौधों के परागण और पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर संभावित "कैस्केडिंग" प्रभावों देखने को मिल सकता है.
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रॉकी पर्वत के एक क्षेत्र में पिछले आठ साल से इस पर स्टडी कर रहे थे. इस दौरान वैज्ञानिरों ने 20,000 से अधिक मधुमक्खियों के बारे में अध्ययन किया जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि बदलती जलवायु परिस्थितियों पर विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया कैसे हुई.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में इस बात के बारे में जानकारी दी गई है. वैज्ञानिकों ने बताया है कि पर्यावरण की स्थिति साल-दर-साल अलग होती जा रही है. वैज्ञानिकों ने बताया कि जिस क्षेत्र से उन्होंने नमूने लिए थे वह "विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए कमजोर" था.
विदेशी अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह स्टडी विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों पर केंद्रित था, लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा कि अमेरिका में अन्य शोधों ने पर्यावरणीय परिवर्तनों के जवाब में बड़ी मधुमक्खियों में गिरावट देखी है. वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि भौंरा जैसी बड़ी प्रजातियों के लिए ज्यादा गर्मी पड़ना खतरनाक है. क्योंकि ये ज्यादा गर्मी सह नहीं पाते हैं.
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