नई दिल्ली: लद्दाख सीमा पर चीन के साथ सीमा विवाद में उलझे भारत की पीछ में इस्लामी देशों ने पीठ पीछे से वार करने की कोशिश की है. मुसलमान देशों के सबसे बड़े संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन (Organisation of Islamic Cooperation) ने बिना किसी वजह से सोमवार को कश्मीर पर आपात बैठक बुला ली. जिसमें भारत के खिलाफ जमकर जहर उगला गया.
The Contact Group reaffirmed the continued support for the people of #Jammu & #Kashmir & called on the UN Secretary General to use his good offices to make #India abide by the UN Security Council's (UNSC) resolutions & engage in dialogue to calm the situation in the region. pic.twitter.com/RyFyz8tK2E
— OIC (@OIC_OCI) June 22, 2020
इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों की आपातकालीन बैठक
ये आपातकालीन बैठक ओआईसी के कॉन्टैक्ट ग्रुप के विदेश मंत्रियों की थी. जिसमें बयान जारी करके कहा गया कि भारत सरकार की ओर से 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाकर उसके विभाजन का फ़ैसला संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन है. इस्लामिक देशों के बयान में कहा गया कि कश्मीर पर भारत का फैसला संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव की प्रतिबद्धता का भी उल्लंघन है.
इस बैठक का आधार संयुक्त राष्ट्र की उन दो रिपोर्टों को बनाया गया है. जो जून 2018 और जुलाई 2019 में आई थीं. इसके लगभग एक साल बाद इस्लामिक देशों को इसपर आपातकालीन बैठक बुलाने की जरुरत पड़ी.
अभी तक शांत थे इस्लामिक देश
इस्लामिक देशों ने अभी तक कश्मीर के मसले पर चुप्पी बनाए रखी थी. सऊदी अरब ने इस मामले पर कोई बयान जारी नहीं किया था. संयुक्त अरब अमीरात ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया था.
लेकिन अब भारत को चीन के साथ सीमा विवाद में उलझा देखकर इस्लामी देशों ने कायराना हरकत शुरु कर दी और विदेशी मंच पर भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश की है.
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान, तुर्की, मलेशिया और ईरान हमेशा शोर मचाते रहे. लेकिन OIC ने उनकी नहीं सुनी. लेकिन जैसे ही चीन से भारत का विवाद शुरु हुआ. सभी इस्लामी देशों ने एक सुर में चीखने की शुरुआत कर दी. क्योंकि उन्हें लगता कि ऐसा करके वो भारत को मजबूर कर लेंगे.
सऊदी अरब की दोगली राजनीति
सऊदी अरब इस्लामी देशों के संगठन में प्रमुख स्थान रखता है. वो अभी तक कश्मीर के मुद्दे पर भारत का विरोध करने से बचता आया था. क्योंकि उसके कई हित भारत से सधते हैं.
इसका सबूत ये है कि इसके पहले भी कश्मीर पर पाकिस्तान ने तुर्की, मलेशिया, ईरान को साथ लेकर बैठक करने की कोशिश की थी. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन, ईरान के राष्ट्रपति रूहानी, मलेशिया के उस समय के पीएम महातिर मोहम्मद और पाकिस्तान ने कुआलालंपुर में कश्मीर पर बैठक करने की योजना बनाई थी. लेकिन सऊदी अरब के इशारे पर इस मुहिम को रोक दिया गया.
लेकिन अब मुस्लिम देशों ने रंग बदलना शुरु कर दिया है. साल 1994 में जम्मू कश्मीर पर बनाए गए ओआईसी के इस कॉन्टैक्ट ग्रुप में सऊदी अरब भी शामिल है. उसके इशारे के बिना ओआईसी में पत्ता भी नहीं हिलता.
सऊदी अरब नहीं चाहता तो इस्लामिक देशों के संगठन में शायद भारत विरोधी प्रस्ताव पास नहीं हो पाता. सऊदी अरब ने सोमवार की बैठक में भी सावधानी बरतते हुए भारत के खिलाफ किसी तरह का बयान नहीं दिया. लेकिन पीठ पीछे से भारत का नुकसान करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी.
इन मुस्लिम देशों को शायद भ्रम हो गया है कि भारत चीन और नेपाल के साथ उलझकर कमजोर हो गया है. इसलिए उसपर दबाव बनाया जा सकता है.
लेकिन इन दोगले इस्लामी देशों को पता नहीं कि भारत और उसकी सेना का मनोबल इतना ज्यादा बढ़ा हुआ है कि वह चीन पाकिस्तान समेत आधी दुनिया को एक साथ संभाल सकता है. क्योंकि उसके पक्ष में अमेरिका, इजरायल, जापान जैसे तमाम प्रगतिशील देश लामबंद होकर खड़े हैं.
ये भी पढ़ें--Ground Report: 370 हटने के बाद बदल रहा है कश्मीर, लिखी जा रही है विकास की इबारत
ये भी पढ़ें--कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पूरी तरह से शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त