नई दिल्लीः तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने अनौपचारिक परिणामों के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली है. वह साल 2003 से देश का नेतृत्व कर रहे हैं. वह 20 वर्षों से तुर्की के राष्ट्रपति पद पर आसीन हैं. एर्दोगन जीत के बाद अब साल 2028 तक देश की सत्ता के शीर्ष पद पर रहेंगे.
केमल किलिकडारोग्लू को दी मात
समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अर्ध-आधिकारिक अनादोलु एजेंसी की ओर से दिए गए परिणामों का हवाला देते हुए रिपोर्ट दी. इसके तहत एर्दोगन ने 52.10 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि केंद्र-वाम रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) के नेता और विपक्षी ब्लॉक के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार 74 वर्षीय केमल किलिकडारोग्लू को 47.90 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए.
पहले चरण में नहीं निकले थे नतीजे
14 मई को राष्ट्रपति चुनाव के पहले राउंड में एर्दोगन ने 49.52 प्रतिशत वोट अपने नाम किए, जबकि किलिकडारोग्लू को 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे. पहले राउंड में विजेता बनने के लिए आवश्यक मतों में से किसी ने भी 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल नहीं किए, इसलिए राष्ट्रपति पद के लिए फिर चुनाव हुआ.
शरणार्थी मुद्दों ने खींचा लोगों का ध्यान
दोहरे चुनावों में 86.98 प्रतिशत का उच्च मतदान देखा गया, इसमें लगभग 54 मिलियन नागरिक मतदान में शामिल हुए. पिछले दो हफ्तों में दोनों उम्मीदवारों ने शरणार्थी मुद्दों से संबंधित समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया और आतंकवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया.
दोबारा चुने जाने पर एर्दोगन ने एक नई तुर्की सेंचुअरी का वादा किया है. उन्होंने अपने राष्ट्रपति पद पर राज्य संस्थानों के बीच सद्भाव और देश में स्थिरता के लिए एक आवश्यकता के रूप में बल दिया.
भूकंप की तबाही और महंगाई जैसे मुद्दों के बीच एर्दोगन को दूसरे राउंड में जीत हासिल हुई है. एर्दोगन तुर्की को रुढ़िवादी देश बनाने के प्रयास में जुड़े हैं. वह पश्चिमी देशों पर अपनी सरकार को गिराने का भी आरोप लगात रहते हैं. तुर्की में राष्ट्रपति सबसे शक्तिशाली होता है. उसके पास ही शासन की शक्तियां होती हैं.
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