Budhi Diwali: सिरमौर जिले के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र में रविवार से बूढ़ी दिवाली पर्व सेलिब्रेशन शुरू हुआ. इस क्षेत्र में मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या पर बूढ़ी दिवाली पर्व मनाया जाता है. सिरमौर संस्कृति की विशिष्ट पहचान बूढ़ी दिवाली, दीपावली के ठीक 1 महीने बाद मनाई जाती है.
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Paonta Sahib News: सिरमौर जिले के गिरीपार हाटी जनजातीय क्षेत्र में आजकल उल्लास का माहौल है. ढोल नगाड़ों और हुड़क की थाप पर नाचते गाते लोग जश्न मना रहे हैं. दरअसल, पहाड़ी क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली पर्व शुरू हुआ है.
इस क्षेत्र में यह अनोखा पर्व आज भी परंपरागत तरीके से मनाया जाता है. पर्व की शुरुआत अमावस्या की मध्य रात्रि मशाल जुलूस के साथ होती है. मान्यता है कि देवता का गुणगान करते हुए मशाल जुलूस से बुरी आत्माओं को गांव से खदेड़ा जाता है और गांव के बाहर बहुत सी लकड़ियों का बलाराज जला कर बुराई को स्वाह किया जाता है. इस दौरान लोग देव वंदनाओं के साथ-साथ जमकर नाच गाना करते हैं.
दंतकथाओं के अनुसार, इस दूरदराज क्षेत्र में दीपावली पर्व की जानकारी कई दिनों बाद मिली थी. ऐसे में यहां लोगों ने दीपावली के एक महीने बाद मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया. एक मान्यता दैत्यराज राजा बली से भी जुड़ी है.
बताया जाता है कि पाताल लोक में जाने के बाद राजा बलि एक बार धरती पर आए थे. उनके धरती पर दोबारा आगमन के उपलक्ष में इस क्षेत्र में बूढ़ी दीपावली पर्व मनाया जाता है. बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे कोई शास्त्रीय तर्क सामने नहीं आया है. लिहाजा, क्षेत्र के लोग मान्यताओं में न पड़कर पर्व मनाने पर फोकस रखते हैं.
पर्व की विशेषता यह है कि बूढ़ी दिवाली आज भी प्राचीन परंपरागत ढंग से ही मनाया जाता है. हालांकि पहनावे और खान-पान में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन प्राचीन पहाड़ी परंपराओं में पाश्चात्य और मैदानी संस्कृति का लेश मात्रा अंश भी देखने को नहीं मिलता है.
पहाड़ों में लोग आज भी अपनी संस्कृति को संजोहे रखे हुए हैं. घर से दूर रहने वाले लोग भी हर हाल में अपने गांव पहुंचते हैं और पर्व का हिस्सा बनते हैं. परंपराओं के संवर्धन के लिहाज से सुखद बात यह है कि युवा पीढ़ी इन परंपराओं से जुड़कर परंपराओं को आगे बढ़ाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है.
रिपोर्ट- ज्ञान प्रकाश, पांवटा साहिब