Moraji Desai: पाकिस्तान ने साल 1990 में भारत के पूर्व पीएम मोराजी देसाई को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान 'निशान-ए-पाकिस्तान' से नवाजा था. लेकिन इस सम्मान से दो साल पहले भारत नेमहान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 'सीमांत गांधी' खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न से नवाजा था. लेकिन इसके बाद भी दोनों मुल्कों के बीच द्वीपक्षीय रिश्ते अच्छे नहीं हुए. आइए जानते हैं कि आखिर पाकिस्तान ने मोरारजी देसाई को 'निशान-ए-पाकिस्तान' से क्यों नवाजा?
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Moraji Desai: आज पाकिस्तान अपना 78वां यौमे आजादी मना रहा है. वहीं, हिन्दुस्तान अपने 78वें यौमे आजादी की तैयारी कर रहा है. अजादी के बाद से इन दोनों देशों के बीच वैसे रिश्ते नही रहे हैं जैसा दो पड़ोसी मुल्कों का होना चाहिए. हालांकि, दोनों देशों ने अपने रिश्ते को सुधारने के लिए कई मर्तबा पहल किए. इसी कड़ी में पाकिस्तान ने 1990 में एक ऐसी पहल की थी जो बाकी देशों के लिए काफी चौंकाने वाल था. आज इस स्टोरी के जरिए हम आपको बताएंगे कि आखिर पाकिस्तान ऐसी कौन सी पहल की थी.
दरअसल, पाकिस्तान ने भापत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को आज ही के दिन यानी 14 अगस्त 1990 को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'निशान-ए-पाकिस्तान' से नवाजा था. वे पहले भारतीय थे जिन्हें पाकिस्तान ने यह अवार्ड दिया था. पाकिस्तान के मोरारजी देसाई को 'निशान-ए-पाकिस्तान' देने की पीछे क्या मंशा थी यह साफ नहीं है. साथ पड़ोसी देश की इस पहल पीछे क्या कारण था इस पर बहुत कम लोग साफ राय रखते हैं.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों पर कुछ प्रभाव पड़ा या नहीं. क्या सही पाकिस्तान के इस कदम के पीछे का मकसद हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारना था? या महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीमांत गांधी कहे जाने वाले 'खान अब्दुल गफ्फार खान' को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिए जाने के बाद इसे सद्भावना के तहत पाकिस्तान द्वारा भी किसी भारतीय नेता को सम्मानित करना था? यहां बता दें, पाकिस्तान के मोराजी देसाई के सम्मानित करने पहले भारत ने दो साल पहले खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न से नवाजा था. आइए जानते हैं कि पाकिस्तान ने मोरारजी देसाई को 'निशान-ए-पाकिस्तान' क्यों दिया?
क्या इस वजह से मोरारजी देसाई को पाकिस्तान ने सबसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा?
इस पूरे वाकये पर सबसे चर्चित थ्योरी यह है कि इमेर्जेंसी के बाद 1970 के आखिरी के दशक में जब वह भारत के पीएम थे तो पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी करने के लिए इसराइली विमानों को जरूरी ईंधन भरने के लिए भारत की धरती का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी थी. साथ ही पाकिस्तान के तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल जिया-उल हक को बातों ही बातों में यह बता दिया था कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को पाकिस्तान के परमाणु प्रोग्राम के बारे में सब पता है. जिससे पाकिस्तान के शहर कहुंटा में जहां परमाणु प्लांट लगे थे, उसमें सारे भारतीय रॉ एजेंट्स को पाकिस्तानी सेना ने मौत के घाट उतार दिया.
वहीं, इस मामले पर डिफेंस एक्सपर्ट आलोक बंसल इन संभावनाओं से साफ इनकार कर देते हैं कि पाकिस्तान के कहुंटा शहर के परमाणु प्लांट के बारे में पूर्व पीएम मोरारजी देसाई ने जियाउल हक को कुछ बताया था या इस एहसान के चलते उनको 'निशान-ए-पाकिस्तान' दिया गया था. हालांकि, उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान को 1988 में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न दिए जाने की घटना को इसके केंद्र में रखा.
उन्होंने कहा, "पूर्व पीएम मोरारजी देसाई को निशान-ए-पाकिस्तान देने के पीछे सिर्फ एक वजह थी, वह यह था कि भारत ने खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न दिया था. वह स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे, इसलिए भारत सरकार का उनको भारत रत्न देना एक सही तरीका था. खान अब्दुल गफ्फार खान का रुख हमेशा भारत के पक्ष में रहा, इसलिए पाकिस्तान की सरकार को यह पसंद नहीं आया। पाकिस्तान की सरकार ने इसे काउंटर करने के लिए मोरारजी देसाई को चुना."
अब्दुल गफ्फार खान के कद बराबर मोरारजी देसाई कहीं नहीं ठहरते थे; अरविंद जयतिलक
लेकिन पॉलिटिकल एक्सपर्ट अरविंद जयतिलक का राय डिफेंस एक्सपर्ट से बिल्कुल अलग है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट अरविंद जयतिलक इस बात से सहमत नहीं हैं कि जो खान अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तान में रहकर हिन्दुस्तान का पक्ष लेते थे और बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के रवैये के खिलाफ थे. वह कहते हैं, "खान अब्दुल गफ्फार खान किसी भी कीमत पर पाकिस्तान बनने के खिलाफ थे. वह नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान बने. दूसरी चीज यह है कि पाकिस्तान के बनने के बाद बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सरकार का जो रवैया था, उस पर भी गफ्फार खान साहब बहुत विरोध करते थे.
दूसरी तरफ खान अब्दुल गफ्फार खान को पाकिस्तान मुस्लिम लीग के वे नाते जो गफ्फार खान को मुस्लिम लीग का नेता स्वीकार करने के एकदम खिलाफ थे वे उसे अहमियत नहीं देते थे. साथ ही आजादी की लड़ाई में खान अब्दुल गफ्फार खान का जो कद था, उस कद के बराबर मोरारजी देसाई कहीं नहीं ठहरते थे. वह बस एक पीएम के तौर पर माने जाते हैं. इसलिए यह कह देना कि पाकिस्तान ने खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न देने की वजह से मोरारजी देसाई को निशान-ए-पाकिस्तान दिया, यह तर्क बिलकुल गलत है.
क्योंकि जो पाकिस्तान शहीद-ए-आजम भगत सिंह को भुला देता है, जो पाकिस्तान चंद्रशेखर आजाद को भुला देता है और शहीद अश्फाकुल्लाह खां को भुला सकता है. मुझे नहीं लगता कि मोरारजी देसाई साहब उसके लिए बहुत सही व्यक्ति होंगे."
मोरारजी देसाई की एक गलती से रॉ के कई एजेंटों की हुई थी हत्या!
कहुंटा में पाकिस्तान के परमाणु प्लांट की जानकारी भारत को होने और इस पर कार्रवाई न करने की बात को आलोक बंसल भले ही मनगढ़ंत मानते हों, लेकिन अरविंद जयतिलक के इस धारणा को मजबूती से बल देते हैं. वह कहते हैं कि हिन्दुस्तान की खुफिया एजेंसी रॉ की पाकिस्तान के कहुंटा में स्थित परमाणु केंद्रों पर गहरी नजर थी. पाकिस्तान में क्या चल रहा है, एक फोन कॉल पर तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने जनरल जियाउल हक से यह कह दिया था कि आपके परमाणु प्रोग्रोम को लेकर हमारे पास सारी जानकारी है.
हिन्दुस्तानी पीएम का यह बात सुनकर जियाउल हक चोंग गए. उन्होंने इसके तुरंत बाद ही अपनी खुफिया एजेंसी ISI को एक्टिव कर दिया. और हिन्दुस्तानी से आए सभी रॉ एजेंट को पकड़वा कर उनकी हत्या करवा दी. उन्होंने कहा कि इस बातचीत के बाद सवाल उठने लगा कि मोरारजी देसाई ने जनरल जिया को यह सारी जानकारी जानबूझ कर दी या बड़बोलेपन में उनके मुंह से यह निकल गया. जैसे जनरल परवेज मुशर्रफ अपने कार्यकाल के दौरान कई बार कहते थे कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में है. हालांकि बाद में ऑफिशियली वो उस बात से ही पलट गए. हालांकि, उनका मानना है कि मोरारजी देसाई को निशान-ए-पाकिस्तान देने के पीछे सॉफ्ट कार्नर भी था, जो पाकिस्तान को उनके 'निशान-ए-पाकिस्तान' देने के पीछे सबसे बड़ा कारण है.
दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों पर नहीं पड़ा कोई प्रभाव
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में इसके बाद क्या प्रभाव पड़ा, इस पर एक्सपर्ट्स की राय तकरीबन एक सी है. एक्सपर्ट्स आलोक बंसल दोनों पड़ोसी देशों के बीच खराब रिश्तों के लिए पाकिस्तान की टू नेशन थ्योरी को जिम्मेदार मानते हैं.
वहीं, अरविंद जयतिलक भी इस बात से साफ इनकार करते हैं कि मोरारजी देसाई को भारत रत्न देने के बाद दोनों मुल्कों के डिप्लोमेटिक रिश्तों में कोई प्रभाव आया. वह कहते हैं, "इसको देने के बाद भी भारत-पाकिस्तान रिश्तों में कोई खास फर्क नहीं पड़ा."