Gyanvapi Mosque ASI Survey: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद का दोबारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण शुरू हो चुका है. ASI को निर्देश दिया गया है कि मस्जिद में बिना तोड़फोड़ किए सर्वे किया जाए.
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Gyanvapi Mosque ASI Survey: उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने शनिवार को ज्ञानवापी परिसर में एक बार फिर वैज्ञानिक सर्वेक्षण कार्य शुरू किया. सरकारी वकील राजेश मिश्रा ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सर्वे टीम सुबह परिसर पहुंची और अपना काम फिर से शुरू किया, जो शाम पांच बजे खत्म होगा. मिश्रा शुक्रवार को दिन भर हुए सर्वे के दौरान सर्वेक्षण टीम के साथ थे. इससे पहले, इलाहाबाद उच्च न्यायालय से हरी झंडी मिलने के बाद ASI की एक टीम कड़ी सुरक्षा के बीच शुक्रवार सुबह ज्ञानवापी परिसर में दाखिल हुई थी और सर्वेक्षण कार्य शुरू किया था.
CJI ने तोड़फोड़ करने से किया मना
शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भई सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. हालांकि, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ASI को सर्वेक्षण के दौरान परिसर में किसी भी तरह की तोड़फोड़ की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था. वहीं, वाराणसी की जिला अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में वैज्ञानिक सर्वेक्षण को पूरा करने के लिए ASI को चार सप्ताह का अतिरिक्त वक्त दिया था.
सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि दूसरे दिन के सर्वेक्षण कार्य के लिए भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है और मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल मौजूद है. ज्ञानवापी परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण यह तय करने के लिए किया जा रहा है कि 17वीं शताब्दी में बनी इस मस्जिद का निर्माण एक हिंदू मंदिर के ढांचे के ऊपर तो नहीं किया गया है.
कैसे हो रहा सर्वे?
ASI को निर्देश दिया गया है कि मस्जिद को बिना खोदे या तोड़े उसका सर्वे किया जाए. ऐसे में ASI जीपीआर की मदद से सर्वे कर रहा है. दरअसल ग्राउंड पेनेट्रेटिंग (GPR) सर्वे एक ऐसी पद्धति है कि जिसमें बिना खोदे हुए किसी भी इमारत का 8 से 10 मीटर तक गहरी चीजों का पता लगाया जाता है. इसके जरिए जमीन के नीचे दबी कंक्रीट, धातु, पाइप और केबल का पता लगाया जा सकता है. जानकारों का मानना है कि इलेक्ट्रोमैग्नेट रेडिएशन की मदद से इसे सिग्नल मिलते हैं. इसके जरिए यह भी पता लगाना आसान है कि जमीन के नीचे किस तरह की चीज है.