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Supreme Court Historical Verdict 2024: 2024 में बिल्कीस बानो से लेकर बुलडोजर जस्टिस और मदरसे पर SC का मुसलमानों के हक में कैसा रहा इंसाफ

Supreme Court Historical Verdict 2024: इस साल सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों से जुड़े कुछ अहम फैसले सुनाए हैं, जिन्होंने देश के कानून और नीतिगत ढांचे को एक नया आकार दिया है. ऐसे में आइए जानते हैं इस साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों से जुड़े कुछ मामलों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.

Supreme Court Historical Verdict 2024: 2024 में बिल्कीस बानो से लेकर बुलडोजर जस्टिस और मदरसे पर SC का मुसलमानों के हक में कैसा रहा इंसाफ

Supreme Court Historical Verdict 2024: आज साल 2024 का आखिरी दिन है. यह साल भारत की न्यायपालिका के लिए किसी बदलाव से कम नहीं है. क्योंकि इस साल सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों से जुड़े कुछ अहम फैसले सुनाए हैं, जिन्होंने देश के कानून और नीतिगत ढांचे को एक नया आकार दिया है. बिल्किस बानो केस हो या बुलडोजर जस्टिस का फैसला, इन फैसलों ने इस साल बहस को हवा दी. सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले ने संवैधानिक कानून की सीमाओं को नए सिरे से परिभाषित किया है. जिसने सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी ताने-बाने पर अमिट छाप छोड़ी है. ऐसे में आइए जानते हैं इस साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों से जुड़े कुछ मामलों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.

बिल्किस बानो मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2024 को बिल्किस बानो गैंगरेप मामले और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उसके 7 परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को माफ़ी देने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को रद्द कर दिया और आदेश दिया कि उन्हें दो हफ़्ते के भीतर वापस जेल भेजा जाए. जिसके बाद सभी आरोपियों ने जेल में सरेंडर कर दिया. 

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गुजरात सरकार आरोपियों को किया था रिहा
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने माफ़ी को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि गुजरात सरकार माफ़ी का आदेश पारित करने के लिए उपयुक्त सरकार नहीं है. पीठ ने पूछा कि क्या महिलाओं के खिलाफ़ जघन्य अपराधों में माफ़ी दी जा सकती है, चाहे वे किसी भी धर्म या पंथ की हों. गौरतलब है कि सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने माफ़ी दे दी और 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया.

बुलडोजर जस्टिस पर चला सुप्रीम कोर्ट का हंटर
भाजपा शासित राज्यों में एक खास समुदाय के खिलाफ बुलडोजर चलाने का चलन शुरू हो गया. इसके कारण सैकड़ों लोगों को बेघर होना पड़ा है. 13 नवंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ एक बड़ा फैसला सुनाया और मनमाने ढंग से की गई तोड़फोड़ की कड़ी निंदा की. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की कार्रवाई उचित प्रक्रिया और निष्पक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों के साथ-साथ व्यक्तियों के कानूनी अधिकारों का भी उल्लंघन करती है.

तत्कालीन चीफ जस्टीस ने की थी ये टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि बुलडोजर के जरिए न्याय किसी भी सभ्य न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है. अगर लोगों के घरों को सिर्फ इसलिए गिरा दिया जाए क्योंकि वे मुल्जिम या मुजरिम हैं तो यह “पूरी तरह से असंवैधानिक” होगा. वहीं, जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने अवैध ढांचों को गिराने के नियमन के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी दिशा-निर्देश पेश किए. पीठ ने कहा था “आश्रय का अधिकार आर्टिकल 21 के पहलुओं में से एक है. हमारे विचार से, ऐसे निर्दोष लोगों के सिर से आश्रय हटाकर उनके जीवन के अधिकार से वंचित करना पूरी तरह से असंवैधानिक होगा.”

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कोर्ट ने सरकार को लगाई फटकार
कोर्ट ने आगे कहा, “कार्यपालिका न्यायाधीश बनकर यह तय नहीं कर सकती कि मुल्जिम व्यक्ति मुजरिम है या नहीं और इसलिए उसकी आवासीय/व्यावसायिक संपत्ति/संपत्तियों को ध्वस्त करके उसे दंडित नहीं कर सकती. राजस्थान और मध्य प्रदेश में राज्य सरकारों द्वारा घरों को गिराए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा, "कार्यपालिका का ऐसा कृत्य उसकी सीमाओं का अतिक्रमण होगा." इन मामलों में, मुस्लिम किरायेदारों पर ऐसे अपराध करने का आरोप लगाया गया था, जिसके कारण सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ.

Uttar Pradesh Madrasa Education Act
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन माना था और इस एक्ट को रद्द कर दिया था. कोर्ट के इस फैसले सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी गई. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को संवैधानिक रूप से वैध माना. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी कानून को तभी रद्द किया जा सकता है, जब वह संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो या विधायी क्षमता से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करता हो.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मदरसा अधिनियम सिर्फ इस हद तक असंवैधानिक है कि यह फाजिल और कामिल के तहत उच्च शिक्षा की डिग्री प्रदान करता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 12 के साथ विरोधाभासी है.

नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए 
अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम आए भारतीय मूल के विदेशी प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है. धारा 6ए बांग्लादेश से अवैध प्रवास को संदर्भित करती है, जिस पर 1985 के ‘असम समझौते’ ने चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने असम की विशिष्ट जनसांख्यिकीय समस्याओं और 1971 की कट-ऑफ तिथि के ऐतिहासिक संदर्भ के आधार पर प्रावधान को बरकरार रखा.

नेमप्लेट विवाद
उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी दुकानों पर नेमप्लेट लगाने का आदेश दिया गया था. इसके बाद देश में कई भाजपा शासित राज्यों में भी ऐसे ही आदेश दिए गए थे. जिसके बाद देश की सियासत गरमा गई थी. सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की बेंच ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी. हालांकि कोर्ट ने कहा कि हमारा आदेश स्पष्ट है कि अगर कोई अपनी मर्जी से दुकान के बाहर अपना नाम लिखना चाहता है तो हमने उसे नहीं रोका है. हमारा कहना है कि किसी को नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991
उत्तर प्रदेश की एक अदालत द्वारा शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिए जाने के बाद संभल में हिंसा भड़क उठी और प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 पर बहस हुई. मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया, जिसके बाद कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 पर बड़ा फैसला सुनाया. सीजेआई ने अगली सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद से जुड़ा कोई भी नया मामले पर लोवर कोर्ट को सुनवाई नहीं करने का आदेश दिया. चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद से जुड़ा कोई भी नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र का जवाब दाखिल नहीं हो जाता, तब तक मामले की सुनवाई पूरी तरह संभव नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई के दौरान कोई भी नया मामला दर्ज नहीं किया जा सकता.

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क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 के मुताबिक, धार्मिक स्थलों की स्थिति की रक्षा करता है और इसमें किसी भी तरह के बदलाव पर रोक लगाता है. हालांकि, अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया. राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई मुद्दे उठाए गए हैं, जिनकी विस्तार से जांच की जाएगी.

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Tauseef Alam

तौसीफ आलम पिछले चार सालों से पत्रकारिता के पेशे में हैं. उन्होंने देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है. Amar Ujala,Times Now...और पढ़ें

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