मधुशाला ही नहीं, अहमदाबाद के एक कब्रिस्तान की चाय की दुकान भी बढ़ाती है आपस में मेल
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मधुशाला ही नहीं, अहमदाबाद के एक कब्रिस्तान की चाय की दुकान भी बढ़ाती है आपस में मेल

अहमदाबाद की ये चाय की दुकान बेहद खास है. यह दुकान एक मुस्लिम कब्रिस्तान के अंदर है और इसे एक मुसलमान चलाता है. यहां सियासी चर्चा तो होती है, लेकिन उसमें धर्म शामिल नहीं होता है. 

Lucky tea stall

अहमदाबादः हरिवंश राय बच्चन की एक कविता है, ’बैर कराते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला’ यानी मंदिर और मस्जिद जहां दो लोगों के बीच दीवारें खींच देती हैं और आपस में बैर कर देतें हैं, वहीं मधुशाला में आकर ये भेद मिट जाते हैं. हालांकि ये भेद सिर्फ मधुशाला ही नहीं बल्कि किसी टपरी पर लगी चाय की दुकान भी मिटा देती है. अहमदाबाद की एक चाय की दुकान ये काम बखूबी अंजाम दे रहा है. वह भी तब जब ये चाय की दुकान किसी हाट और बाजार में न होकर एक कब्रिस्तान के अंदर खोली गई है.   
अहमदाबाद की ये चाय की दुकान बेहद खास है. यह दुकान एक मुस्लिम कब्रिस्तान के अंदर है और इसे एक मुसलमान चलाता है, लेकिन यहां आने वाले ग्राहक सभी धर्मों के होते हैं और इस बात का खास ख्याल रखते हुए दुकानदार भी यहां सिर्फ शाकाहारी खाद्य पदार्थ बेचता है.

दुकान में लगी है मकबूल फिदा हुसैन की पेंटिंग 
इस दुकान की एक खास पहचान यह है कि यहां मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की एक बड़ी सी पेंटिंग लगी है. दुकान की एक दीवार पर टंगी एम एफ हुसैन की पेंटिंग पर रेगिस्तान और ऊंटों की तस्वीर के साथ पहला कलमा लिखा है. दुकान चलाने वाले अब्दुल रजाक मंसूरी बड़े फख्र के साथ कहते हैं कि यह चाय की इकलौती दुकान है, जहां हुसैन साहब की पेंटिंग लगी है. भारत के सबसे महंगे चित्रकारों में शामिल हुसैन की इस पेंटिंग को हर रात उतारा कर सुरक्षित रखा जाता है.

इस जगह में कुछ तो खास हैः हिंदू ग्राहक 
मुस्लिम बहुल इलाके में स्थित इस लकी टी-स्टॉल पर हर मजहब के लोग, नौकरीपेशा लोग और छात्र चाय की चुस्की लेने आते हैं. यहां धर्म और सांप्रदाय सभी का भेद मिट जाता है. दरियापुर के रहने वाले सागर भट्ट रोजाना सुबह मंदिर जाते हैं और वहां से लौटते वक्त यहां चाय पीने के लिए रुकते हैं. उन्होंने कब्रिस्तान की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘इस जगह चाय पीने का अलग ही मजा है. इस जगह में कुछ तो खास है, जो सभी को यहां खींच लाती है.’’ 

चाय की दुकान से बन गया है लकी चौक 
मंसूरी के मुताबिक मुस्लिम बहुल इलाके में छह दशकों से चल रही ये यह दुकान हर आम आदमी के लिए खान-पान का अड्डा है. मंसूरी ने कहा, ’’छह दशक पहले ये चाय की दुकान नीम के पेड़ के नीचे एक ठेले पर शुरू की गई थी, और काम बढ़ने के साथ ही कब्र के आसपास इसका विस्तार होता गया. दुकान इतनी मशहूर है कि इसके पास वाला ट्रैफिक सिग्नल लकी चौक के नाम से मशहूर हो चुका है.  

इस चुनाव में कारोबार है अहम मुद्दा 
गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के कानफोड़ू शोर से दूर पुराने अहमदाबाद के जमालपुर-खड़िया की यह दुकान बड़ी शांत रहती है. हालांकि यहां चुनावों पर चर्चाएं भी होती है. चाय पीने आए सागर भट्ट बताते हैं, ’’इस बार के चुनाव में धार्मिक भावनाओं से ज्यादा कारोबार को प्रभावित करने वाले आर्थिक मुद्दे अहम हैं.’’ निर्माण ठेकेदार भट्ट ने कहा, ‘‘मैं अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, लेकिन सरकार से उम्मीद करता हूं कि अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए ताकि मेरा कारोबार ठीक- ठाक चलता रहे. हम गुजरातियों के लिए धंधा सबसे पहले और जरूरी होता है.’’ 
इसी दुकान पर चाय पी रहीं कॉलेज छात्राएं रितू और तान्या को भी यहां चाय पीने आना अच्छा लगता है. चुनाव पर बात करने पर पहली बार मतदान करने जा रही तान्या ने कहा, ‘‘मेरे गुजरात में कारोबारी माहौल यहां की यूएसपी है. इसे किसी भी कीमत पर प्रभावित नहीं होने देना चाहिए.’’ 

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