'दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो', अब्दुल रहमान एहसान देहलवी के शेर
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'दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो', अब्दुल रहमान एहसान देहलवी के शेर

Abdul Rahman Ehsan Dehlvi: अब्दुल रहमान एहसान देहलवी शायर होने के साथ ही इस्लामिक जानकार थे. वह अरबी और फारसी भी जानते थे. आज हम पेश कर रहे हैं उनके बेहतरीन शेर. 

'दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो', अब्दुल रहमान एहसान देहलवी के शेर

Abdul Rahman Ehsan Dehlvi: अब्दुल रहमान एहसान देहलवी उर्दू के मशहूर शायर हैं. उन्होंने इश्क और माशूक पर बेहतरीन शेर लिखे हैं. एहसान दहेलवी 1182 में दिल्ली में पैदा हुए. उन्होंने तीन मुगल राजाओं शाह आलम-2, शाह अकबर-2, और बहादुर शाह जफर का दौर देखा है. वह सैर करने के शौकीन थे. वह शाह आलम-2 के साथ वक्त बिताने के लिए अक्सर लखनऊ आया करते थे. आज हम पेश कर रहे हैं उनके बेहतरीन शेर. 

पलकों से गिरे हैं अश्क टप टप 
पट से वो लगा हुआ खड़ा है 

शब पिए वो शराब निकला है 
रात को आफ़्ताब निकला है 

क्यूँ न रुक रुक के आए दम मेरा 
तुझ को देखा रुका रुका मैं ने 

आग इस दिल-लगी को लग जाए 
दिल-लगी आग फिर लगाने लगी 

तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम 
तू इक आन लेकिन न याँ आन निकला 

गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए 
वगर्ना याद थीं हम को शिकायतें क्या क्या 

यारा है कहाँ इतना कि उस यार को यारो 
मैं ये कहूँ ऐ यार है तू यार हमारा 

याद तो हक़ की तुझे याद है पर याद रहे 
यार दुश्वार है वो याद जो है याद का हक़ 

याद तो हक़ की तुझे याद है पर याद रहे 
यार दुश्वार है वो याद जो है याद का हक़ 

दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो 
मेरा नुक़सान नहीं अपना ज़ियाँ कीजिएगा 

डर अपने पीर से बी पीर पीर पीर न कर 
कि तेरे पीर के वा'दे ने मुझ को पीर किया 

चैन इस दिल को न इक आन तिरे बिन आया 
दिन गया रात हुई रात हुई दिन आया 

न पाया गाह क़ाबू आह मैं ने हाथ जब डाला 
निकाला बैर मुझ से जब तिरे पिस्ताँ का मुँह काला 

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