Eid milad un nabi 2023: पैगंबर हजरत मोहम्मद (Prophet Muhammad) का जीवन इंसानों के लिए एक आदर्श हैं, उनकी शिक्षाएं और उनके संदेश में पूरी मानवता और प्रकृति का कल्याण निहीत है.. उनसे प्रेम करने और उनके प्रति श्रद्धा दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है कि उनकी सुन्नतों और उनकी बातों को अपनी जिंदगी में उतारा जाए और उसपर चला जाए..
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नई दिल्लीः आज भारत सहित दुनियाभर में इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब (स.) (Prophet Mohammad) का जन्मदिन मनाया जा रहा है. कहीं जश्न और जुलूस तो कहीं उनकी याद में सभा और संगोष्ठियों का आयोजन कर उनकी शिक्षाओं और संदेशों पर लोग जिक्र कर रहे हैं. उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने और उसपर अमल करने को लेकर विमर्श किया जा रहा है. मोहम्मद (स.) का जन्म अरब की धरती पर उस वक्त हुआ था, जब अरब दुनिया का सबसे खराब समाज और स्थान बन चुका था. वहां, दारू-शराब आम हो चुका था. समाज में झूठ-फरेब, बेइमानी, भय और भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था. एक इंसान दूसरे इंसान का खून का प्यासा हो गया था.
बेटियां पैदा होते ही जमीन में गाड़ दी जाती थी. एक-एक पुरुष 100-100 महिलाओं से शादी करता था. महिलाएं बाजार में बिकने वाली वस्तु बन गई थी. विधवा महिलाओं का जीवन नरक बन चुका था. बाजारों में इंसान और गुलाम खरीदे और बेचे जा रहे थे. समाज का बलशाली व्यक्ति कमजोरों पर जुल्म कर रहा था. समाज में उंच-नीच, गोरे-काले, अमीर-गरीब, कमजोर और आला कबीलों के भेदभाव में इंसान छोटा हो गया था. यानी जब इंसानों की कीमत और उसका वैल्यू समाज में गिर गया था.. इंसानों से इंसानियत के गुण खत्म हो गए थे, ऐसे वक्त में अरब समाज में मोहम्मद इंसानों को सच्चाई का सही रास्ता दिखाने के लिए धरती पर भेजे गए. वह अल्लाह का संदेश लेकर आए.. लोगों को इंसान बनाया, उन्हें आपस में प्रेम करना सिखाया.. इंसानों की कद्र करना सिखाया.. पूरी दुनिया के इंसानों के लिए मोक्ष का रास्ता सुझाया..
उनकी शिक्षाएं पूरे समाज और इंसान को सही रास्ता दिखाने और उनपर चलने के लिए प्रेरित करती हैं.. उनकी बातें, उनके संदेश ऐसे थे, जिसका पूरी दुनिया के लोगों पर असर पड़ा.. क्योंकि वह पूरी मानवता के हित में थे..
यहां पेश हैं, मोहम्मद की कुछ चुनिंदा शिक्षाएं और सदेंश जो पूरी मानवता का पथ-प्रदर्शन करती हैं और करती रहेंगी;
तुम नहाने, वजू करने या किसी काम के लिए जरूरत से ज्यादा पानी न बहाओ.. पानी इंसानों को दी गई प्रकृति की सबसे बड़ी नेमत है.
किसी अनाथ बच्चे के सामने अपने बच्चों को प्यार न करो..इससे उस बच्चे को तकलीफ होगी.. वह अपने माता-पिता को याद कर बेकरार हो जाएगा..
फल खाकर छिलके बाहर ऐसी जगह मत फेको जहां किसी ऐसी व्यक्ति की नजर पड़े जो इस फल को खरीदकर खा नहीं सकता हो..
पड़ोस में अगर कोई भूखा है, और तुम अपना पेट भरकर सो गए, तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते.
बीमार को तुम देखने नही जाते हो और इंसानों के मिलने पर उसकी खैरियत नही पूछते हो, तो तुम सच्चे इंसान नहीं हो.
दूसरे की अमानत में खयानत करते हो, दूसरे का माल हड़प लेते हो, तो तुम अभी भी मुसलमान नहीं बने हो..
बेटे को बेटी से ज़्यादा पढ़ाते हो, बेटी को अपनी कमाई में हिस्सा नही देते हो...बेटियों से ऊँची आवाज़ में बात करते हो तो तुम मुसलमान नहीं हो सकते...
औरत से सख़्त लहजे में बात करते हो.. उसे बराबर का नहीं समझते हो.. अपनी बीवी से हुस्न सुलूक नहीं करते हो, पराई औरतों से निगाह मिलाते हो.. तो तुम मुस्लमान और इंसान नहीं हो सकते..
अपने भाई से जलन और हसद रखते हो.. उसकी तरक्की देखकर जलते हो, तो तुम सच्चे इंसान नहीं हो सकते..
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बूढ़े तुमसे बात करने, पूछने या कुछ भी कहने में डरते हों तो यक़ीन जानो तुम हज़रत मोहम्मद के जलाए चराग़ की रौशनी के बावजूद एक अँधेरा हो..
अगर तुम्हारे लफ़्ज़ किसी के दिल को दुखाते हैं..तुम्हारा होना गरीब मज़लूम को दर्द देता है. तुम ज़ुल्म के हिमायती हो तो तुम इंसान नहीं हो..
तुम अपने कामगारों को उनका पसीने सूखने के पहले उसकी मजदूरी नहीं देते हो.. उसकी क्षमता से ज्यादा काम लेते हो.. उससे अच्छा सुलूक नहीं करते हो..तो तुम मुसलमान नहीं हो सकते..
तुम अपनी दावत में दो तरह का खाना बनवाते हो.. एक को खराब और एक को बढ़िया खाने खिलाते हो, तो तुम मुसलमान नहीं हो सकते..
तुम दूसरों के लिए भी वहीं चीजे पसंद नहीं करते हो जो अपने लिए करते हो, तो तुम मुसलमान नहीं हो सकते..
तुम अगर अपने मुल्क से मोहब्बत नहीं करते, तो तुम मुसलमान नहीं हो सकते...
अगर तुम ब्याज का कारोबार करते हो, किसी को दिए उधार पर ब्याज लेते हो, तो तुम मुसलमान नहीं हो सकते.
अगर तुम खानदान, रंग, जाति, नस्ल, देश, क्षेत्र के आधार पर इंसानों से भेद-भाव करते हो तो तुम खुद को ईमान वाला नहीं कह सकते हो..
अगर तुम गुनाहगारों को माफ़ नहीं करते, तुम माफ़ी से ज्यादा बदला लेने का भाव रखते हो तो तुम मोमिन नहीं हो सकते...
मोहम्मद धरती पर इंसानों को यही संदेश देने आए थे.. यही उनका इस्लाम था.. ये पूरी मानवता के कल्याण के लिए है. अगर आप हिन्दू हैं तो राम-कृष्ण आप के चरित्र से झलकने चाहिए.. अगर आप ईसाई हैं तो ईसा, यहूदी हैं तो मूसा और अगर मुसलमान हैं तो मोहम्मद आपके आचरण में होने चाहिए. और अगर किसी को श्रेष्ठ और महामानव बनना है, तो उसके आचरण और चरित्र से ईसा, मूसा, कृष्ण, राम, मोहम्मद, बुद्ध, नानक सब झलकने चाहिए.. यही धर्म है.. यही मानवता है..
INPUTS: हफीज किदवई, स्वतंत्र लेखक और इतिहासकार
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