Justice Sanjiv Khanna Oath: जस्टिस संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस के बतौर शपथ ले ली है. वह मई 2025 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहेंगे. वह उस बेंच का हिस्सा थे जिसने जम्मू व कश्मीर का स्पेशल दर्जा खत्म करने वाला फैसला बरकरार रखा था.
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Justice Sanjiv Khanna Oath: जज संजीव खन्ना ने सोमवार को भारत के 51वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जज संजीव खन्ना को पद की शपथ दिलाई. 14 मई, 1960 को जन्मे जज खन्ना छह महीने से कुछ अधिक समय तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करेंगे और 65 साल की उम्र पूरी होने पर 13 मई, 2025 को रिटायर हो जाएंगे. उन्होंने न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ का स्थान लिया है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 65 साल की आयु पूरी होने पर रविवार को रिटायर हो गए.
इन फैसलों की वजह से चर्चा में रहे
खन्ना ईवीएम की शुचिता को बनाए रखने, चुनावी बांड योजना को खत्म करने, अनुच्छेद 370 को हटाने और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने जैसे कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं. जज खन्ना, दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति देव राज खन्ना के पुत्र और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एच. आर. खन्ना के भतीजे हैं.
कौन हैं खन्ना?
18 जनवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत हुए जज संजीव खन्ना हाई कोर्ट के जज बनने से पहले अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी के वकील थे. वे लंबित मामलों को कम करने और न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के सपोर्टर रहे हैं. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के चाचा न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना आपातकाल के दौरान कुख्यात ए. डी. एम. जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देकर सुर्खियों में आये थे. आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को रद्द किए जाने को बरकरार रखने वाले संविधान पीठ के बहुमत के फैसले को न्यायपालिका पर एक "काला धब्बा" माना गया.
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दिया सबसे अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट में जज संजीव खन्ना के उल्लेखनीय फैसलों में से एक है चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के उपयोग को बरकरार रखना, जिसमें कहा गया है कि ये उपकरण सुरक्षित हैं और इनसे बूथ कब्जाने तथा फर्जी मतदान की समस्या खत्म हो जाती है. न्यायमूर्ति खन्ना की सदारत वाली पीठ ने 26 अप्रैल को ईवीएम में हेरफेर के संदेह को "निराधार" करार दिया था और पुरानी मतपत्र प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया था. वह उन पांच जजों की पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने राजनीतिक दलों को वित्तपोषित करने वाली चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार किया था.
अनुच्छेद 370 पर फैसला
न्यायमूर्ति खन्ना उन पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति खन्ना की सदारत वाली पीठ ही थी, जिसने पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाला मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए एक जून तक अंतरिम जमानत दी थी.
शुरूआती जिंदगी
न्यायमूर्ति खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘कैम्पस लॉ सेंटर’ से कानून की पढ़ाई की थी. न्यायमूर्ति खन्ना राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नाल्सा) के कार्यकारी अध्यक्ष थे. उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया और शुरुआत में यहां तीस हजारी परिसर में जिला अदालतों में तथा बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत की.