भारत में हर साल 58 लाख से ज्यादा लोग कैंसर, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी जैसी गैर-संचारी बीमारियों (एनसीडी) की चपेट में आकर मर जाते हैं.
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नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी की दूसरी लहर इस वक्त सभी का ध्यान आकर्षित कर रही है, लेकिन इसी के साथ हमें उन खतरनाक बीमारियों को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, जिनकी वजह से पिछले कई दहाइयों से लोगों की जानें जाती रही हैं.
भारत में हर साल 58 लाख से ज्यादा लोग कैंसर, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी जैसी गैर-संचारी बीमारियों (एनसीडी) की चपेट में आकर मर जाते हैं. कई बार इनका इलाज करना भी मुश्किल हो जाता है. हालांकि अपने खानपान में हम कुछ बदलाव लाकर इन्हें खुद से दूर रख सकते हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था विकासशील स्थिति में है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैकेज्ड फूड के पहुंचने से इनके इस्तेमाल में इज़ाफा हुआ है. जिनमें आमतौर पर नमक, चीनी और वसा की मात्रा ज्यादा होती है. इनसे एनसीडी का खतर और भी गहराता जा रहा है.
ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) के साथ न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई), एपिडेमियोलॉजिकल फाउंडेशन ऑफ इंडिया (ईएफआई) और पीडियाट्रिक्स एंड एडोलसेंट न्यूट्रिशन सोसाइटी (पीएएन) ने एक मजबूत न्यूट्रिएंट प्रोफाइल मॉडल के महत्व पर चर्चा करने के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया. जिसमें प्रोसेस्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की खपत को लेकर मार्गदर्शन भी किया गया.
इस दौरान दुनियाभर के कई माहिर डॉक्टर्स और सीनियर वैज्ञानिकों ने फूड इंडस्ट्री की तरफ से सेहत को लेकर आ रही मुश्किलों पर बात की. ब्राजील, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका ने नमक, चीनी और वसा के लिए वैज्ञानिकों के ज़रिए बताए गए सीमा को अपनाकर अपनी आबादी, खासकर बच्चों की हिफाजत के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं.
पोषक तत्वों की रूपरेखा भोजन और पीने वाली चीजों को उनकी पोषण संरचना के मुताबिक वगीर्कृत करने की एक वैज्ञानिक विधि है. इसे सोडियम, संतृप्त वसा और अतिरिक्त चीनी की खपत को कम करने के प्रमुख लक्ष्यों के साथ विकसित किया गया है.
न्यूट्रीशियन प्रोफाइल मॉडल (एनपीएम) के ज़रिए विशिष्ट खाद्य और पेय पदार्थों को वर्गीकृत किया गया है, जिससे हमें अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों (नमक, चीनी और/या संतृप्त वसा में उच्च) की पहचान करने और उनमें अंतर करने में मदद मिले. एनपीएम के ज़रिए तय किए गए इस कट ऑफ के आधार पर फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल उपभोक्ताओं को सूचित करता है कि क्या किसी उत्पाद में ज्यादा चीनी, सोडियम और संतृप्त वसा है? क्या इससे उनकी सेहत को कोई फायदा मिलने वाला है? साथ ही एनपीएम के ज़रिए ऐसे प्रचार और विपणन पर प्रतिबंध लगाए जाने के लिए मार्गदर्शन भी किया जा सकता है, जो खास तौर पर पर बच्चों और किशोरों के लिए हो.
ब्राजील के साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रोफेसर कार्लोस ए. मोंटेरो कहते हैं, "एनपीएम डब्ल्यूएचओ और दुनिया भर के माहिरों के ज़रिए बहुत शोध और क्षेत्र स्तर के अध्ययन के बाद विकसित किए गए ढांचे हैं."
लैटिन अमेरिका के लिए नोवा क्लासीफिकेशन और एनपीएम मॉडल को विकसित करने में अहम किरदार निभाने वाले प्रोफेसर मोंटेरो ने प्रसंस्कृत भोजन को समूहबद्ध करना एक अच्छा अभ्यास माना. उन्होंने कहा, "डब्ल्यूएचओ के सीएरो मॉडल को इस क्षेत्र के सदस्य देशों के परामर्श से इसमें सम्मिलित किया गया और यह कोडेक्स एलिमेंटेरियस या फूड कोड से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है."
सीधे शब्दों में कहें, तो भारत के लिए पैकेज्ड खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में इन सीमाओं का ऐलान करने और उन्हें लाजमी करने का इससे बेहतर वक्त कभी नहीं रहा. मोटापे के बढ़ते स्तर के बारे में चिंतित ब्राजील ने चिकित्सकीय रूप से सिद्ध सीमाएं लागू कीं और हमारे खाद्य उद्योग को अनुपालन करने के लिए अनिवार्य किया. वक्त आ गया है कि भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए."
धीरे-धीरे लेकिन यकीनी तौर पर पिछली कुछ दहाइयों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाना भारत में उपभोक्ताओं की आहार संबंधी प्राथमिकताओं और खरीदारी के निर्णयों पर हावी हो रहा है. बिक्री के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ 2005 में लगभग 2 किलोग्राम से बढ़कर 2019 में लगभग 6 किलोग्राम हो गए हैं और 2024 तक लगभग 8 किलोग्राम तक इनके बढ़ने का अनुमान है। इसी तरह, अति-प्रसंस्कृत पेय पदार्थ 2005 में 2 लीटर से बढ़कर 2019 में लगभग 6.5 लीटर हो गए हैं. 2024 में इसके लगभग 10 लीटर होने का अनुमान है.
ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता ने चेतावनी दी कि जंक या प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग की इस घातीय वृद्धि ने भारतीयों के स्वास्थ्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है.
उन्होंने कहा, "अब हम दुनिया के मोटापे और शुगर के केंद्र हैं. कैंसर की दर खतरनाक रफ्तार से बढ़ रही है. युवा लोगों को दिल की बीमारी का खतरा है. जारी महामारी में भी यह देखने को मिला है कि कॉमरेडिटीज के चलते कोविड-19 में अधिक जानें गई हैं. स्वस्थ और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के बीच मुनासिब तौर पर अंतर करने में सक्षम एक एनपीएम सभी खाद्य और पोषण नियामक नीतियों का मार्गदर्शन कर सकता है. यह खासकर उन खाद्य या पेय पदार्थों की पहचान करने में सक्षम है, जिनमें चीनी, वसा और सोडियम जैसे संभावित हानिकारक तत्वों की अधिकता है. इनकी सही पहचान होने से इस चुनौतीपूर्ण घड़ी में लोग भोजन के अच्छे विकल्पों का चयन कर सकेंगे."
हालांकि भारत के पूर्व स्वास्थ्य सचिव श्री केशव देसिराजू ने चेतावनी दी है कि इन पोषक तत्वों पर वैज्ञानिक सीमाओं को अपनाने की राह आसान नहीं होगी. उन्होंने कहा, "नियामकों और नीति निमार्ताओं को लाजमी सीमाएं तय करनी चाहिए जो डब्ल्यूएचओ के ज़रिए निर्धारित सीमा के भीतर हैं. पूरे बोर्ड में इसके लागू होने के बाद हम सुनिश्चित हो सकेंगे कि अब बाजार में इन नए मानकों को अपनाने में कोई परेशानी नहीं आएगी। इंडस्ट्रीज लाभ कमाने के आदि हो गए हैं, जब तक हमारे खाद्य और पेय नियामक इसे अनिवार्य नहीं कर देते, तब तक वे इसका पालन नहीं करेंगे."
(इनपुट: आईएएनएस)
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