कुतुबुद्दीन एबक के नाम पर नहीं है कुतुब मीनार का नाम! जानिए क्या इसके पीछे का राज़
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कुतुबुद्दीन एबक के नाम पर नहीं है कुतुब मीनार का नाम! जानिए क्या इसके पीछे का राज़

Qutub Minar: 12वीं-13वीं सदी के बीच में बनी इस मुगलकालीन वास्तुकला की सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक मीनार का निर्माण दिल्ली सल्तनत के कई शासकों द्वारा करवाया गया है. इसे इतिहास में विजय मीनार के नाम से भी जाना जाता है. 

Qutub Minar

New Delhi: देश की राजधानी दिल्ली का जब भी जिक्र आता है तो कुछ एतिहासिक इमारतों की तस्वीरें हमारी आखों के सामने धूमने लगती हैं. उन इमारतों के नाम आपकी जुबां पर खुद ब खुद आ जाते हैं. जैसे लाल किला, इंडिया गेट, कुतुब मीनार, जामा मस्जिद आदि वगैरह. हाल ही में लाल किला कुछ धार्मिक वजहों के चलते सुर्खियों में बना हुआ है. कुछ लोगों ने तो इसके नाम बदलने तक की मांग कर डाली है. खैर हम फिलहाल इस इमारत के मौजूदा नाम को लेकर आपको दिलचस्प बात बताने जा रहे हैं. 

सबसे पहले तो यह बता दें कि कुतुब मीनार एशिया की सबसे ऊंची मीनार है. इसे मुगलकाल की वास्तुकला का बेहतरीन नमुना माना जाता है. इसकी खूबसूरती और लोगों की पसंद को देखते हुए युनेस्को ने इसे विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कर दिया है लेकिन क्या आप जानते हैं कि एशिया की सबसे ऊंची मीनार का गौरव पाने वाली कुतुब मीनार का नाम कैसे पड़ा और इसके पीछे का इतिहास क्या है.

1193 ईसवी में दिल्ली के पहले मुस्लिम और गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के ज़रिए कुतुबमीनार की तामीर का काम शुरु करवाया गया था. उन्होंने इस मीनार की बुनियाद रखी लेकिन उनके शासन काल में इस मीनार का काम पूरा नहीं हो सका. कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उनके पोते इल्तुतमिश ने इस काम को आगे बढ़ाया. उन्होंने कुतुबमीनार की तीन मंजिलें बनवाई. साल 1368 ईसवी में एशिया की इस सबसे ऊंची मीनार की पांचवी और अंतिम मंजिल की तामीर फिरोज शाह तुगलक के द्वारा करवाई गई लेकिन 1508 ईसवी में आए भयंकर भूकंप की वजह से कुतुब मीनार की इमारत को काफी नुकसान पहुंचा जिसकी मरम्मत का काम लोधी वंश के दूसरे शासक सिकंदर लोधी ने अपने हाथ में लिया और इसकी मरम्मत करवाई.

भारत की सबसे उंची और भव्य मीनार के नाम को लेकर कई इतिहासकारों के अलग अलग विचार हैं. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस भव्य मीनार का नाम गुलाम वंश के शासक और दिल्ली सल्तनत के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है, जिसने कुतुब मीनार की नींव रखी थी. लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मीनार को मुगालकाल में पूरा किया गया था. इसलिए उस वक्त के मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया था.

12वीं-13वीं सदी के बीच में बनी इस मुगलकालीन वास्तुकला की सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक मीनार का निर्माण दिल्ली सल्तनत के कई शासकों द्वारा करवाया गया है. इसे इतिहास में विजय मीनार के नाम से भी जाना जाता है. खास बात यह है कि कुतुबमीनार की हर एक मंजिल का निर्माण अलग-अलग शासकों द्वारा करवाया गया है. आपको बता दें कि भारत की भव्य कुतुबमीनार की पहली तीन मंजिलों का निर्माण सिर्फ लाल बलुआ पत्थर से किया गया था, जबकि इसकी चौथी और पांचवी मंजिल का निर्माण में संगममर (मार्बल) एवं लाल बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.

एशिया की इस भव्य इमारत के पत्थरों पर बनी कुरान की आयतें कुतुबमीनार की सुंदरता को चार चांद लगाती हैं और इसकी खूबसूरती को और अधिक बढ़ाने का काम करती हैं. इंडो-इस्लामिक वास्तु शैली द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक मीनार की खूबसूरती देखते ही बनती है. इस बहुमंजिला मीनार की वजह से भारत के पर्यटन विभाग को भी हर साल खासा मुनाफा होता है. कुतुबमीनार को देखने हर साल लाखों की तादाद में सैलानी आते हैं, जिससे भारत में टूरिज्म को भी काफी बढ़ावा मिलता है.

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