Ramadan 2022: मुस्लिम समाज के लिए रमज़ान का महीना बहुत अहम है. ये महीना इस लिए भी अहम है कि इसी महीने में कुरान उतरा था.
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Ramadan 2022: रमज़ान में रोज़ा-नमाज और कुरआन की तिलावत (कुरआन पढ़ने) के साथ जकता और फितरा (दान) देने की भी बड़ी अहमियत है. जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है.
इस्लाम का ये उसूल है कि जिस मुसलमान के पास इतनी दौलत हो कि उसके अपने खर्ज पूरे हो रहे हों और दूसरों मदद करने की हालत में हों तो उस पर दूसरों की मदद करना जरूरी होता है. इसी क्रम में मुसलमान रमज़ान के मौके पर जकात और फितरा की सूरत में दान और खैरात करते हैं. तो आइए जानते हैं जकात और फितरा क्या होता है?
किस पर वाजिब है जकात?
जकात इस्लाम में दान की एक किस्म है. इस्लाम में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात अदा करना जरूरी है. हैसियतमंद वह शख्स है जो जिसके ऊपर कोई कर्ज न हो और 7.50 तोला सोना या 52.50 तोला चांदी हो. हर हैसियतमंद मुसलमान के लिए जरूरी है कि पूरे साल में उसकी आमदनी से बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब को दान और खैरात करे. इसको आसान भाषा में इस तरह समझ सकते हैं कि अगर आपके पास खर्च करने बाद 100 रुपए बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपए किसी गरीब को देना जरूरी होता है.
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जकात अदा करने के लिए कोई खास महीना तय नहीं है, बल्कि इसे साल में एक बार अदा करना होता है. लेकिन आम तौर पर मुसलमान रमजान के महीने में जकात अदा करते हैं. वहीं, जो लोग हैसियतमंद होते हुए भी अल्लाह की रजा में जकात नहीं देते हैं, उसका शुमार गुनाहगारों में होता है. सोने-चांदी में जकात देनी होती है.
किसे दी जाए जकात की रकम
ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत है. वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो. अल्लाह ने इसके लिए कुछ पैमाने और औहदे तय किये हैं जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये. इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी हैं जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं.
इस्लाम में फकीर, मिस्कीन, मुसाफिर को जकात दी जा सकती है. अगर कोई फकीर या मिस्कीन नहीं मिले तो मदरसे में भी जकात की राशि दी जाती है. रमजान के एक अशरा पूरा होने के बाद अब रोजेदार फकीरों और मिस्कीन को जकात, खैरात के रूप में कपड़े, पैसे सहित कई दूसरे सामान देकर अपना फर्ज़ पूरा करते हैं.
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