जल्लीकट्टू पर पाबंदी लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार, कहा यह सांस्कृति विरासत है
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1700788

जल्लीकट्टू पर पाबंदी लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार, कहा यह सांस्कृति विरासत है

Jallikattu: तमिलनाडु के मशहूर खेल 'जल्लीकट्टू' और महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ वाले मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश आया है. दरअसल इन खेलों पर पाबंदी की मांग करने वाली याचिकाओं को रद्द करते हुए अदालत ने इन्हें सांस्कृति विरासत करार दिया है. 

जल्लीकट्टू पर पाबंदी लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार, कहा यह सांस्कृति विरासत है

Jallikattu: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सांडों को वश में करने वाले खेल 'जल्लीकट्टू' (Jallikattu) की इजाज़त देने वाले तमिलनाडु सरकार के कानून को बरकरार रखा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017, जानवरों के दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम करता है. जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की बेंच 'जल्लीकट्टू' और बैलगाड़ी दौड़ की इजाज़त देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

बेंच ने "जल्लीकट्टू" और बैलगाड़ी दौड़ की इजाज़त देने वाले राज्यों के कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली सभी दलीलों को खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि जल्लीकट्टू पिछली कुछ सदियों से चल रहा है. कड़ाई से देखते हुए कि कानून, राष्ट्रपति की सहमति हासिल करने के साथ हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है. पांच जजों की बेंच ने निर्देश दिया कि सभी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए और संशोधित कानून को सख्ती से लागू करने के लिए डीएम और अन्य सक्षम अफसर इसके जिम्मेदार होंगे. 

तमिलनाडु सरकार ने "जल्लीकट्टू" के आयोजन का बचाव किया था और शीर्ष अदालत से कहा था कि खेल आयोजन भी एक सांस्कृतिक प्रोग्राम हो सकता है और "जल्लीकट्टू" में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं है. जल्लीकट्टू का आयोजन पोंगल त्योहार के दौरान अच्छी फसल के लिए धन्यवाद के तौर में किया जाता है और इसके बाद मंदिरों में त्योहार आयोजित किए जाते हैं, जो जाहिर करता है कि इस प्रोग्राम का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जानवरों के प्रति प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 को चुनौती देने वाली अर्ज़ी पर एक बड़ी बेंच के ज़रिए फैसला लेने की जरूरत है, क्योंकि उनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित पर्याप्त प्रश्न शामिल हैं.

पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) के नेतृत्व में याचिकाओं के एक समूह ने तमिलनाडु विधानसभा के ज़रिए पास किए गए जल्लीकट्टू कानून को रद्द करने के लिए दिशा-निर्देश मांगा, जिसने सांडों को "प्रदर्शन करने वाले जानवरों" की तह में वापस ला दिया. पेटा ने राज्य विधानसभा के ज़रिए पास किए गए जानवरों प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) विधेयक 2017 को कई आधारों पर चुनौती दी थी, जिसमें राज्य में सांडों को काबू करने के खेल को "अवैध" बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करना भी शामिल था.

ZEE SALAAM LIVE TV

Trending news