World Environment Day 2022: कहानी उन महिलाओं की जिन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए कुर्बान कर दी अपनी जान
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World Environment Day 2022: कहानी उन महिलाओं की जिन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए कुर्बान कर दी अपनी जान

World Environment Day 2022: एक ख़ातून अमृता देवी ने सिपाहियों के पेड़ काटने की मुख़ालफ़त की और अपनी तीनों बेटियों के साथ पेड़ पर लिपट गई. पेड़ बचाते हुए इस ख़ातून ने अपनी जान तक दे दी थी. इसके बाद इस खबर के गांव में फैलते ही 363 लोगों ने भी पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दी.

File photo

World Environment Day 2022:  हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है. पहला वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे 1974 को मनाया गया. यूं तो हर इंसान अपनी सलाहियत से एनवायरनमेंट के लिए काम करता है. लेकिन हमारे मुल्क में कुछ ऐसी ख़्वातीन थीं जिन्होंने एनवायरनमेंट की हिफ़ाज़त के लिए तारीख़ दर्ज की. उनमें से कुछ ने अपनी जान देकर एनवायरनमेंट की हिफ़ाज़त की. कहीं पर बेटी की पैदाइश पर 111 पौधे लगाने का नियम बनाया, तो कहीं 'जंगल हमारा मायका है, हम इसे कटने नहीं देंगे'. का नारा लगाया. आज आपको कुछ ऐसे ही आंदोलन के बारे में बताएंगे जिनसे पर्यावरण की हिफ़ाज़त के लिए ख़्वातीन ने ख़ास किरदार अदा किया.

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खेजड़ली आंदोलन:
राजस्थान में हुआ खेजड़ली आंदोलन को करने वाले राजस्थान के खेजड़ली गांव के मरामी लोग थे. बताया जाता है कि साल 1730 में जोधपुर के महाराजा ने अपेन महल की तामीर के लिए लकड़ी लेने के लिए सिपाहियों को भेजा तो वो कुल्हाड़ी लेकर खेजड़ली गांव पहुंच गए.

यहां गांव की ही एक ख़ातून अमृता देवी ने सिपाहियों के पेड़ काटने की मुख़ालफ़त की और अपनी तीनों बेटियों के साथ पेड़ पर लिपट गई. पेड़ बचाते हुए इस ख़ातून ने अपनी जान तक दे दी थी. इसके बाद इस खबर के गांव में फैलते ही 363 लोगों ने भी पेड़ों को बचाने के लिए अपने जान दी. इस मामले को रिचर्ड बरवे ने पूरी दुनिया में माहौलियात के तहफ़्फ़ुज़ की मिसाल देते हुए तश्हीर भी की गई.

चिपको आंदोलन: 
यह भारत की उत्तराखण्ड रियासत में किसानो ने पेड़ों की कटाई की मु्ख़ालफ़त में ये आंदोलन किया था. वे रियासत के महकमा ए जंगलयात के ठेकेदारों के जंगलों की कटाई की मु्ख़ालफ़त कर रहे थे. और उन पर अपना हक़ जता रहे थे।  पेड़ों को कटने से बचाने के लिए यह आंदोलन उत्तराखंड के चमोली में साल 1973 में शुरू किया गया. इस आंदोलन को शुरू करने वाले श्री सुन्दर लाल बहुगुणा थे, लेकिन ख़्वातीन ने भी इस आंदोलन के दौरान में अपनी ख़ास किरदार निभाया था. इस आंदोलन को 'इको फेमिनिस्ट आंदोलन' कहकर भी बुलाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें जुड़ीं ज़्यादातर ख़्वातीन ही थीं. बता दें, गौरा देवी नाम की एक ख़ातून की क़्यादत में 26 मार्च 1974 को रेणी के पेड़ काटने आए लोगों को चमोली गांव की ख़्वातीन ने यह कहकर भगा दिया कि 'जंगल हमारा मायका है, हम इसे कटने नहीं देंगे'.

नवधान्या आंदोलन:
1987 में वंदना शिवा की क़्यादत में नवधान्या आंदोलन ख़्वातीन के ज़रिए चलाया गया. इस आंदोलन मे ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग के लिए लोगों को मुतास्सिर करने के साथ किसानों को बीज तकसीम किये जाते है तथा जंकफूड व ख़तरनाक कीटनाशकों व फर्टिलाइज़र्स के साइड इफ़ेक्टस के लिए बेदार किया जाता है. नर्मदा बचाओ आंदोलन और माहौलयाती तहफ़्फ़ुज़ के मैदान में मेधा पाटेकर का ख़ास किरदार रहा है. एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन व प्रोमोशन में ख़्वातीन का किरदार देखते हुए नेशनल फारेस्ट पालिसी 1988 में उनकी शराकतदारी को जगह दी गई.

2006 में राजस्थान के राजसमन्द जिले के पिपलन्तरी गांव मे बेटी की पैदाइश पर 111 पौधे लगाने का नियम बनाया और इस मंसूबे की कामयाबी को देखते हुए 2008 में इस गांव को निर्मल गांव का अवार्ड भी मिला.

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